BLOG: हरफनमौला कादर खान का हर अंदाज निराला था
इंसान को दिल दे, जिस्म दे, दिमाग दे,लेकिन ये कमबख्त पेट मत दे. उसे पेट देता है तो उसे भूख मत दे. उसे भूख देता है तो दो वक्त की रोटी का इंतजाम करके भेज. वर्ना तुझे इंसान को पैदा करने का कोई हक़ नहीं है. यह डायलॉग साल 1974 में आई फिल्म 'रोटी' के क्लाईमेक्स का है. इस फिल्म और इस डायलॉग को तब इतनी लोकप्रियता मिली कि यह फिल्म तो सुपर हिट हो ही गयी. साथ ही भारतीय सिनेमा में इस डायलॉग के कारण एक ऐसे डायलॉग लेखक का भी जन्म हुआ जिसका नाम था कादर खान. बाद में यही कादर खान एक ऐसे हरफन मौला बनकर चमके कि एक दौर में पूरा फिल्म उद्योग इन्हीं के इर्द गिर्द घूमता था. एक डायलॉग लेखक, एक पटकथा लेखक, एक खलनायक, एक हास्य अभिनेता, एक चरित्र अभिनेता और भी न जाने क्या क्या.
लेकिन अब जब पूरी दुनिया साल 2019 का स्वागत कर रही है तभी कादर खान ने इस दुनिया को अलविदा कहकर जिंदगी से रुखसत ले ली है. यूं पिछले कुछ दिनों से कादर खान टोरंटो (कनाडा) के एक अस्पताल में जिंदगी और मौत से जूझ रहे थे. गत 30 दिसंबर की देर रात में भी यह खबर आई थी कि वह नहीं रहे लेकिन बाद में वह खबर गलत निकली. इससे पहले भी कई बार उनकी मौत की झूठी खबर इस तरह से वायरल हो चुकी हैं कि खुद उन्हें आगे आकर यह कहना पड़ा कि वह जिंदा हैं. इस बार भी लग रहा था कि उनकी हालात नाजुक होने के बावजूद जिस तरह बीच में कुछ ठीक हो रही है, तो वह इस बार भी मौत को मात देकर जिंदगी को गले लगा लेंगे. लेकिन ऐसा हो न सका.
उनकी सुपर हिट फिल्म 'मुकद्दर का सिकंदर' का वह गीत सच हो गया, "जिंदगी तो बेवफा है, एक दिन ठुकराएगी, मौत महबूबा है साथ लेकर जायेगी." फिल्म 'मुकद्दर का सिकंदर' में कादर खान ने डायलॉग तो लिखे ही थे. साथ में फ़कीर बाबा दरवेश की एक छोटी भूमिका भी की थी. फ़क़ीर बाबा के किरदार में उन्होंने सिकंदर (अमिताभ बच्चन) के बचपन की भूमिका कर रहे बाल कलाकार मयूर को एक डायलॉग बोला था, जो इस फिल्म का सबसे बड़ा आकर्षण भी था और इस फिल्म का निचोड़ भी. वह डायलॉग था, "इस फ़क़ीर की एक बात याद रखना, जिंदगी का अगर सही लुत्फ़ उठाना है न, तो मौत से खेलो. सुख को ठोकर मार, दुःख को अपना. अरे सुख तो बेवफा है, चंद दिनों के लिए आता है और चला जाता है. मगर दुःख तो अपना साथी है. अपने साथ रहता है. पौंछ ले अपने आंसू, दुःख को अपना ले. तकदीर तेरे कदमों में होगी और तू मुकद्दर का बादशाह होगा."
