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BLOG: कमला हैरिस और अस्मितावादी राजनीति की दरिद्रता

कमला हैरिस ऐसी पहली इंडियन अमेरिकन और ऐसी पहली महिला हैं, जो सैन फ्रांसिस्को की डिस्ट्रिक्ट एटॉर्नी चुनी गईं और आगे चलकर कैलीफोर्निया की डिस्ट्रिक्ट एटॉर्नी भी रहीं. आज वह अमेरिकी सीनेट में पहली इंडियन अमेरिकन महिला के तौर पर विराजती हैं.

इस बात में कोई शक नहीं है कि अपने सहयोगी पद के लिए चुनाव प्रत्याशी के तौर पर कमला हैरिस का चयन करने में जो बिडेन ने अस्मितावादी यानी पहचान की राजनीति के तकाजों को तरजीह दी है. किसी भी उप-राष्ट्रपति का चयन हमेशा एक संतुलन बनाने की कार्रवाई की निगाह से देखा जाता रहा है और बिडेन भी किसी महिला को टिकट दिए जाने की आवश्यकता एवं इच्छा से अप्रभावित नहीं रहे होंगे. अगर बिडेन पार्टी का अतीत हैंतो हैरिस इसका भविष्य हैं; अगर वह बुजुर्ग हैं तो वह अपेक्षाकृत युवा हैं; अगर वह एक घिसा-पिटा चेहरा हैं, यहां तक कि निष्प्रभ भी हो चुके हैं, तो वह ऊर्जा से लबरेज हैं- इस पर तुर्रा ये कि अगर बिडेन ईस्ट कोस्ट से आते हैं तो हैरिस वेस्ट कोस्ट की हैं. लेकिन जैसा कि हर कोई मानता है, बिडेन द्वारा हैरिस का चयन करने में इससे कहीं ज्यादा बड़े संकेत छिपे हैं.

कमला हैरिस एक सफल और जांबाज पथप्रदर्शक रही हैं

कमला हैरिस पहली अश्वेत अमरीकी के रूप में एक सफल और जांबाज पथप्रदर्शक रही हैं, वे ऐसी पहली इंडियन अमेरिकन और ऐसी पहली महिला हैं, जो सैन फ्रांसिस्को की डिस्ट्रिक्ट एटॉर्नी चुनी गईं और आगे चलकर कैलीफोर्निया की डिस्ट्रिक्ट एटॉर्नी भी रहीं. आज वह अमेरिकी सीनेट में पहली इंडियन अमेरिकन महिला के तौर पर विराजती हैं. देश के दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों की तरफ से राष्ट्रपति पद से जुड़ा टिकट पाने वाली वह पहली अश्वेत महिला बन गई हैं.

हैरिस ने कई अन्य उपलब्धियां अपनी झोली में भर रखी हैं, लेकिन यहां उनको गिनाने की जरूरत नहीं जान पड़ती. इसकी वजह यह है कि उप-राष्ट्रपति के रूप में सेवाएं देने के मामले में उनकी योग्यताएं असंदिग्ध हैं. इस तथ्य की रोशनी में कि निवर्तमान राष्ट्रपति हर लिहाज से भयंकर अयोग्य हैं, हैरिस की ये योग्यताएं तब और ज्यादा प्रभावी दिखने लगती हैं, जबकि छल-कपट, वितण्डा, प्रवंचना, चालाकी, ढकोसला, मिथ्याचार और विशुद्ध आत्ममोह को जिंदगी में तरक्की करने या सम्मान हासिल करने का गुण न मान लिया जाए. हालांकि हैरिस की काबिलीयत को लेकर मेरे खुद के दावे फौरन तभी खरे माने जा सकते हैं जब इस तरह से देखा जाए कि मेरी गिनाई योग्यताएं मात्र शब्दों के अर्थ तक सीमित हैं, और ऐसा कोई संकेत नहीं देतीं कि अनिवार्यतः वह नैतिक तौर पर बहुत ऊंचा स्थान रखने वाली महिला हैं या असाधारण बौद्धिक कुशाग्रता की मलिका हैं. इतना ही नहीं, क्रूर सच्चाई यह है कि मूल्यांकन इस बात को लेकर नहीं हो रहा है कि कमला हैरिस इतने सारे पद संभाल चुकी हैं, बल्कि उनके “वूमन ऑफ कलर” और थोड़ा इंडियन अमेरिकन और थोड़ा अफ्रीकन अमेरिकन होने की चर्चा (अमेरिका में बकवास की जाने वाली भाषा में) जोरों पर है.

