आखिरकार कृष्णा राज कपूर ने भी इस दुनिया को अलविदा कह दिया. इसी के साथ राज कपूर परिवार की वह कड़ी भी टूट गई जिसने बरसों से अपने इस परिवार को एक सूत्र में बांधे रखा था. आज उनके निधन पर मुझे 30 साल पहले का वह समय याद आ रहा है जब राज कपूर के अंतिम समय में, मैं कृष्णा जी के साथ लगातार कई घंटे रुका था और तब मुझे राज कपूर के साथ कृष्णा जी को भी बेहद करीब से जानने का मौका मिला था.
बात 2 मई 1988 की है. उस दिन राज कपूर फिल्म संसार का सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के ग्रहण करने के लिए मुंबई से दिल्ली के सीरी फोर्ट ऑडिटोरियम में पहुंचे थे. उनके साथ उनकी पत्नी कृष्णा कपूर भी थीं. दोनों ने अपने पसंदीदा सफ़ेद रंग के कपडे पहने हुए थे. लेकिन पुरस्कार समारोह शुरू होने से कुछ क्षणों पहले ही राज कपूर की तबियत कुछ बिगड़ने लगी. तभी तत्कालीन राष्ट्रपति आर वेंकटरमण समारोह में पहुंचे और समारोह शुरू हुआ. लेकिन तब तक राज कपूर को अस्थमा का दौरा पड़ चुका था.
राज कपूर को ऐसे अस्थमा के दौरे पहले भी पड़ जाते थे. इसलिए ऐसी स्थिति की आशंका को देखते हुए कृष्णा जी अपने साथ ऑक्सीजन का एक छोटा सा सिलेंडर साथ लायीं थी. तबियत ज्यादा बिगड़ता देख कृष्णा जी ने तुरंत राज कपूर को मास्क लगाकर ऑक्सीजन देना शुरू कर दिया. तभी राज कपूर के नाम की पुरस्कार लेने की घोषणा हुयी लेकिन हाँफते, परेशान होते कष्टमय राज कपूर इस स्थिति में नहीं थे कि पुरस्कार लेने मंच पर जा सकें. स्थिति को समझते हुए राष्ट्रपति ने प्रोटोकॉल की अनदेखी करते हुए स्वयं राज कपूर की सीट पर पहुंचते हुए उन्हें फाल्के पुरस्कार प्रदान किया, जिसे कपूर मुश्किल से ही ग्रहण कर पाए.
जब मेरे साथ एम्स गए कपूर दंपत्ति
इधर पुरस्कार समारोह तो लम्बा चलना था लेकिन राज कपूर और कृष्णा कपूर को तभी जल्दी से ऑडिटोरियम से बाहर लाया गया. मौके की नजाकत देख मैं भी तभी झट से बाहर आ गया. जहां सिरीफोर्ट परिसर में राज कपूर एक कुर्सी पर बैठे बुरी तरह हांफ रहे थे. कुछ लोगों ने उनको आसपास घेर लिया था. जिससे उनको हवा नहीं मिल रही थी. यह देख मैंने सबसे पहले लोगों को वहां से हटाकर उन तक हवा पहुंचने का रास्ता बनवाया. फिर मैंने राज कपूर के जूते जुराब उतारे. तब तक राष्ट्रपति भवन से समारोह में आई वहां की एक महिला डॉक्टर राज कपूर को देखने पहुंच चुकी थीं.
मैंने उन डॉक्टर से अनुरोध किया कि आप राष्ट्रपति भवन की यहां मौजूद एम्बुलेंस से इन्हें किसी अस्पताल में भिजवा दें. पहले तो डॉक्टर ने संकोच किया कि राष्ट्रपति अभी अन्दर हैं, हम एम्बुलेंस कैसे भेज सकते हैं. लेकिन जब मैंने कहा कि राज कपूर राष्ट्रीय पुरस्कार लेने आए हैं, वह भी राष्ट्रपति के मेहमान हैं. इस पर उन्होंने एम्बुलेंस दिलवा दी. मैंने राज कपूर और कृष्णा जी दोनों से पूछा कि आप कौन-से अस्पताल जाना चाहेंगे. वहां सरकारी में एम्स, सफदरजंग और प्राइवेट में होली फेमिली अस्पताल नजदीक है. लेकिन उन्हें तब तक अपने पक्ष और अपने उपचार के लिए मेरी गतिविधियाँ देख मुझ पर इतना भरोसा हो गया था कि राज साहब और कृष्णा जी ने मुझसे कहा आप जहां ठीक समझें वहां ले चलें. तब मैंने एम्स जाने का निर्णय लिया.
