पाकिस्तान के सजायाफ्ता पूर्व पीएम नवाज शरीफ का लंदन से स्वदेश लौटना इतिहास को दोहराने जैसी घटना है. भले ही नैतिक ऊंचाई हासिल करने के लिए शरीफ दावा कर रहे हैं कि पाक का कर्ज उतारने और नई पीढ़ी की भलाई के लिए वह लौटे हैं, लेकिन उनकी पार्टी पीएमएल-एन के लाखों समर्थकों की मौजूदगी के बावजूद उनके लिए हालात इस बार बेहद संगीन हैं.


साल 1999 में नवाज के चहेते सेना प्रमुख परवेज मुशर्रफ ने सेना की मदद से उन्हें प्रधानमंत्री पद से हटाकर परिवार समेत 10 सालों के लिए देशनिकाला दे दिया था और तख्तापलट करके खुद राष्ट्रपति बन बैठे थे. लेकिन अंतर्राष्ट्रीय दबाव में 2007 के आखिर में नवाज की शांतिपूर्ण ढंग से पाकिस्तान वापसी संभव हो गई थी. आज शरीफ के मित्र राष्ट्राध्यक्ष उंगलियों पर गिनने लायक नहीं हैं और अब वह यूएसए और चीन के काम के भी नहीं रह गए. नवाज शरीफ़ जब दोबारा पीएम बने थे तो 2008 में मुशर्रफ को स्वनिर्वासन में लंदन भागना पड़ा. और इस बार 10 वर्षों की सजा का बोझ उठाए नवाज शरीफ अपने परिवार के साथ लंदन से स्वदेश लौटे हैं, तो भयंकर सियासी तूफान उठ खड़ा हुआ है.


एक जमाना था, जब पाकिस्तान के पूर्व पीएम नवाज शरीफ हिंदी कवि सम्मेलनों का आकर्षक विषय हुआ करते थे. सीमा पार आतंकवाद और घुसपैठ को लेकर भारत के मंचीय कवि शरीफ की शराफत पर तंज और प्रहार करते हुए वीर रस से लेकर हास्य रस से सराबोर कविताएँ रचते थे और मंच लूट लिया करते थे. लेकिन नवाज शरीफ अब वाकई शरीफ नहीं रह गए! एवियनफील्ड अपार्टमेंट समेत कई घोटालों में सबूत मिलने के बाद पाकिस्तान के भ्रष्टाचार निरोधक नेशनल एकाउंटेबिलिटी ब्यूरो (नैब) ने पिछले दिनों उन्हें 10 वर्षों के कठोर कारावास की सजा सुनाने के साथ-साथ उनके चुनाव लड़ने पर भी पूरी तरह रोक लगा दी है.



नवाज शरीफ की बेचैनी की वजह यह भी है कि उनका पूरा कुनबा मुसीबतों में घिर गया है. गले के कैंसर की वजह से उनकी पत्नी कुलसूम शरीफ की तबियत बेहद नाजुक है. उनकी बेटी मरियम को भ्रष्टाचार के एक मामले में 7 वर्ष की कठोर सजा सुनाई गई है. सुनवाई में सहयोग नहीं करने के कारण एक साल की सजा पाए शरीफ के दामाद कैप्टन मोहम्मद सफदर को पिछले हफ्ते ही गिरफ्तार किया गया है. कहा जा रहा है कि राजनीतिक कहर से बचने के लिए शरीफ दंपति के दोनों बेटे हसन नवाज और हुसैन नवाज भी ब्रिटेन जाकर कहीं छिप गए हैं. हालांकि नवाज शरीफ ने अदालत के सामने गुहार लगाई थी कि कोई भी फैसला उनके स्वदेश लौटने पर सुनाया जाए, पर अदालत ने अनसुनी कर दी.


शरीफ का परिवार दोबारा अपनी छवि चमका कर ही पाकिस्तान में प्रतिष्ठा और पद वापस पा सकता है, लेकिन उसके पास इसका पर्याप्त समय ही नहीं है. वहां संसद और विधानसभा के चुनाव एक ही दिन 25 जुलाई को होने जा रहे हैं. प्रशासन ने शरीफ समेत उनके परिवार के किसी भी सदस्य का सरकारी टीवी पर बयान या तस्वीर दिखाया जाना प्रतिबंधित कर दिया है और निजी टीवी चैनलों के कान उमेठ दिए हैं. ऐसे में शरीफ के लिए जनता के सामने अपनी किसी भी बेगुनाही का पक्ष रखना दूभर हो जाएगा. वह चुनाव से पहले भ्रष्टाचारी और देशद्रोही होने का कलंक अपने माथे से पोंछ नहीं पाएंगे.


शरीफ को कई मोर्चों पर मुकाबला करना है. एक तो अदालती लड़ाई सामने ही है, क्योंकि सजा के खिलाफ उच्च और सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने की उन्हें छूट दे दी गई है. दूसरे, सेना के खिलाफ वह इतना पित्त उगल चुके हैं कि पाकिस्तानी जनरल आसानी से उन्हें माफ नहीं करेंगे. शरीफ ने यहां तक कहा है कि पाकिस्तान में अदालत और सेना ने हाथ मिला लिया है और उन्हें मिली कठोर सजा इसी का नतीजा है! मुंबई हमलों के लिए पाकिस्तान को दोषी बताकर शरीफ ने पिछले दिनों कट्टरपंथियों से भी दुश्मनी मोल ले ली थी और जनता को भड़काने वाले इमरान खान जैसे प्रबल विरोधी उनके पीछे हाथ धोकर पीछे पड़ गए हैं. टीवी चैनलों और अखबारों में आए दिन उन्हें देशद्रोही साबित किया जा रहा है.



नवाज शरीफ भले ही अपनी सजा को पाकिस्तान का असली हित चाहने और भारत-पाक रिश्तों का 70 वर्षीय इतिहास बदल कर रख देने की कोशिश का नतीजा बता कर सहानुभूति हासिल करने में जुटे हों, लेकिन इतना तो वह भी जानते हैं कि उनके लिए दोबारा सत्ता का शिखर छूना बेहद मुश्किल है. हालांकि इतिहास में इस बात के उदाहरण मिलते हैं कि मुशर्रफ, भुट्टो और जरदारी जैसे पाक सत्ताधीशों ने तख्तापलट या चुनावी रास्तों से पाकिस्तान में दोबारा दबदबा बनाने में कामयाबी हासिल की है. अगर शरीफ अदालती लड़ाई के माध्यम से वापसी की कोशिश करेंगे तो इसके लिए उनकी उम्र इजाजत नहीं देगी, क्योंकि वह 70 के करीब हैं और भारत की ही तरह फैसले आने में वहां भी वर्षों लग जाते हैं. जेल में तो उन्हें और गहरी साजिशें झेलनी पड़ेंगी.


फिलहाल शरीफ परिवार के सामने एक तरीका यह है कि वह पाकिस्तानी सेना के खिलाफ माहौल बनाए. लेकिन यह दूर की कौड़ी ही कही जाएगी, क्योंकि जब पीएम पद पर रह कर सेना से पंगा लेने की हिम्मत वह नहीं जुटा पाए, तो जेल से यह कितना कारगर साबित होगा. पनामा पेपर्स का भूत भी उनका पीछा आसानी से नहीं छोड़ने वाला है. यानी अब पाकिस्तान में शरीफ युग का अंत ही समझिए!


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