भारतीयों की संख्या 4 मिलियन के आसपास है, जो अमेरिकी जनसंख्या का लगभग 1.25% है

आश्चर्य नहीं है कि यूएसए के सबसे धनी राज्य की एक प्रॉसीक्यूटर और ‘टॉप कॉप’के रूप में हैरिस के रिकॉर्ड को लेकर कुछ पूर्वज्ञात और आम तौर पर नीरस व बोझिल तहकीकात को छोड़ दिया जाए तो चर्चा की धुरी पहचान के सवाल के इर्द-गिर्द ही घूमती रही है. क्या वह खुद को मुख्यतः एक ब्लैक के रूप में ‘पहचानती’हैं और केवल तब ही अपनी इंडियन पहचान का सहारा लेती हैं, जब उन्हें उपयुक्त जान पड़ता है? क्या चुनाव प्रचार तीखा होते जाने के साथ-साथ हैरिस और ज्यादा ब्लैक बनती जाएंगी, क्योंकि वे केवल इसी पहचान को मानने वाली घाघ महिला हैं, अपनी आंशिक भारतीय वंश परंपरा के प्रति वह चाहे जितनी कृतज्ञता ज्ञापित कर लें, लेकिन क्या ये सच नहीं है कि अमेरिकी राजनीति में उनका भविष्य निर्धारित करने में ब्लैक लोगों की ज्यादा बड़ी भूमिका रहेगी? भारतीयों की संख्या 4 मिलियन के आसपास है, जो अमेरिकी जनसंख्या का लगभग 1.25% है.

दूसरी तरफ देश में ब्लैक लोगों की संख्या 14 प्रतिशत के करीब बैठती है. लेकिन सैद्धांतिक रूप से देखा जाए तो डेमोक्रेटिक पार्टी के अभियान के लिए ब्लैक लोगों की संख्या इंडियन अमेरिकन लोगों की शिक्षा और प्रभुत्व के चलते पूरी नहीं पड़ती. कुछ लोग लगातार सवाल कर रहे हैं: क्या हैरिस चुनिंदा तरीके से अपनी भारतीयता को उभारेंगी, क्योंकि उनके मतदाता और दानदाता प्रभावशाली इंडियन अमेरिकन समुदाय से आते हैं? या एक अन्य संभावना पेश करने के लिए क्या हैरिस एक ऐसे व्यक्ति के तौर पर, जो अंतिम विश्लेषण में खुद को मात्र अमेरिकी मानता है, खुद को समान रूप से ब्लैक अमेरिकन और इंडियन अमेरिकन की तरह प्रस्तुत कर सकती हैं? उनके रुख से संकेत मिलता है कि वह किसी दूसरे अमेरिकी की भांति ही कदम उठाएंगी (एक दृष्टांत के रूप में यूएस की इजरायली नीति को ही ले लीजिए, जिसकी कमला हैरिस बड़ी उत्साही समर्थक हैं) और उनकी राजनीति पर न तो उनकी भारतीय न ही अफ्रीकी वंश परंपरा का कोई असर पड़ने वाला है. यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि अमेरिका में ऊंचे पदों तक पहुंचने वाले अश्वेत लोग- कॉलिन पॉवेल, कोंडालिजा राइस और इनमें सबसे प्रख्यात बराक ओबामा- आम तौर पर अपनी सोच में, और निश्चित तौर पर नीतिगत मामलों में श्वेत अमेरिकी पदाधिकारियों के जैसा ही आचरण करते हैं.

