अपने नापाक इरादों के जरिए दुनिया के कई मुल्कों पर कब्ज़ा करने का सपना देख रहे चीन को एक ऐसे अदने-से देश ताइवान ने जिस भाषा में जवाब दिया है, उसने अमेरिका-भारत समेत विश्व की तमाम बड़ी ताकतों को हैरान कर दिया है. चीन ने तो खैर, ऐसे ललकारने वाले जवाब की उम्मीद ही नहीं की होगी लेकिन कूटनीतिक लिहाज से भारत व अमेरिका के हैरान होने के पीछे का राज ये है कि वे इस मसले पर आने वाले दिनों में चीन की बजाय ताइवान के साथ खड़े दिखाई दे सकते हैं. चीन अब ताइवान पर कब्ज़ा करने की तैयारी में है और इसके लिए उसने युद्धाभ्यास शुरु कर दिया है.
ताइवान ने चीन को दी चुनौती
चीन की सेना पीपल्स लिबरेशन आर्मी यानी पीएलए ने इस महीने के पहले चार दिनों में ही करीब 150 लड़ाकू विमान ताइवान के हवाई क्षेत्र में भेजकर अपने संभावित हमले का जायजा लिया है. चीन के मीडिया में इसे शक्ति के प्रदर्शन के तौर पर देखा गया है, लेकिन दुनिया भर की कई सरकारों ने इसे भय दिखाने और चीन की आक्रामकता के तौर पर लिया है. चीन की इस हरकत से नाराज ताइवान ने चेतावनी दी है कि अगर चीन कई दिनों तक बीजिंग के युद्धक विमानों की घुसपैठ के बाद इस द्वीप पर कब्जा कर लेता है तो इसके 'क्षेत्रीय शांति के लिए विनाशकारी परिणाम' होंगे.
ताइवान की राष्ट्रपति त्साई इंग-वेन ने स्पष्ट किया है कि अपने आपको बचाने के लिए के लिए जो भी करना पड़ेगा, उसे करने से ताइवान नहीं चूकेगा. आबादी के लिहाज से चीन के मुकाबले पिद्दी-से देश कहलाए जाने वाले ताइवान की इस चेतावनी की सब तरफ तारीफ तो हो रही है लेकिन इसने एक ऐसे युद्ध के खतरे का संकेत दे दिया है, जिसका असर दुनिया के कई देशों पर होना तय है.
ये है दुश्मनी की वजह
गौरतलब है कि ताइवान, पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना से महज 180 किलोमीटर दूर है. विश्व की एक महाशक्ति के मुकाबले ये एक छोटा-सा द्वीप है जो क्यूबा जितना बड़ा भी नहीं है. ताइवान पूर्वी एशिया का ऐसा द्वीप है,जो अपने आसपास के कई द्वीपों को मिलाकर चीनी गणराज्य का अंग है जिसका मुख्यालय ताइवान द्वीप ही है. ताइवान की राजधानी ताइपे है. ताइवान की भाषा और पूर्वज चीनी ही हैं लेकिन वहां अलग राजनीतिक व्यवस्था है और यही चीन और ताइवान के बीच दुश्मनी की वजह भी है. ताइवान की खाड़ी के एक तरफ 135 करोड़ से ज्यादा की आबादी वाला चीन है जहां एकदलीय राजव्यवस्था है जबकि दूसरी तरफ ताइवान है, जहां महज दो करोड़ 30 लाख लोग लोकतांत्रिक व्यवस्था में रहते हैं.
1949 से चल रहा विवाद
वैसे चीन और ताइवान के बीच 1949 से विवाद चला आ रहा है जिसकी वजह से ताइवान की पहुंच अंतरराष्ट्रीय संगठनों तक नहीं है और उसे सीमित अंतरराष्ट्रीय मान्यता ही मिली हुई है. दुनिया के सिर्फ 15 देश ही ताइवान को स्वतंत्र राष्ट्र मानते हैं. हालांकि चीन इसे अपने से अलग हुआ हिस्सा और एक विद्रोही प्रांत मानता है. साल 2005 में चीन ने अलगाववादी विरोधी कानून पारित किया था जो चीन को ताइवान को बलपूर्वक मिलाने का अधिकार देता है.उसके बाद से अगर ताइवान अपने आप को स्वतंत्र राष्ट्र घोषित करता है तो चीन की सेना उस पर हमला कर सकती है. लेकिन कई साल के तनाव और धमकियों के बाद ताइवान ने एक रणनीति खोज ली है जिससे वो चीन के हमले से अब तक बचता रहा है. लेकिन ताइवान की इस चेतावनी को वैश्विक कूटनीति के जानकार मानते हैं कि पानी अब नाक तक आ पहुंचा है और चीन किसी भी वक़्त बड़ा हमला कर सकता है.