अफगानिस्तान से भारत पहुंचे
फिल्म 'रोटी' के डायलॉग हों या 'मुकद्दर का सिकंदर' के सभी फिल्मों के उनके डायलॉग असल में कादर खान की अपनी जिंदगी के वे दुःख दर्द बयां करते हैं जो उन्होंने बचपन से जवान होने तक खुद झेले. उनकी शुरूआती जिंदगी इतनी मुसीबतों और तकलीफों से गुजरी कि उनकी हालात देख पत्थर भी पिघल जाएं. अफगानिस्तान से भारत पहुंचे कादर खान का जन्म 22 अक्टूबर 1937 को अफगानिस्तान में काबुल के निकट हुआ था. इनके पिता अब्दुल रहमान खान और मां इकबाल बेगम के काबुल में तीन बच्चे हुए लेकिन जैसे ही बच्चा 8 साल का होता वह गुजर जाता. यह घटना क्रम लगातार तीन बार होने से मां का कलेजा फट उठता. इसलिए जब इनकी चौथी संतान के रूप में कादर का जन्म हुआ तो वहां की आबो हवा को अपने माफिक न मानकर उनके माता-पिता उन्हें लेकर मुंबई आ गए. लेकिन इनकी आर्थिक स्थिति इतनी खराब थी कि इन्हें मुंबई की स्लम बस्ती कमाठीपुरा में रहना पड़ा.
कादर खान ने एक बार बताया था कि यह बस्ती गंदगी के हिसाब से ही नहीं वैसे भी इतनी गन्दी थी कि यहां तमाम गंदे काम होते थे. ऊपर से नई जगह पर खाने-कमाने की दिक्कतें. कुछ ऐसे कारणों से कादर के वालिद और वालिदा में आए दिन इतना झगड़ा होने लगा कि नौबत तलाक तक पहुंच गयी. तलाक होने पर इनके पिता मुंबई में ही किसी दूसरी जगह एक मस्जिद रहकर काम करने लगे. जबकि इनकी वालिदा को मज़बूरी में इसलिए दूसरा निकाह करना पड़ा क्योंकि मुंबई की उस स्लम बस्ती में अकेली जवान और खूबसूरत औरत का रहना मुश्किल हो गया. लेकिन कादर के सौतेले पिता कुछ काम काज नहीं करते थे, इस कारण परेशानी और भी बढ़ गई. यहां तक मां-बेटे दोनों को कई बार दो-तीन दिन भूखा भी रहना पड़ता. लेकिन मां ने सब तकलीफ सहकर भी बेटे को कहा गरीबी से मैं लडूंगी तू तो बस पढ़. अगर तू पढ़ लिख कर कुछ बन जाएगा तो गरीबी दूर हो जायेगी. कादर पर इन सब बातों का बहुत गहरा असर पड़ा. हज़ार परेशानियों के बावजूद कादर ने पढाई करते करते मुंबई से सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर ली. बाद में यह एक कॉलेज में पढ़ाने भी लगे.
रंगमंच से जागा अभिनय का शौक
अपनी स्कूली पढाई के दौरान कादर अक्सर घर के पास एक कब्रिस्तान में जाकर बैठ जाते थे. वहां कभी जोर जोर से डायलॉग बोलते तो कभी कोई गाना गाते, कभी वहीं कुछ लिखने बैठ जाते. यहं तक रात को भी वहीं बैठे रहते. उसी दौरान एक व्यक्ति अशरफ खान ने इन्हें वहां देखा तो अपने एक नाटक 'मामक अजरा' में एक शहजादे का रोल दे दिया. कादर का काम सभी को पसंद आया और इससे उन्हें कुछ आय भी होने लगी. इसके बाद अपने कॉलेज में भी यह नाटक करने लगे और बाहर भी. यहां तक जब यह शिक्षक बन गए तब भी इनका नाटकों को करना जारी रहा.
एक बार इनका एक नाटक 'जागृति' एक नाट्य प्रतियोगिता में गया इस नाट्य प्रतियोगिता के जज थे राजेन्द्र सिंह बेदी, कामिनी कौशल और नरेंद्र बेदी. प्रतियोगिता का परिणाम आया तो इन्हें नाटक के लिए विभिन्न पुरस्कारों के अंतर्गत कुल 1500 रूपये का नगद पुरस्कार मिला तो वह ख़ुशी से उछल पड़े. कादर खान ने एक बार बताया था कि उस समय जहां वह पढ़ाते थे वहां उन्हें 350 रूपये का वेतन मिलता था. जिंदगी में एक साथ इतने रूपये पहली बार हाथ में आए थे. लेकिन यह तो खुशियों की पहली दस्तक थी. उसके बाद इनके जीवन में नित सफलताओं के नए नए द्वार खुलते चले गए. सफलता का दूसरा द्वार तो इस पुरस्कार के तुरंत बाद तब खुल गया जब फिल्मकार नरेंद्र बेदी ने अपनी नयी फिल्म 'जवानी दीवानी' के डायलॉग लिखने का प्रस्ताव कादर खान को दे दिया. हालांकि कादर शुरू में थोडा घबराए क्योंकि फिल्मों के लिए डायलॉग लिखना उनके लिए बिलकुल नया काम था. लेकिन कादर खान ने रणधीर कपूर और जया भादुड़ी वाली फिल्म के लिए ऐसे डायलॉग लिखे कि जब 1972 में प्रदर्शित हुई तो वे सभी को पसंद आए.