अमेरिका के सार्वजनिक जीवन में पहचान के सवाल से हरगिज नहीं बचा जा सकता

जो लोग अमेरिका के लगभग पूरे वार्तालाप पर आच्छादित रहने वाली अस्मितावादी राजनीति के लहजे को नहीं समझते, वे अमेरिका के बारे में कुछ नहीं जानते. अमेरिका के उप-राष्ट्रपतित्व के लिए डेमोक्रेटिक पार्टी द्वारा कमला देवी हैरिस का नामांकन किया जाना इस बात का प्रतीक है कि अमेरिका के सार्वजनिक जीवन में पहचान के सवाल से हरगिज नहीं बचा जा सकता. पहले तो चलिए उन्हें एक अफ्रीकन अमेरिकन के रूप में देख लिया जाए. उनकी माता जी भारत से एक विदेशी छात्रा के रूप में यूएस पहुंची थीं. इसी प्रकार उनके पिता जमैका मूल के आप्रवासी थे.

दोनों की मुलाकात बर्कले में विद्यार्थियों और राजनीतिक मतभेद रखने वालों के रूप में हुई. आगे चलकर दोनों मानवाधिकार आंदोलन में मुब्तिला हो गए और “विकासशील देशों” में मुक्ति आंदोलनों का समर्थन करने वालों में शामिल रहे. आखिरकार दोनों के बीच मतभेद इस कदर गहरा गए कि उन्हें अलग होना पड़ा. उस वक्त कमला महज 5 साल की थीं. ये उनकी मां श्यामला गोपालन ही थीं, जिन्होंने कमला और उनकी छोटी बहन माया को पाल-पोस कर बड़ा किया. अपनी आत्मकथा में कमला लिखती हैं कि इसके बावजूद उनकी मां को कभी अकेलापन महसूस नहीं हुआ क्योंकि अश्वेत समुदाय ने उनको चुटकियों में अपना लिया था, और बदले में उनकी मां ने अपनी दोनों बेटियों को अश्वेत बच्चियों के रूप में बड़ा किया. “उन्हें पता था कि उनका अपनाया हुआ होमलैंड माया और मुझे दो अश्वेत बच्चियों की नजर से देखेगा, इसलिए वह यह सुनिश्चित करने हेतु दृढ़प्रतिज्ञ थीं कि हम निडर, साहसी और गर्व से भरी अश्वेत महिला के रूप में बड़ी हों.”

लेकिन यह स्वाभाविक ही है कि चूंकि कमला को उनकी मां ने पाल-पोस कर बड़ा किया था, तो उन्होंने पिता के मुकाबले अपनी मां के साथ ज्यादा निकटता महसूस की होगी और वह अपनी मां के धैर्य, लचीलेपन तथा उनकी उपलब्धियों के ज्यादा असर में रही होंगी. अलग होने के बाद उनकी मां ने न सिर्फ इंडोक्राइनोलॉजी में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की थी बल्कि वह एक कैंसर रिसर्चर भी बन गई थीं. इसके बावजूद कमला हैरिस ने खुद को एक इंडियन अमेरिकन के बजाए अधिकांशतः एक ब्लैक अमेरिकन के रूप में पहचाना. इसी के साथ-साथ उनके पिता, जिनके बारे में वह बड़ी गर्मजोशी से बातें किया करती हैं, उनके सार्वजनिक भाषणों से एकदम नदारद हैं. हाल ही में संपन्न हुए डेमोक्रेटिक नेशनल कन्वेंशन में, जहां कमला ने अपना नामांकन स्वीकृत होने वाला भाषण दिया था, उन्होंने अपनी मां के बारे में तो दिल को छू लेने वाली बातें कीं लेकिन अपने पिता का जिक्र एक बार भी नहीं किया. यह और अधिक दुर्भाग्यपूर्ण है क्योंकि श्वेत लोगों की एक बड़ी संख्या तथा अधिकांश इंडियन अमेरिकन लोग यह मान कर चलते हैं कि अश्वेत पुरुष ‘जिम्मेदारी’निभाने में असमर्थ होते हैं. वे इस बात पर भी यकीन करते हैं कि पिता के रूप में अपना कर्तव्य निभाने को लेकर अश्वेत पुरुष खास तौर पर आवारा होते हैं. हालांकि तमाम उपलब्ध प्रमाणों से यही प्रतीत होता है कि डोनाल्ड हैरिस अपनी दो बेटियों के अच्छे पिता थे.

