दुनिया के सबसे ताकतवर और आतंकवाद का खात्मा करने की कमान अपने हाथों में संभालने वाले मुल्क अमेरिका की घरेलू हक़ीक़त का खुलासा अगर आपके सामने किया जाए तो शायद पहली नज़र में ही आप ये कहते हुए उसे ठुकरा सकते हैं कि भला,ऐसे कैसे हो सकता है. लेकिन जी हां, यही वो सच्चाई है कि जिस अमेरिका ने 20 साल तक अफगानिस्तान में आतंक के खात्मे के मिशन को पूरा किया बगैर वहां से अपना बोरिया-बिस्तर समेट लिया. .आज वही मुल्क अपने यहां होने वाली रोजमर्रा की 'बंदूकी हिंसा' से निपटने के लिए बेबस नज़र आ रहा है. उसे ये समझ ही नहीं आ रहा कि उसने आतंकवाद से निपटने और लोगों में सुरक्षा की भावना पैदा करने के मकसद से जो कानून बनाया था, वो आज उसके अपने ही घर को तबाही की तरफ ले जा रहा है. वो एक ऐसा समाज तैयार कर रहा है, जहां लोग अब गुस्से को बातचीत से सुलझाने की बजाय अपनी रिवॉल्वर का ट्रिगर दबाने में ज्यादा भरोसा करने लगे हैं.


खुद का कानून बना 'जी का जंजाल'
वैसे तो अमेरिका के 40 से भी ज्यादा राज्यों में ऐसा कानून है कि कोई भी व्यक्ति बगैर लाइसेंस के या बिना किसी ट्रेनिंग के अपना हथियार सार्वजनिक जगहों पर ले जा सकता है, जिसमें गोलियों से भरी यानी लोडेड रिवाल्वर से लेकर सेमी-ऑटोमैटिक राइफल तक शामिल हैं. न पुलिस उसे टोकेगी और न ही कोई और एजेंसी उससे जवाब तलब करेगी. ये कानून बनाने के पीछे मकसद तो ये था कि हर आम इंसान खुद को सुरक्षित समझने के साथ ही किसी इमरजेंसी वाली हालत में आतंकवाद का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए भी तैयार रहेगा. लेकिन इसके ऐसे उल्टे नतीजे सामने आ रहे हैं, जिसके बारे में अमेरिकी सरकार ने सोचा भी नहीं था कि ये उसके लिए जी का जंजाल बन जाएगा. हालांकि पांच राज्य अभी भी ऐसे हैं, जहां सार्वजनिक स्थानों पर राइफल ले जाने के लिए लाइसेंस अपने साथ रखना अनिवार्य है.


टेक्सास में भी आम हुई गोलीबारी
अमेरिका का टेक्सास अकेला ऐसा राज्य बचा हुआ था, जहां लोगों को कानूनन ऐसी छूट अब तक नहीं मिली थी लेकिन कंज़र्वेटिव एक्टिविस्ट पिछले कई साल से इतने उतावले थे कि उन्होंने तमाम विरोध के बावजूद पिछले जून में अपने बहुमत के जरिए सदन से इस कानून को पारित कराकर इसे लागू भी करवा दिया. इसका हश्र ये हुआ कि वहां गोलीबारी की घटनाओं में 14 फीसदी से भी ज्यादा का इजाफा हो गया. अमेरिकन एजेंसी 'गन वायलेंस आर्काविव' के मुताबिक शूटिंग यानी गोलीबारी की अब तक 3200 वारदातें हो चुकी हैं. पिछले साल से इसकी तुलना करें, तो इसी समयावधि में ऐसी 2800 घटनाएं हुईं थीं. अगर साल 2019 से इसे मापा जाए तो इसमें सीधे 50 फीसदी का इज़ाफ़ा हुआ है क्योंकि तब ऐसी घटनाओं की संख्या 2100 थी.


