दिवंगत हिमांशु रॉय के छुट्टी पर रहते हुए भी अक्सर उनसे फ़ोन पर बात होती रहती थी. मैं और सहयोगी गणेश ठाकुर उनकी तबियत का हाल जानने के लिए महीने डेढ़ महीने में उनको फोन कर लेते थे. उन्हें अच्छा लगता था. जब वे क्राइम ब्रांच के जॉइंट कमिश्नर या आतंकवाद विरोधी दस्ते के प्रमुख थे तब उन्हें रोजाना कई पत्रकार फोन करते थे, लेकिन बीमारी की छुट्टी पर जाने के बाद हम जैसे गिने चुने लोग ही उनके संपर्क में थे. हाल में कई दिनों से उनसे बात नही हुई थी. 3 मई को अचानक whatsapp पर उनकी ओर से संदेश आया Congrats. एक दिन पहले जेडे मर्डर केस में छोटा राजन को दोषी ठहराते वक़्त जज ने मेरी गवाही की जो प्रशंसा की थी, उसके बारे में पढ़कर उन्होंने मुझे बधाई भेजी थी. इस केस में गवाह उन्होंने ही मुझे बनाया था.


हिमांशु रॉय से वैसे तो मेरा परिचय साल 2002 के इर्द गिर्द से था जब वे मुम्बई पुलिस में Zone 1 के डीसीपी थे लेकिन मेरी और गणेश से उनकी दोस्ती हुई हनुमानजी की वजह से हुई. मुंबई पुलिस और क्राइम बीट कवर करनेवाले सभी पत्रकारों को पता है कि हिमांशु रॉय को हनुमानजी के प्रति गहरी आस्था थी. अपने दफ्तर में और घर मे उन्होंने हनुमानजी की कलात्मक तस्वीरें लगा रखी थी. इसी वजह से उन दिनों क्राइम ब्रांच के लोग मज़ाक में जॉइंट सीपी क्राइम के दफ्तर को हनुमान मंदिर भी कहते थे. हनुमानजी से जुड़ा साहित्य भी उन्होंने काफी पढ़ रखा था.अगर व्यस्त नही रहे तो हनुमानजी की विभिन्न मुद्रा की तस्वीरों जैसे भक्त हनुमान, वीर हनुमान इत्यादि पर वे काफी रस लेकर चर्चा करते थे. शायद उन्ही की प्रतिमा से प्रेरित होकर उन्होंने अपना शरीर भी प्रभावशाली दिखनेवाला बना लिया था. मृत्यु तक आप देखेंगे कि उन्होंने अपने whatsapp की dp के तौर पर हनुमानजी की ही तस्वीर लगा रखी थी. मेरी और गणेश की भी हनुमानजी में विशेष आस्था रही है. हम अक्सर नासिक के पास अंजनगढ़ पर्वत पर ट्रैकिंग के लिए जाते हैं जो स्थानीय दंतकथाओं के मुताबिक हनुमानजी का जन्मस्थल है. हमने एक बार बताया कि वहां की स्थिति काफी खराब है. रास्ते और मंदिर की हालत ठीक नही, तब उन्होने कहा था कि वे उस जगह के लिए अपनी ओर से भी कुछ करना चाहते हैं. अगर पहले पता होता तो नासिक का पुलिस कमिश्नर रहते हुए कुछ करते...लेकिन अब इससे पहले की वो अंजनेरी जाकर कुछ कर पाते कैंसर ने उन्हें अपनी गिरफ्त में ले लिया.



जेडे मर्डर केस में गवाह बनने से पहले मैं साल 2011 के पाकमोडिया स्ट्रीट शूटआउट केस में भी गवाह था जिसमें दाउद इब्राहिम के भाई इकबाल कास्कर के ड्राइवर की मौत हो गयी थी. मेरी अदालत में गवाही 3 दिन चली थी. पहले दिन की गवाही से एक शाम पहले उन्होंने मुझे फोन किया- जीतेंद्र जी कल आपका विटनेस है. मैने स्पेशल आपरेशन स्क्वाड (SOS) को कहा है आपको सिक्योरिटी देने को.


मैने सिक्योरिटी लेने से मना किया तो उन्होंने दबाव डाला- देखो सिक्योरिटी लेने को मैं कह रहा हूँ. ले लो. आपको बताने की ज़रूरत है क्या कि कितने खतरनाक लोग हैं?
उनकी आवाज में मेरी प्रति ईमानदार चिंता झलक रही थी. मैने ये भी सोचा कि शायद उन्हें लग रहा हो कि डर के मारे मैं गवाही देने नही जाऊंगा इसलिए अपने लोग मेरे साथ रखना चाहते हैं. मैंने सुरक्षा ले ली. अगले दिन कोर्ट में गवाही से पहले AK-47 राइफल से लैस एक SOS कमांडो मेरे साथ आ गया और दिनभर परछाई की तरह मेरे साथ रहा. सुरक्षा तो मैंने ले ली लेकिन मैं बड़ा असहज महसूस कर रहा था. इसलिए अगले दिन की गवाही से पहले जब SOS के प्रमुख का मुझे फोन आया तो मैंने उसे कमांडो भिजवाने के लिए मना कर दिया. इस वजह से रॉय साहब मुझे थोड़ा नाराज भी हो गए.


बीमारी के दौरान जब उनसे बातचीत होती थी तब वे हमेशा उम्मीदों से भरे सुनाई देते. कभी लगा नही की वे डिप्रेशन में हैं. बीच मे ठीक होते होते कैंसर फिर से उभर आया था, लेकिन बताते हैं कि उसमें भी सुधार हो रहा था. उनके अंदर क्या चल रहा है उन्होंने कभी पता चलने नही दिया. वर्दी में बाहरी तौर पर जितने ताकतवर दिखाई देते थे, उनकी आवाज में भी वही मजबूती थी. उनके साथ हमारी बातचीत अक्सर इस लाइन पर खत्म होती- हनुमानजी सब ठीक कर देंगे.


उनकी मृत्यु के बाद कई लोग उनसे जुड़े विवाद भी याद कर रहे हैं. सच है, एक वक्त में वे महाराष्ट्र पुलिस के बेहद विवादित अफसर भी थे, लेकिन नासिक से वापस मुम्बई में पोस्टिंग होने के बाद उनमे काफी बदलाव आ गया था.


मुंबई पुलिस की क्राइम ब्रांच के प्रमुख और ATS प्रमुख के तौर पर उनकी उप्लब्धियां उनसे जुड़े पिछले विवादों को धो डालती हैं . हिमांशु रॉय के जाने से निश्चित तौर पर महाराष्ट्र पुलिस ने एक अदद, कर्मठ और नतीजे देनेवाला अधिकारी खोया है. ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दें.


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)