हालांकि हम कमला हैरिस की अफ्रीकन अमेरिकन के रूप में स्पष्ट आत्म-पहचान को भी एकदम अलग कोण से प्रश्नांकित करने की कोशिश कर सकते हैं: उनकी राजनीतिक और नैतिक सोच तथा उनके विमर्श लोक में अफ्रीका का स्थान क्या है? “ब्लैक लाइव्स मैटर” की चर्चा जिस ताकत, वेग और तात्कालिकता के साथ राष्ट्रीय बातचीत का अंग बन चुकी है और जिस तरह से इस वार्तालाप की अनुगूंज दुनिया भर में सुनाई दे रही है, उसे देखते हुए वर्तमान परिस्थिति में इस सवाल की अहमियत बहुत ज्यादा बढ़ जाती है. जैसा कि “ब्लैक लाइव्स मैटर” को लेकर कुछ प्रतिक्रियाएं संकेत देती हैं, विचित्र ही है कि यह आंदोलन अफ्रीका के जीवन की कोई बात ही नहीं करता और कमला हैरिस की आत्मकथा में भी यह महाद्वीप नाम मात्र को नजर आता है.

वास्तव में ओबामा के आठ वर्षीय राष्ट्रपतित्व काल से जो पता लगता है, उसके आधार पर आकलन किया जाए तो उनके कार्यकाल में अफ्रीका के लिए कोई टिकाऊ या दीर्घकालीन निहितार्थ निकलते नजर नहीं आते. घोषित नव-उदारवादी दृष्टि के व्यक्ति ओबामा अफ्रीका को उसकी मदद-आधारित अवस्था से बाहर निकालने को लेकर प्रतिबद्ध थे, और उन्हें उम्मीद थी कि कारोबारी मॉडलों का वादा पूरा करके वह अफ्रीकी लोगों के मन में दुनिया से जुड़ने की ज्यादा दिलचस्पी पैदा कर सकेंगे. अगर किसी से पूछा जाए कि एक अफ्रीकन अमेरिकन के आठ वर्षीय राष्ट्रपतित्व काल का अफ्रीका के लिए कोई ठोस मतलब है, तो यकीनन उसका जवाब नकारात्मक ही होगा.

कमला हैरिस के इंडियन अमेरिकन मूल का क्या?

कमला हैरिस के इंडियन अमेरिकन मूल का क्या? उनके नामांकन की घोषणा होते ही हिन्दी भाषा के कुछ अखबार मारे खुशी के बल्लियों उछल रहे थे जैसे कि उन्होंने भारत में होने वाले किसी चुनाव का पर्चा भरा हो! अन्य लोगों ने ऐसी-ऐसी भाषा में टिप्पणियां कीं, जिन्हें पढ़ कर हंसा ही जा सकता है- भारत का ऐसा कमल जो परदेस में भी खिला है. हमेशा की तरह इस बात को लेकर कयास लगाए जा रहे हैं कि बिडेन का राष्ट्रपतित्व भारत-अमेरिका के रिश्तों के लिए क्या पूर्वाभास दे रहा है. क्योंकि यह ऐसा मौका हो सकता है जिसमें अपेक्षाकृत युवा, ऊर्जावान और ‘डायनेमिक’कमला हैरिस उप-राष्ट्रपतियों के लिए साधारणतया निर्धारित कामकाज की तुलना में ज्यादा आक्रामक भूमिका निभा सकती हैं.

