BLOG: शरद पवार से एक मुलाकात, इंटरव्यू के पीछे की दिलचस्प कहानी
अंदर कमरे में हमारे सहयोगी मराठी चैनल एबीपी माझा का इंटरव्यू ख़त्म हो चुका था. अब बारी हमारी थी. मेरे सामने शरद पवार सफ़ेद शर्ट और ब्लैक पैंट में बैठे हुए थे.
पवार साहेब दिल्ली में 6 जनपद के सरकारी बंगले पर रहते हैं. दिल्ली से लेकर मुंबई तक शरद पवार को लोग इसी नाम से जानते हैं. महाराष्ट्र में सरकार बना कर वे लौटे हैं. हमें लगा कि घर के बाहर भीड़ लगी होगी. लोग मिठाइयां और बूके लेकर लाइन में होंगे. लेकिन बंगले के बाहर एक भी गाड़ी नहीं थी. दिल्ली में चलन है बड़े नेताओं के नाम पर होर्डिंग लगाने का. जिसमें छोटे नेता निवेदक के बहाने अपनी भी फ़ोटो लगा लेते हैं. पवार साहेब के घर के आस पास एक भी ऐसी होर्डिंग नहीं थी. कोई और होता तो चाणक्य वाले होर्डिंग से पूरा इलाक़ा पट जाता.
सीनियर लीडर होने के कारण शरद पवार को बड़ा बंगला मिला है. जब हम अंदर पहुंचे तो उनके कुछ स्टाफ़ बाहर बैठे मिल गए. सब आपस में मराठी में बात कर रहे थे. टीवी पर लोकसभा चैनल लगा हुआ था. इसी बीच सुप्रिया सुले टीवी पर नज़र आ गईं. वे लोकसभा में बोल रही थीं. अचानक ही स्टाफ़ रूम में अफ़रातफ़री मच गई. मोबाइल फ़ोन निकाल कर एक महिला ने रिकार्डिंग शुरू कर दी. मोबाइल स्टैंड पर लगा हुआ था. मैंने पूछा - आप क्या कर रही हैं ? तो जवाब मिला सुप्रिया के भाषण का फ़ेसबुक लाइव हो रहा है. सुप्रिया अंग्रेज़ी में बोल रही थीं. मेरे सामने खड़ी महिला ने बताया कि मराठी अनुवाद के साथ वीडियो बना कर सोशल मीडिया में पोस्ट होगा. जिससे घर-घर में हमारी बात पहुंच जायेगी. मुझे बताया गया कि वो महिला आईआईटी से इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर चुकी हैं. पवार साहेब के घर पर जो लोग उद्धव ठाकरे के बारे में बातें कर रहे थे. सरकार कैसे चलेगी ? कब तक चलेगी ? ठाकरे को सरकार चलाने का अनुभव नहीं हैं. अधिकारियों से वे कैसे डील करेंगे ? इसी बीच अंदर से इंटरव्यू के लिए बुलावा आ गया.
अंदर कमरे में हमारे सहयोगी मराठी चैनल एबीपी माझा का इंटरव्यू ख़त्म हो चुका था. अब बारी हमारी थी. मेरे सामने शरद पवार सफ़ेद शर्ट और ब्लैक पैंट में बैठे हुए थे. उनके चेहरे पर कहीं कोई थकान नहीं थी. ऐसा लग ही नहीं रहा था कि वे कोई बहुत बड़ा काम कर मुंबई से लौटे हैं. शुरुआती अभिवादन हुआ. हमने एक दूसरे का हाल चाल पूछा. मेरे सामने एक ऐसे नेता थे जिनका 50 साल का राजनैतिक अनुभव रहा है. वे चार बार महाराष्ट्र के मुख्य मंत्री रहे. केन्द्र में कई बार मंत्री रहे. बीसीसीआई के अध्यक्ष रहे. हमारे मन में कई सवाल थे. जो हम पवार साहेब से पूछना चाहते थे. वो पवार साहेब, जिनके बारे में कहा जाता है कि उनका दिमाग़ कोई नहीं पढ़ सकता है. वे जो कहते हैं, वे करते नहीं. और वे जो करते हैं, वे कहते नहीं. लेकिन मेरे पास सिर्फ़ दस मिनट का समय था.
सबसे पहला सवाल तो यही था कि शरद पवार ने बीजेपी के साथ मिल कर सरकार क्यों नहीं बनाई. उनके दोनों हाथों में लड्डू होते. केन्द्र में भी सत्ता में हिस्सा मिलता और राज्य में भी. भतीजे अजीत पवार और सांसद प्रफुल्ल पटेल को मुक़दमों में रिलीफ़ मिल जाता. लेकिन पवार साहेब ने मुश्किल रास्ता चुना. उन्होंने बताया कि पीएम नरेन्द्र मोदी ने उन्हें ऑफ़र दिया था. लेकिन उन्होंने मना कर दिया. पवार साहेब ने बताया कि सोनिया गांधी शिव सेना के साथ सरकार बनाने को बिल्कुल तैयार नहीं थी. दिल्ली में उनसे मिल कर बहुत समझाया, फिर वे तैयार हुईं. उन्होंने ये भी बताया कि उद्धव ठाकरे सीएम बनने को राज़ी नहीं थे. ठाकरे को भी ये ज़िम्मेदारी लेने के लिए मनाया. अब वे बीजेपी के ख़िलाफ़ विपक्षी पार्टियों को एकजुट करना चाहते हैं.
शरद पवार से बातचीत का ये मेरा पहला अनुभव था. वे एक ऐसे राजनेता रहे हैं, जिनके बारे में सालों से पढ़ता, सुनता और देखता रहा हूं. महाराष्ट्र विधान सभा चुनाव के दौरान पुणे में उनकी एक रैली में भी जाने का मौक़ा मिला था. इंटरव्यू ख़त्म होते ही उन्होंने चाय के बारे में पूछा. हमने तुरंत हां कर दी. पवार साहेब के साथ चाय पर चर्चा का मौक़ा भला कौन छोड़ सकता है. बाहर के कमरे में एनसीपी के कुछ नेता उनका इंतज़ार कर रहे थे. चाय ख़त्म होते ही वे उठ खड़े हुए. हमने एक दूसरे को नमस्कार किया और फिर उनके बंगले से बाहर निकल गए.
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)