जब कृष्णा जी ने कहा कोई एसी रूम नहीं है क्या
मैं कुछ लोगों की मदद से राज कपूर को स्ट्रेचर पर बैठाकर एम्बुलेंस तक ले गया. एम्बुलेंस में एक तरफ राज और कृष्णा जी बैठे थे और उनके ठीक सामने की तरफ मैं बैठा था. हालांकि एम्बुलेंस के तेज रफ़्तार से मुड़ते ही स्ट्रेचर अपनी जगह से हिल गया और राज कपूर सीधे मेरे कन्धों पर आ गिरे. एम्स पहुंचने तक मैंने उनको अपने कंधों पर संभाले रखा. जैसे तैसे हम एम्स पहुंचे तब तक अंधेरा हो चुका था. इमरजेंसी यूनिट से एक व्हील चेयर मंगाकर हमने उन्हें उस पर बैठाया. उस समय इमरजेंसी के द्वार पर मक्खियाँ भिन भिना रही थीं. यह देख राज कपूर भी कुछ विचलित हुए और कृष्णा जी मुझसे बोलीं यहां तो बहुत गंदगी है, कोई और अस्पताल नहीं है क्या ? मैंने कहा यह देश का सबसे बड़ा अस्पताल है, इस समय इनको जल्दी से अच्छे उपचार की जरुरत है. अभी यह ही बेहतर है. तब वह बोलीं ठीक है, आप जो ठीक समझें.
हम राज कपूर को भीतर ले गए. हालांकि वहां भी जल्दी से अटेंड करने के लिए कोई डॉक्टर नहीं मिला. कुछ देर बाद मेरे कुछ शोर मचाने पर व्हील चेयर को एक कॉर्नर में ले जाकर परदे से पार्टीशन बनाकर वहां उपचार शुरू हुआ. अब तक शांत कृष्णा जी के चेहरे पर चिंता की लकीरें उभरने लगी थीं. इस पर कृष्णा जी ने मुझसे कहा कि कोई एसी रूम नहीं मिल सकता यहां ? मैंने कहा डॉक्टर अभी देखकर फिर रूम में शिफ्ट करेंगे. आप चिंता मत कीजिये. इस दौरान मैंने राज कपूर के सांस में आराम के लिए उनकी कमर पर हाथ फेरना और उन्हें थापी देकर कफ आदि निकलवाने और उन्हें नेबुलाइजर दिलाने में मदद करनी शुरू कर दी थी. साथ ही मैंने तब एम्स के एमएस को भी सन्देश भिजवा दिया था कि कृपया यहां आकर हमारी मदद करें.
एमएस के आने के बाद ही उनको ऊपर एसी रूम प्रदान किया गया. साथ ही घर से स्पेशल डॉक्टर पांडे को भी तुरंत अस्पताल बुला लिया गया. ऊपर कमरे में तब अभिनेता कमल हासन भी राज कपूर को देखने आये, तब तक राज कपूर को कुछ आराम आना शुरू हो गया था. लेकिन कुछ देर बाद फिर से राज कपूर की तबियत बिगड़ने लगी और तभी उन्हें डॉक्टर ने आईसीयू में शिफ्ट कर दिया. तब तक रात 10 बजे से ज्यादा समय हो गया था. आईसीयू में पहुंचते ही डॉक्टर ने कृष्णा जी से कहा कि आप तो अभी इनके साथ यहां अन्दर रुक सकती हैं. लेकिन मुझसे कहा कि अब आप प्लीज बाहर जाएं. यह सुनते ही राज कपूर ने डॉक्टर से कहा नो नो डॉक्टर, प्लीज इन्हें मेरे साथ यहीं रुकने दें. कृष्णा जी ने भी डॉक्टर से मेरे लिए निवेदन किया कि इन्हें यहीं रुकने दें. तब डॉक्टर ने मुझसे कहा ठीक है. लेकिन कुछ देर बाद राज कपूर की तबियत और भी अधिक खराब होने लगी.