अगर कोई सोचता है कि हैरिस की भारतीय जड़ें उनको भारत के लिए ज्यादा अनुकूल कारोबारी शर्तें मंजूर कराने, चीन के हमले नाकाम करने के प्रयास में भारत-अमेरिका के रिश्ते और प्रगाढ़ बनानेऔर मौजूदा भारतीय शासन के बढ़े-चढ़े अधिनायकवादी रवैए को नजरअंदाज करने के लिए अपने बॉस पर दबाव बनाने को मजबूर करेंगी, तो यह महज खामखयाली ही होगी. इसके विपरीत अन्य लोगों ने तर्क दिए हैं कि हैरिस ‘एक टफ कुकी’ (बोलचाल की भाषा में) हैं, जो कश्मीर को लेकर भारत की नीयत पर सवाल उठा सकती हैं और जहां भी अल्पसंख्यकों के अधिकारों का उल्लंघन होता दिखाई देगा, वहां कड़ा प्रतिरोध दर्ज कराएंगी. हालांकि यह सब निरा बकवास ही है.

इंडियन अमेरिकन लोगों के बीच प्रमुख विचारणीय मुद्दा यह है कि हैरिस के राजनीतिक शिखर के पास पहुंच जाने का समुदाय के राजनीतिक भविष्य के लिए क्या मतलब हो सकता है. इंडियन अमेरिकन लोगों की लंबे समय से शिकायत रही है कि यूएस में वे कहीं नजर ही नहीं आते और उनमें से अधिकतर लोगों के मन में यह भावना घर कर गई है कि अन्य धर्मों की तुलना में हिन्दू धर्म की उपेक्षा की जाती है. जाहिर है कि अधिकांश इंडियन अमेरिकन लोगों, खासकर महिलाओं के लिए कमला का उदय गर्व का विषय है. लेकिन इसे समुदाय की बौद्धिक संकीर्णता का विशेष लक्षण ही कहा जाएगा कि हैरिस की उन्नति, सामर्थ्य और प्रभुत्व का किसी ने भी यूएस के अंदर समृद्ध, प्रायः अज्ञात और कभी-कभार अशांत इंडियन-ब्लैक संबंधों के पुनरावलोकन का अवसर नहीं बनाया.

इस तरह का कोई भी वर्णन उस असाधारण इतिहास को समेट लेता, मिसाल के तौर पर जिसे विद्वान विवेक बाल्ड ने ‘बेंगाली हार्लेम’नाम दिया है. इसमें भारतीय फेरीवालों, खलासियों और दूसरे कामकाजी-वर्ग के पुरुषों का चित्रण है, जो लंबी अवधि के रिश्ते कायम करते थे, यहां तक कि उनकी अश्वेतों, प्यूर्टोरिकन लोगों और क्रियोल महिलाओं से उन शहरों में शादियां भी हो जाती थीं, जो 20वीं शताब्दी के आरंभिक वर्षों में ईस्ट कोस्ट से लेकर मिडवेस्ट और अमेरिकन साउथ तक फैले हुए थे.

एक दुर्लभ, खुरदुरी और कम आशावादी टिप्पणी यह है कियूएस में इंडियन-ब्लैक संबंधों के इतिहास को निश्चित तौर पर अफ्रीकी अमेरिकी लोगों का मेल-जोल त्यागने की इंडियन अमेरिकन के बीच फैली आम प्रवृत्ति को दावे के साथ उजागर करना पड़ेगा, श्वेतों के रूप में बदल जाने के भारतीयों द्वारा किए गए प्रयासों की पड़ताल करनी पड़ेगी और ब्लैक अमेरिका के बारे में समूचे श्वेत अमेरिका की बीमार अवधारणा को इंडियन अमेरिकन लोगों की विशाल आबादी द्वारा स्वीकार किए जाने का विरोध करना होगा.