'रोटी' ने बदल दी किस्मत
'जवानी दीवानी' फिल्म के डायलॉग के लिए कादर खान को बेदी ने 1500 रूपये की वही राशि दी जितनी उन्हें नाट्य प्रतियोगिता के पुरस्कार के रूप में मिली थी. लेकिन अपनी एक फिल्म से ही कादर खान की कीमत इतनी बढ़ गयी कि इसके बाद उन्हें 'रफू चक्कर' फिल्म के डायलॉग के लिए सीधे 21 हज़ार रूपये मिले. तभी कादर खान की मुलाकात मनमोहन देसाई से हुयी तो उन्होंने कादर से कहा 'रोटी' फिल्म का कलाईमैक्स लिख कर दिखाओ. लेकिन मुझे शायरी वगैरह नहीं, ऐसे डायलॉग चाहियें जिसमें दर्शकों की ताली मिलें. तब कादर खान उपरोक्त डायलॉग वाले डायलॉग का क्लाईमेक्स लिख कर देसाई के पास ले गए.
देसाई ने ये डायलॉग और दृश्य सुना तो उनकी आँखों में चमक आ गयी. देसाई ने कादर खान से पूछा तुम और जगह डायलॉग लिखने का क्या ले रहे हो? कादर खान ने कहा कि मुझे तो अभी 21 हज़ार मिले हैं. देसाई ने कहा अब तुम मनमोहन देसाई के लेखक हो. मैं तुम्हें एक लाख 21 हज़ार दूंगा. यह सुनकर कादर खान के होश उड़ गए इससे पहले इतनी बड़ी राशि कादर खान के लिए एक ऐसा सपना थी. जिसकी कल्पना भी वह नहीं करते थे. कादर खान ने भी 'रोटी' के लिए ऐसे ऐसे डायलॉग लिखे कि फिल्म सुपर हिट हो गयी. फिल्म में जहां भावनात्मक डायलॉग थे वहां हास्य के रंग के डायलॉग भी बहुत थे. इस फिल्म की शूटिंग पहलगाम में हुई थी. जहां फिल्म की नायिका मुमताज़ एक ढाबा चलाती है. राजेश खन्ना जब मुमताज़ को बीड़ी पीता देखते हैं तो कहते हैं, "औरत होकर बीड़ी पीती हो तुमको शर्म नहीं आती." इस पर मुमताज़ का डायलॉग था, "और तुम मर्द होकर बीड़ी नहीं पीते तुमको शर्म नहीं आती."
