दिन के अंत में क्रिकेट भी एक खेल है, जहां आप कुछ मैच जीतेंगे और कुछ मैच हारेंगे. ये बात क्रिकेट में कप्तानों का पसंदीदा वाक्य रही है. इस वाक्य में किसी भी खेल की ‘फिलॉसफी’ भी है. बात साफ है कि आप हर बार मैच जीत नहीं सकते.


आप कितने भी बड़े खिलाड़ी हों हर वक्त आपकी तारीफ नहीं हो सकती है. कभी ना कभी वो दिन आएगा जब लोग आपकी आलोचना करेंगे. आपके प्रदर्शन को कटघरे में खड़ा करेंगे. आपसे सवाल पूछे जाएंगे. अगर बतौर खिलाड़ी आप इन बातों के लिए तैयार नहीं है तो निश्चित तौर पर आपको दिक्कत होगी. कुछ ऐसी ही हालत इन दिनों दिल्ली डेयरडेविल्स की टीम की है.

दिल्ली की टीम अब तक खेले गए 6 में से 5 मैच हार चुकी है. वो प्वाइंट टेबल में सबसे नीचे की टीम है. सोमवार को किंग्स इलेवन पंजाब के खिलाफ उसे संजीवनी बूटी मिली थी, लेकिन जरूरत से ज्यादा नकारात्मक खेल ने उस संजीवनी बूटी का फायदा भी नहीं मिलने दिया. नतीजा सिर्फ 144 रनों के लक्ष्य का पीछा दिल्ली डेयरडेविल्स की टीम नहीं कर पाई. दिल्ली के गेंदबाजों ने जो मेहनत की थी उसके बल्लेबाजों ने उस पर पानी फेर दिया. कहां हो रही है चूक? इस सवाल का जवाब तलाशने निकलें तो लगता है कि टीम के कप्तान गौतम गंभीर की जरूरत से ज्यादा तनाव लेने की आदत टीम पर भारी पड़ रही है.

सुर्खियों में आया था जरूरत से ज्यादा तनाव वाला बयान  
16 तारीख को दिल्ली का मुकाबला कोलकाता से था. गौतम गंभीर कोलकाता के कप्तान रहे हैं. अपनी कप्तानी में उन्होंने टीम को दो बार आईपीएल चैंपियन बनाया है. उनकी बनाई गई रणनीतियां अब भी कोलकाता के काम आ रही हैं. निश्चित तौर पर आप जिस टीम के कप्तान रहे हों उसके खिलाफ मैच में उतरना अलग ही होता है. दिल्ली के साथ बुरा ये हुआ कि उस मैच में दिल्ली को 71 रनों से बड़ी हार का सामना करना पड़ा. ये आईपीएल की इस सीजन की सबसे बड़ी हार थी.

इसके बाद दिल्ली के फैंस ने टीम के प्रदर्शन पर सवाल उठाए. गंभीर की कप्तानी को लेकर भी उंगलियां उठीं. गौतम गंभीर आहत हो गए. एक रोज बाद गोतम गंभीर का अखबार में कॉलम आया. जिसमें उन्होंने कहा कि उनकी टीम ने खराब शुरूआत की है लेकिन उन्होंने कोई अपराध नहीं किया है. ये बयान बताता है कि गंभीर तनाव में हैं. उन्हें पता है कि क्रिकेट फैंस किसी को बख्शते नहीं हैं. गंभीर लंबे समय तक टीम इंडिया का हिस्सा रहे हैं उन्हें पता है कि खिलाड़ियों पर मीडिया का कितना प्रेशर रहता था. अब तो सोशल मीडिया का दौर है. ऐसे में कामयाबी के लिए जरूरी है कि खिलाड़ी अपने प्रदर्शन पर ध्यान दें ना कि इस बात पर कि उसके या टीम के बारे में क्या कहा जा रहा है.

खुद के खराब प्रदर्शन का भी है गंभीर पर दबाव
इस सीजन में अब तक गौतम गंभीर की अपनी फॉर्म बहुत खराब चल रही है. अब तक खेले गए 6 मैचों में उनके नाम सिर्फ 85 रन हैं. इसमें से भी 55 रन उन्होंने एक ही मैच में बनाए थे. गौतम गंभीर की स्ट्राइक रेट 100 से भी कम की है. टी-20 के फॉर्मेट में टॉप ऑर्डर में खेलने वाले बल्लेबाज की स्ट्राइक रेट अगर 100 से कम की है तो ये बताता है कि वो दबाव में बल्लेबाजी कर रहा है.



गौतम गंभीर की गिनती एक आक्रामक बल्लेबाज की रही है. वो स्पिन और तेज गेंदबाज दोनों को खेलने में माहिर हैं. कोलकाता को जब उन्होंने चैंपियन बनाया था तब उसमें उनके बल्ले का भी बड़ा रोल था. उनसे पहले कोलकाता की टीम सौरव गांगुली समेत कई कप्तानों को आजमा चुकी थी. ऐसे में गंभीर का टीम को चैंपियन बनाना उनकी काबिलियत का ही नतीजा था, लेकिन फिर गौतम दबाव में दिखने लगे. कोलकाता की टीम पिछले तीन सीजन में फाइनल तक भी नहीं पहुंच पाई.

इधर टीम इंडिया से भी गौतम के बाहर रहने का अंतराल बढ़ता चला गया. वन डे खेले तो उन्हें पांच साल बीत गए थे, टेस्ट में भी वो लगातार बाहर ही रहे. ये भी दिखने लगा कि अब अंतर्राष्ट्रीय टीम में उनकी वापसी के दरवाजे बंद है. कहीं ऐसा तो नहीं इन्ही दबावों ने दिल्ली से वो कप्तान छीन लिया है जिसमें अब भी अपनी टीम को जीताने का दमखम है. भूलना नहीं चाहिए कि ये वही गौतम गंभीर हैं जिनके 97 रनों की बदौलत भारत ने 2011 विश्व कप जीता था. फाइनल के जितने बड़े हीरो धोनी हैं उतने ही गंभीर भी. बस उनका योगदान लोगों ने जल्दी ही भूला दिया.