कमला हैरिस के नामांकन से चाहे जितनी भी उम्मीद बांध ली जाए, लेकिन ऐसे कम से कम तीन कारण हैं जो इस बात को लेकर संदेह पैदा करते हैं कि उनका प्रभुत्व बढ़ने से कोई बुनियादी बदलाव होगा. पहला, वह पेशेवर राजनीतिज्ञों की उस नस्ल से आती हैं जो सिर्फ जीतने के लिए मैदान में उतरती है और जिनके कैरियर को राजनीतिक जोड़-तोड़ करने वाली खूब तेल पिलाई गई मशीनरी, नुमाइशी पैंतरों और इसी तरह की अन्य चीजों ने गढ़ा है. 2011 और 2013 में जब वह स्टेट एटॉर्नी जनरल के पद की उम्मीदवार बनाई गई थीं, तब डोनाल्ड जे. ट्रम्प और उनकी बेटी इवांका दोनों ने उनको आर्थिक योगदान दिया था. लोकतंत्र में समकालीन चुनावी राजनीति जानवरों की राजनीति बन कर रह गई है. समय के इस संधिस्थल पर यह कहना बड़ा अटपटा लगेगा कि उम्मीदवार एक प्रकार से लगभग अप्रासंगिक ही हो चुका है. ‘जिंदगी को परिभाषित करने वाले’जिस विकल्प का चयन करने हेतु इस नवंबर में लोगों का आवाहन किया गया है, उस पर विचार करते हुए कुछ लोग यह तर्क पेश कर सकते हैं. यद्यपि मेरी स्मृति में बीते तीन दशकों के दौरान यही तर्क हर चार साल के बाद हाजिर हो जाता है.

कुछ परिवर्तन अपरिवर्तनीय हुआ करते हैं

दूसरे, कमला हैरिस का बढ़ता हुआ प्रभुत्व इस बात का जरा सा भी द्योतक नहीं है कि अमेरिकी राजनीति में कोई महत्वपूर्ण बदलाव आ गया है, बल्कि इसके मुकाबले यह एक किस्म का सांकेतिक सौजन्य कहीं अधिक है, जो इन दिनों लोकतांत्रिक व्यवस्थाएं दिखाया करती हैं. अब यह पूरी तरह से समझ लिया गया है कि कुछ परिवर्तन अपरिवर्तनीय हुआ करते हैं, इसलिए उनको मिलनसार दिखते हुए सुरुचिपूर्ण ढंग से स्वीकार कर लेना चाहिए, जब तक कि चंद बुनियादी तत्वों- जैसे कि वर्ग पदानुक्रम, अमेरिकी पूंजीवाद की भावना में आस्था रखनाऔर यह मान कर चलना कि यूएस एक ‘परम आवश्यकराष्ट्र’है वगैरह- निर्विवाद बने रहें. इसका मुजाहिरा इन गर्मियों के दौरान एक मामले में यूएस सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्णय से बेहतर और कहीं हो ही नहीं सकता. इसमें जस्टिस नील एम. गोरसच ने राष्ट्रव्यापी स्तर पर एलजीबीटीक्यू कर्मचारियों के मानवाधिकारों की सुरक्षा किए जाने संबंधी कोर्ट का ऐतिहसिक फैसला सुनाते हुए सबको आश्चर्यचकित कर दिया था.

मालूम हो कि जस्टिस नील एम. गोरसच को कोर्ट के लिए नामित किए जाने का उदारवादियों ने तीखा विरोध किया था और उनको ‘अत्यंत रूढ़िवादी’बताते हुए उन्होंने उनकी चौतरफा निंदा की थी. समलैंगिक विवाह और समलैंगिकों के सेना में भर्ती होने के विरोध की वही गति हुई जो महिलाओं के सेना में भर्ती होने वाले विरोध की हुई थी. वक्त के आगे गोरसच के आत्म-समर्पण और हैरिस के उदय दोनों को एक ही चीज के तौर पर देखा जाना चाहिए. इसे शनैः शनैः होने वाले उन बदलावों के अग्रदूत के रूप में देखना होगा, जिन्हें कोई लोकतांत्रिक व्यवस्था खुद को लोकतंत्र कहलाने के लिए घटित होने की अनुमति देती है.