ताइवान और भारत के रिश्ते हुए मजबूत
पिछले कुछ साल में चीन के साथ भारत के रिश्ते जितने कड़वे हुए हैं, तो उससे ज्यादा अच्छे कारोबारी रिश्ते ताइवान के साथ बने हैं. लिहाज़ा, अगर ताइवान पर हमला होता है, तो उसका कुछ असर भारत की अर्थव्यवस्था पर पड़ना निश्चित है, इसीलिये अमेरिका की तरह भारत भी ये नहीं चाहता कि छोटे लेकिन दिमागी रुप से अत्यंत प्रतिभाशाली मुल्क ताइवान को युद्ध की आग में झोंका जाए.
ताइवान ने भी बीते सालों में भारत के साथ अपने रिश्तों को मजबूत किया है, ताकि चीन पर अपनी आर्थिक निर्भरता कम की जा सके. दिसंबर 2017 में ताइवान और भारत के बीच औद्योगिक सहयोग को लेकर एक एमओयू पर हस्ताक्षर हुए थे. इस समझौते को लेकर चीन और ताइवान की मीडिया में खूब चर्चा रही. ताइवानी मी़डिया जहां समझौते की सराहना कर रहा था कि इससे दोनों पक्षों के बीच व्यापार और निवेश को बढ़ावा मिलेगा. वहीं चीन के सरकारी अख़बारों ने इस समझौते को लेकर भारत को चेताया था. उसके बाद भारत और ताइवान ने 2018 में एक नए द्विपक्षीय निवेश समझौते पर दस्तखत किए थे. वाणिज्य विभाग के मुताबिक़, 2019 में दोनों देशों के बीच कारोबार 18 फीसदी बढ़कर 7.2 अरब डॉलर पर पहुंच गया था. ताइवानी कंपनी फॉक्सकॉन भारत में बड़ा कारोबार करती है, जो दोनों देशों के मधुर संबंधों का सबसे बड़ा सबूत है.
टेक्नोलॉजी का बेताज बादशाह है ताइवान
गौर करने वाली बात ये है कि ताइवान दुनिया का अकेला ऐसा मुल्क है, जिसे टेक्नोलॉजी की दुनिया का बेताज बादशाह माना जाता है. शायद यही वजह है कि पिछले इतने सालों में चीन उस पर चाहते हुए भी हमला नहीं कर पाया क्योंकि इससे खुद उसे भी बड़े आर्थिक नुकसान का डर सता रहा था. दरअसल, ताइवान दुनिया भर में एडवांस्ड सेमीकंडक्टर चिप्स का लीडिंग प्रोडक्ट देश है और इसी वजह से चीन की सेना उसके खिलाफ हमला नहीं कर पाती है. सेमीकंडक्टर चिप को किसी भी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस का दिमाग माना जाता है. ये ताइवान का एक ऐसा अहम उद्योग है जिस पर लड़ाकू विमानों से लेकर सोलर पैनल तक और वीडियो गेम्स से लेकर मेडिकल उपकरण तक के सारे उद्योग इसी पर निर्भर हैं.
पत्रकार क्रेग एडिशन ने अपनी किताब 'सिलिकॉन शील्ड- प्रोटेक्टिंग ताइवान अगेंस्ट अटैक फ्रॉम चाइना' के शीर्षक में एक शब्द गढ़ा है, जिसे नाम दिया गया है- सिलिकॉन शील्ड.' ताइवान की ये रणनीति 'सिलिकॉन शील्ड' की तरह काम करती है. ताइवान के लिए ये एक तरह का ऐसा 'हथियार' है जिसे कोई और देश निकट भविष्य में आसानी से नहीं बना सकता है.
दुनिया के बाकी देशों की तरह चीन भी ताइवान में बनने वाली एडवांस्ड सेमीकंडक्टर चिप्स पर निर्भर है. ये ऐसे खास चिप होते हैं जिनपर सेमीकंडक्टर सर्किट बनाए जाते हैं. ये चिप सिलिकॉन से बने होते हैं. दुनिया के लगभग सभी तकनीकी उत्पादों की जान इन्हीं चिप्स में बसती है. पत्रकार्र क्रेग के मुताबिक़ दुनिया के इस सेक्टर में युद्ध का असर इतना व्यापक हो सकता है कि चीन या अमेरिका भी उससे बचे नहीं रह सकेंगे.
अमेरिका पर भी होगा असर
इसलिए एक बड़ा सवाल उठता है कि अमेरिका आखिर ताइवान की मदद के लिए आगे क्यों आएगा? तो विशेषज्ञों का जवाब ये है कि चीन अगर ताइवान पर कब्जा कर लेता है तो उसके हाथ में दुनिया की सबसे उन्नत चिप फैक्ट्रियां आ जाएंगी. इसका सीधा असर अमेरिका पर भी होगा. बीते कई दशकों में अमेरिका ने ताइवान को भारी हथियार भी बेचे हैं, चीन के हाथों में ये हथियार भी आ जाएंगे. लिहाजा ये सोचना बेमानी है कि अमेरिका हाथ पर हाथ धरे ये सब होता देखता रहेगा.
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