सलीम जावेद को दी बड़ी चुनौती
सन 70 का दशक हिंदी सिनेमा के लिए एक ऐसा दशक था हिंदी सिनेमा नयी करवट ले रहा था. कादर खान से कुछ पहले ही 'अंदाज़' फिल्म से रमेश सिप्पी ने सलीम जावेद नाम के एक ऐसी जोड़ी को मौका दिया था जिसने आगे चलकर हिंदी सिनेमा के सारे समीकरण बदल दिए. इस जोड़ी ने हाथी मेरे साथी, सीता और गीता जैसी सुपर हिट फिल्मों के साथ प्रकाश मेहरा की 'ज़ंजीर' (1973) में अमिताभ बच्चन को ऐसे जबरदस्त डायलॉग दिए कि अमिताभ बच्चन यंग एंग्रीमेन बनकर राजेश खन्ना के बाद देश के दूसरे सुपर स्टार बन गए. अमिताभ के साथ सलीम जावेद के पास भी फिल्मों का ढेर लग गया. ऐसे में 'रोटी' के बाद कादर खान भी चमक गए. जिससे बड़ी बड़ी फ़िल्में इन दोनों के बीच बंटने लगी. सलीम जावेद की शानदार जोड़ी को कोई टक्कर देगा, ऐसा नहीं लगता था. लेकिन कादर खान ने इस जोड़ी के एकाधिकार को अच्छी चुनौती दी. सलीम जावेद की जहां दीवार, शोले, त्रिशूल, डॉन और मिस्टर इंडिया ने पटकथा डायलॉग के मामले में नया इतिहास लिख लोकप्रियता के नए आयाम बनाये. वहां कादर खान ने भी अमर अकबर एंथनी, परवरिश, मुकद्दर का सिकंदर, लावारिस, खुद्दार, कुली और शराबी जैसी सुपर हिट फ़िल्में देकर कादर खान ने भी अपना कद ऊंचा कर लिया.
अभिनय में भी पेश की नयी मिसाल
कादर खान ने करीब 250 फिल्मों के डायलॉग लिखे. हालांकि कुछ फिल्मों को लोकप्रिय बनाने के लिए कादर खान ने अश्लील और द्विअर्थी डायलॉग भी दर्शकों को परोसे. जिसके लिए उनकी आलोचना भी हुई. लेकिन बाद में उन्होंने अपनी इस गलती का सुधार किया. लेखन के बाद कादर खान की बहुमुखी प्रतिभा का तब पता लगा जब अभिनय की दुनिया में भी कादर खान ने अपने नाम का सिक्का स्थापित कर लिया. कादर खान ने बतौर अभिनेता लगभग 300 फिल्मों में काम किया. लेकिन बड़ी बात यहां है कि वह खलनायक की भूमिका में भी जमे और हास्य अभिनेता के रूप में भी. साथ ही एक चरित्र अभिनेता के रूप में भी उन्होंने बेमिसाल अभिनय किया.
दिलीप कुमार और अमिताभ की बदौलत आए अभिनय में
नाटक करते करते कादर खान में अभिनय के प्रति दिलचस्पी काफी बढ़ गयी थी. एक दिन दिलीप कुमार उनका नाटक देखने आए तो उन्होंने इनका बढ़िया अभिनय देख अपनी फिल्म 'बैराग' में अभिनय करने का प्रस्ताव दे दिया. बाद में जब कादर डायलॉग पटकथा लेखन में व्यस्त हो गए तो अमिताभ बच्चन ने भी इन्हें 'खून पसीना' और 'अदालत' फिल्म में अभिनय करने के मौके दिलाये. जिसमें 'खून पसीना' में वह खलनायक बने थे. फिल्मकारों ने उसके बाद इन्हें खलनायक के लिए इतना सही समझा कि इनके पास फिल्मों का ढेर लग गया. लेकिन बाद में फिल्म 'हिम्मतवाला' फिल्म से इन्होने कॉमेडी शुरू की तो वह तो इन पर इतनी ज़मी कि उसके बाद कादर खान कॉमेडी के सरताज बन गए.
गोविंदा, शक्ति कपूर और असरानी के साथ तो इनकी जोड़ी कॉमेडी में बहुत ही लोकप्रिय हुई. साथ ही हर छोटे बड़े नायक ने इनके साथ काम किया. उसके बाद कादर खान ने चरित्र भूमिकाएं भी कीं, तो उनमें भी वह पसंद किये गए. जो यह बताता है कि कादर खान में अभिनय प्रतिभा भी कूट कूट कर भरी हुई थी. उनकी अंतिम फिल्म सन 2015 में आई 'हो गया दिमाग का दही' थी. इन्होंने कुल मिलकर करीब 300 फिल्मों में अभिनय किया. ऐसे बेहतरीन अभिनेता और डायलॉग लेखक का जाना निश्चय ही तकलीफ देता है. वह पिछले कुछ समय से अस्वस्थ होने के कारण फ़िल्में नहीं कर रहे थे. लेकिन अपनी 81 की उम्र में भी उनकी आंखों में बहुत से सपने थे.
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)