कमला हैरिस सत्ता प्रतिष्ठान के लिए किसी भुनगे के बराबर भी खतरा नहीं पैदा कर सकतीं. हमें एक पल के लिए भी यह नहीं भूलना चाहिए कि उनकी ओर से पेश किए जाने वाले तर्क- उनकी आंशिक इंडियन अमेरिकन पहचान या दो भिन्न देशों से आए उनके आप्रवासी माता-पिता को यूएस में मिलने वाली कामयाबी की सुनीसुनाई दास्तान- निकी हैली के लिए भी उतने ही खरे हैं. हैली एक अन्य बेहद महत्वपूर्ण इंडियन अमेरिकन महिला हैं, जिनके निकट भविष्य में यूएस के राष्ट्रपतित्व की दौड़ में शामिल होने की संभावना प्रबल है. रिपब्लिकन नेशनल कन्वेंशन को हैली का संबोधन देखने लायक था. वहां हैली ने बताया कि किस प्रकार साड़ी में लिपटी उनकी आप्रवासी पंजाबी मां और पगड़ीधारी पिता ने साथ मिलकर ‘अमरीकी सपना’साकार किया.

मेरे पास यह बताने के लिए पर्याप्त शब्द नहीं हैं कि राजनीति का ज्यादा विशाल औरखासकर नैतिकदृष्टिकोण अस्मिता के बलात्‌ थोपे गए विचारों में खुद को उलझाने के बजाए हमें उनसे मुक्त होने के लिए प्रेरित करता है. इसमें संदेह नहीं किया जा सकता कि इंडियन अमेरिकन लोगों द्वारा हैरिस के बारे में कुछ बचकाने और मूर्खतापूर्ण लेख लिखे जाएंगे, जिनमें उन्हें ‘देसी अल्फा फीमेल’बताया जाएगा और इस बारे में भावनाएं व्यक्त की जाएंगी कि हैरिस का नामांकन किस तरह से कोई ‘सपना पूरा होने’जैसी बात है. अस्मिता के साथ कठिनाई यह है कि यह एक भयंकर उबाऊ विषय है.

प्रमुख बुद्धिजीवी एडवर्ड सईद ने इसकी विशेषतासूचक स्पष्टवादिता के साथ लिखा है, “आज अस्मितावादी राजनीति के अनेक अड्डों पर चल रहे आत्ममुग्धता भरे स्वाध्याय या जातीय अध्ययन या जड़ों के पुष्टीकरण, सांस्कृतिक गौरव, राष्ट्रवाद का ढोल पीटने वगैरह से कम रोचक कुछ भी नहीं लगता.”हम इस हकीकत से कब छुटकारा पाएंगे कि कमला हैरिस बराबर हिस्सों वाली एक अफ्रीकन अमेरिकन और इंडियन अमेरिकन महिला हैंतथा नैतिकव्यवहार, राजनीतिक आचरण, राजनीति में विवेक के स्थान, राज्य की शक्तियों और व्यक्तिगत स्वायत्तता के बीच मौजूद तनाव आदि के बारे में ठोस सवाल उठाना शुरू करेंगे? अगर कोई पहचान की राजनीति के प्रहसन से बाहर निकलकर बेहतर नैतिक रजनीति व्यवहार को अपने खुद के क्रियाकलापों में प्रदर्शित नहीं करता, तो ‘अल्पसंख्यक’का दर्जा मिलने अथवा पथप्रदर्शक होने का दावा करने का क्या तुक है? स्पष्ट है कि संयुक्त राज्य अमेरिका के लोकतंत्र का चरित्र-चित्रण करने वाली जीर्णता की वर्तमान अवस्था में किसी को कमला देवी हैरिस से ज्यादा अपेक्षा नहीं करनी चाहिए- बल्कि किसी भी अन्य उम्मीदवार से बहुत उम्मीदें नहीं पालनी चाहिए.

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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