जब छलक आईं कृष्णा जी की आंखें
राज कपूर के पलंग के एक ओर कृष्णा जी खड़ी थीं तो दूसरी ओर मैं. राज कपूर बार बार यही कह रहे थे कि मुझे आराम क्यों नहीं आ रहा ? स्थिति ख़राब होता देख राज कपूर मुझसे बोले, “लगता है अब मैं ठीक नहीं होऊंगा. लेट मी डाई (मुझे मरने दो).” यह सुनते ही कृष्णा जी बुरी तरह घबरा गईं, उनकी आंखों में आंसू झलकने लगे लेकिन उन्होंने आंसू छिपाने की कोशिश करते हुए राज कपूर से कहा, “ऐसा क्यों कह रहें आप, आप ठीक हो जायेंगे.” मैंने भी कहा आप ठीक हो जायेंगे. लेकिन राज कपूर उसके बाद कुछ नहीं बोले. वह बिल्कुल मौन हो गए. उनके मुझसे कहे ये शब्द ही बाद में उनके अंतिम शब्द हो गए. वह बस कभी मुझे देखते तो कभी कृष्णा जी को. कुछ समय बाद राज कपूर नींद में चले गए.
डॉक्टर ने कहा इन्हें निमोनिया हो गया है. तब तक कृष्णा जी काफी विचलित हो गयीं थीं. डॉक्टर ने मुझसे कहा आप इनकी अंगूठी और गले से चैन उतार लीजिये. मैंने वे सब उतारकर कृष्णा जी को दे दिए. जिन्हें कृष्णा जी ने बहुत उदास मन से देखा और कुछ ख्यालों में खो गयीं. जब तक राज कपूर होश में थे वह मुझे कभी अपनी नीली आंखों से तो कभी हल्की मुस्कान से और कभी शब्दों से धन्यवाद दे रहे थे. कृष्णा जी ने भी तब मुझे कहा यह तो अच्छा कि इस मुश्किल घड़ी में आप साथ हैं.
कल सुबह तो सब आ जायेंगे लेकिन आज आपने भागदौड़ करके, घंटों साथ रहकर हमारी जो मदद की है उसे हम कभी नहीं भूल सकते. उसके बाद जब राज कपूर बेहोशी में चले गए तो कृष्णा जी ने कहा आप बहुत थक गए होंगे. देर रात हो गयी है. अब आप घर जाओ. तब तक कृष्णा जी नीचे जाकर फ़ोन पर अपने बेटों से भी बात कर आईं थीं. यह संयोग है कि उस दिन भी ऋषि कपूर विदेश में अपनी फिल्म की शूटिंग कर रहे थे. और आज भी ऋषि कपूर अमेरिका में अपना इलाज कराने के लिए कल ही वहां पहुंचे हैं. यूं राज कपूर पूरा एक महीना कोमा में रहने के बाद 2 जून 1988 को इस दुनिया से विदा हुए. जबकि कृष्णा जी ने दुनिया से कूच करने में देर नहीं लगाई.
कपूर परिवार को एक सूत्र में पिरोये रखा
कृष्णा कपूर यूं पिछले काफी दिनों से बीमार चल रही थीं. लेकिन वह ठीक होकर फिर से अपने परिवार में व्यस्त हो जाती थीं. पर इस बार कुदरत ने उन्हें यह मौका नहीं दिया. वह 87 बरस की हो गयीं थीं. अपने पति राज कपूर के 30 साल बाद उन्होंने यह दुनिया छोड़ी. राज कपूर का जब निधन हुआ तब वह सिर्फ 63 साल के थे. असल में कृष्णा कपूर धैर्य और सहनशीलता की मूर्ती थीं. अपने पांच बच्चों को उन्होंने पाला पोसा ही नहीं सभी बहन भाइयों के बीच परस्पर प्रेम भी बनवाये रखा. यही कारण था कि उनके बेटे रंधीर, ऋषि और राजीव हों या उनकी बेटी ऋतु और रीमा सभी दुःख सुख में एक दूसरे के साथ मजबूती से डटे रहते हैं और उनका परस्पर प्रेम भी दिखता रहता है.
कृष्णा को सितार बजाता देख मोहित हो गए थे राज कपूर
जब राज कपूर का कृष्णा मल्होत्रा से विवाह हुआ तब वह मात्र 16 बरस की थीं और राज कपूर 22 साल के थे. असल में कृष्णा मल्होत्रा के पिता राय बहादुर करतार नाथ मल्होत्रा और पृथ्वीराज कपूर के करीबी रिश्तेदार थे. इसलिए पृथ्वीराज कपूर चाहते थे कि राज की शादी कृष्णा से हो जाए. तब करतार नाथ मध्यप्रदेश के रीवा में थे. लेकिन उनके बेटे प्रेम नाथ, राजेन्द्र नाथ और नरेंद्र नाथ मुंबई में भी रहते थे. साथ ही इनकी बहनें कृष्णा और उमा कभी मुंबई में रहती थीं तो कभी रीवा में. राज कपूर तब अपनी पहली फिल्म ‘आग’ बनाने की योजना में जुटे थे.