पूरे देश में बढ़ीं वारदातें
ये आंकड़े सिर्फ एक राज्य के हैं और इसमें सामूहिक गोलीबारी की वारदातों का जिक्र नहीं है. अगर पूरे देश में मास शूटिंग यानी एक ही बार में कई लोगों पर हमला करने की बात करें तो 31 अगस्त तक ऐसी 464 वारदातों को अंजाम दिया गया जिसमें कई लोग मारे गए और अनगिनत जख्मी हुए. जबकि पिछले साल इसकी संख्या 418 थी और उससे पहले यानी 2019 में ऐसी 286 वारदातें हुई थीं.


पुलिस नहीं रोक पा रही फायरिंग की घटानाएं
मुल्क चाहे जो भी हो, ऐसी हिंसक वारदातों को रोकने या उसका मुकाबला करने की जिम्मेदारी आखिर पुलिस की ही होती है. लेकिन ये छूट मिलने के बाद  वहां की पुलिस को समझ नहीं आ रहा कि वो ऐसी वारदातों को आखिर रोके भी तो भला कैसे. इस कानून के मुताबिक न तो वो किसी से जवाब तलब कर सकती है कि भाई, ये जो हथियार लेकर आप सार्वजनिक जगह पर आए हो, इसका लाइसेंस कहां है और इसे चलाना जानते भी हो कि नहीं? और इससे भी ज्यादा बड़ी बात ये कि वो ऐसे किसी शख्स से ये भी नहीं पूछ सकती कि तुम हो कौन? शरीफ इंसान हो, अपराधी हो या फिर आतंकवादी हो.


टेक्सास की राजधानी डलास के पुलिस चीफ Eddie Garcia कहते हैं, "हमारे लिए तो अब सबसे बड़ी मुसीबत ये बन गई है कि आखिर हम ये कैसे तय करें कि हथियार लेकर घूम रहा व्यक्ति सभ्य है या बुरा है और इस बात की क्या गारंटी है कि वो अपने हथियार के बल पर कोई अपराध नहीं करेगा. इस कानून ने तो हमारे हाथ ही बांध दिए हैं."


'कानून नहीं हिंसा करने का परमिट है'
ऐसा नहीं है कि निजी सुरक्षा के नाम पर लोगों को इतनी बड़ी छूट देने के खिलाफ वहां कोई आवाज़ उठाने वाला नहीं है. पुलिस के अलावा भी कई संगठन है और उनसे जुड़े समझदार लोग भी हैं लेकिन उनकी सुनता कौन है क्योंकि लोकतंत्र में तो सिर्फ बहुमत के आधार पर ही सरकारें अपने मनमाने फैसले लेती हैं. बंदूक के दम पर होने वाली हिंसा को रोकने के लिए बने सबसे बड़े संगठन 'गन सेफ्टी' के पालिसी विशेषज्ञ एंड्रू कार्वोस्की कहते हैं, "ये एक तरह से समाज में हिंसा को बढ़ावा देने का परमिट है, जो टेक्सास की सरकार ने अब सबको दे दिया है. न तो आपको उस शख्स का इतिहास पता है और न ही उससे कोई ये पूछ सकता है कि जिस हथियार को लेकर तुम घूम रहे हो, उसे चलाना भी आता है कि नहीं. ये बेहद खतरनाक है और आने वाले दिनों में इसके बेहद बुरे-भयावह नतीजे हमें देखने को मिलेंगे."


बाइडेन के आने बढ़ीं वारदातें
राष्ट्रपति जो बाइडन के पद संभालने के तुरंत बाद देश में गोलीबारी की घटनाओं में एकाएक तेजी आ गई थी, जिसके बाद उन्होंने बंदूक नियंत्रण उपायों को लेकर जो कदम उठाए थे, वे हक़ीक़त में कारगर होते अभी तक तो नहीं दिखे. इसीलिए किसी शायर ने लिखा है, "पड़ोसी का जलता घर देख तू इतना खुश न हो, उसकी तपिश तेरे घर की दिवारें टूटने का पैगाम लाई है."


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