जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री एवं पीडीपी मुखिया महबूबा मुफ्ती ने तालिबान के बहाने केंद्र सरकार को जो चेतावनी दी है, वह भड़काने वाली है, जिसे कबूल नहीं किया जा सकता. विशेष राज्य का दर्जा वापस लिए जाने के बाद कश्मीर घाटी में अब अमन-चैन व खुशहाली का माहौल बन रहा है. ऐसे वक्त में महबूबा ने वहां के लोगों की धार्मिक भावनाओं को भड़काने की जो सियासत खेली है, उसे देशभक्ति के दायरे में तो कतई नहीं रखा जा सकता.


दरअसल, ऐसे बयानों से महबूबा जैसे नेताओं का तो ज्यादा कुछ बिगड़ता नहीं है, लेकिन देश के आम मुसलमान के लिए एक नई मुसीबत खड़ी हो जाती है क्योंकि इससे समाज में ये संदेश जाता है कि हर मुसलमान तालिबानी आतंकियों का हमदर्द है. जबकि हक़ीक़त में ऐसा नहीं है. चंद सिरफिरे कट्टरपंथी नेताओं को छोड़कर एक आम मुस्लिम अपनी दो वक़्त की रोटी कमाने की जुगाड़ में जुटा हुआ है, जो कभी नहीं चाहेगा कि मुल्क का माहौल ऐसा खराब हो जाए कि उसे अपने रोजगार के ही लाले पड़ जाएं. सच तो ये है कि भारत के अधिकांश मुस्लिमों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार बने या किसी और की क्योंकि इससे उनकी जिंदगी नहीं बदलने वाली है.


वैसे भी महबूबा मुफ्ती अपने बिगड़ैल बोलों के जरिये नफ़रत वाली सियासत करने के लिए मशहूर रही हैं. लेकिन अब वे धारा 370 को दोबारा लागू करने और राज्य को विशेष दर्जा वापस दिलाने की मांग का झंडाबरदार बनकर लोगों को भड़का रही हैं, जिसे लोकतंत्र में कोई भी सरकार ज्यादा दिनों तक बर्दाश्त नहीं कर सकती.


शनिवार को सूबे के कुलगाम की एक सभा में महबूबा ने अपने भाषण में जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल किया है, वह गैर जिम्मेदाराना होने के साथ ही देशद्रोह की श्रेणी में आता है. लोकतंत्र में सरकार के खिलाफ आवाज़ उठाने का अधिकार सबको है, लेकिन उसे आरपार की लड़ाई के लिए चेतावनी देने को राजद्रोह से कम नही आंका जा सकता.


जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा दोबारा दिए जाने का राग अलापते हुए महबूबा मुफ्ती ने कहा कि, "तालिबान ने अमेरिका को भागने पर मजबूर किया. हमारे सब्र का इम्तेहान मत लो. जिस दिन सब्र का इम्तेहान टूटेगा, आप भी नहीं रहोगे. मिट जाओगे."


उनका ये बयान सरकार के लिए सीधी धमकी तो है ही, साथ ही इसमें ये इशारा भी है कि अगर उनकी बात नहीं मानी गई, तो आने वाले दिनों में वे इसके लिए तालिबानी या दूसरे आतंकी समूहों की मदद लेने की हद तक भी जा सकती हैं. इसीलिये इसे एक खतरनाक चेतावनी के तौर पर देखा जा रहा है.


महबूबा ने ये भी कहा कि "अगर केंद्र सरकार जम्मू कश्मीर में शांति सुनिश्चित करना चाहती है. तो उसे आर्टिकल 370 बहाल करना होगा. अगर सरकार वाजपेयी के सिद्धांत पर वापस नहीं आती है और बातचीत शुरू नहीं करती, तो बर्बादी होगी. कश्मीरी कमजोर नहीं हैं, वे बहुत बहादुर और धैर्यवान हैं. धैर्य रखने के लिए बहुत हिम्मत चाहिए. जिस दिन सब्र की दीवार टूट जाएगी, तुम परास्त हो जाओगे."


जबकि सरकार के कई मंत्री कई मंचों से ये साफ कर चुके हैं कि अब आर्टिकल 370 किसी भी सूरत में बहाल नहीं होगा. उसके बावजूद सिर्फ इसी एक मुद्दे पर अगर महबूबा अपनी सियासत आगे जारी रखना चाहती हैं, तो मतलब साफ है कि न तो उनके इरादे नेक हैं और न ही वे घाटी में शांति कायम रखने देना चाहती हैं. 


हालांकि महबूबा को अपने इस बयान पर दूसरे कश्मीरी नेताओं का साथ नहीं मिला है, लेकिन भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रविंद्र रैना ने उन पर निशाना साधते हुए उन्हें देशद्रोही करार दिया है. रैना के मुताबिक उन्होंने जम्मू कश्मीर के देशभक्त लोगों का अपमान किया है. महबूबा मुफ्ती कश्मीर में तालिबान राज चाहती हैं. लेकिन हमारी सरकार सभी आतंकियों का सफाया कर देगी. 


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)