राज ने सोचा कि जरा उस लडकी को देखूं तो सही जिससे मेरे घर वाले मेरी शादी करना चाहते हैं. राज अपनी फिल्म के किसी काम के बहाने से प्रेम नाथ के घर चले गए. वहां पहुंचकर उन्होंने देखा सफ़ेद साड़ी पहने कृष्णा सितार बजा रही थीं. उनकी यह संगीत साधना और सुन्दरता देख राज कपूर पहली नज़र में मोहित हो गए और उन्होंने तुरंत शादी के लिए हां कर दी. इसी के बाद राज कपूर के लिए सफ़ेद रंग सुन्दरता का पर्याय बन गया. बाद में उन्होंने अपनी सभी नायिकाओं को सफ़ेद साड़ी पहनवाई. साथ ही 1946 में दोनों की शादी हुई और फ़रवरी 1947 में इनकी पहली संतान के रूप में रणधीर कपूर का जन्म हुआ और अगले बरस अक्टूबर 1948 में बेटी ऋतु का जन्म भी हो गया.
नर्गिस और वैजयंतीमाला से परेशान रहीं
यह एक संयोग ही है कि कुछ दिन पहले जहां सितार बजाती कृष्णा उन्हें पसंद आयीं और उन्होंने उनसे शादी कर ली. वहां, शादी के कुछ दिन बाद ही उन्होंने जब बेसन में सने हाथों में नर्गिस को देखा तो राज कपूर नर्गिस पर फ़िदा हो गए. अपनी नयी नयी शादी के कुछ दिन बाद ही कृष्णा ने अपने पति को किसी और के प्यार में पाया तो उनका दुखी होना स्वाभाविक था. लेकिन अपनी अपार सहनशीलता का परिचय देते हे कृष्णा कपूर ने मुश्किल घड़ी में अपने सास ससुर का भी ध्यान रखा और अपने बच्चों का भी. जैसे तैसे नर्गिस की जब मार्च 1958 में सुनील दत्त से शादी हुई तब जाकर उन्हें राहत मिली.
यूं जिस नर्गिस से वह बुरी तरह परेशान रह्ती थीं वही नर्गिस राज से अलगाव के कई बरस बाद कृष्णा कपूर से एक कार्यक्रम में मिलीं तो उन्होंने नर्गिस से कोई गिला शिकवा न करके उन्हें प्रेम से गले लगा लिया. लेकिन नर्गिस से ज्यादा दुखी वह तब हुईं जब सन् 1963 में ‘संगम’ फिल्म की विदेशों में शूटिंग के दौरान राज कपूर के वैजयंतीमाला से नजदीकियां बढ़ गयीं. यह देख कृष्णा कपूर अपने बच्चों को लेकर मुंबई एक होटल में जाकर रहने लगीं. अपना परिवार बिखरता और कृष्णा जी की नाराजगी देख कर राज कपूर ने वैजयंतीमाला से हमेशा के लिए नाता तोड़ लिया और वैजयंती माला ने राज कपूर के चिकित्सक डॉ बाली से शादी कर ली.
इसके बाद ही कृष्णा जी का वैवाहिक,पारिवारिक जीवन व्यवस्थित और सुखी हो सका. लेकिन शादी के करीब 18 बरसों तक कृष्णा कपूर के दिल पर क्या क्या बीती होगी यह सोचा ही जा सकता है. लेकिन बाद में राज कपूर और कृष्णा कपूर दोनों ने अपनी अपनी गलतियां स्वीकार करके अपना जीवन नए सिरे से शुरू किया. एक बार राज कपूर ने कहा था, “मैं आज जो भी हूं, मेरे शानदार करियर और मेरे अच्छे परिवार का सारा श्रेय कृष्णा को जाता है. मैं भाग्यशाली हूं जो मुझे कृष्णा जैसी पत्नी मिली.” जबकि कृष्णा कपूर ने इसके जवाब में कहा था कि मैं चाहूंगी कि मुझे हर जन्म में राज कपूर ही पति के रूप में मिलें.
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