एक विज्ञापन आपको याद होगा. सारे घर को बदल दूंगा वाला. लगता है कि प्रधानमंत्री मोदी सारे घर के मुख्यमंत्री बदलने की मुहिम चला रहे हैं. उत्तराखंड में एक नहीं दो दो बार मुख्यमंत्री बदले गए हैं. कर्नाटक के लिंगायत नेता येदुरप्पा को उनकी मर्जी के खिलाफ बदला गया. अब बारी आई है गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपाणी की. कहा जा रहा है कि मध्यप्रदेश के शिवराज सिंह की अगली बारी आ सकती है. लेकिन गुजरात की बात अलग है. अलग इसलिए है क्योंकि मोदी जी और अमित शाह जी दोनों गुजरात से आते हैं. दोनों गुजरात की राजनीति में गहरी दिलचस्पी रखते हैं. दोनों गुजरात किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहते हैं क्योंकि बीजेपी हटी तो कांग्रेस पुरानी फाइलें खोल सकती है. लेकिन सवाल उठता है कि चुनाव से एक साल पहले विजय रुपाणी को क्यों बदला गया. इसकी तह में जाने की कोशिश करते हैं.
सबसे बड़ा कारण यही बताया जा रहा है कि बीजेपी आला कमान को अंदाजा लग गया था कि गुजरात में विजय रुपाणी कमजोर विकेट पर हैं और उनके भरोसे अगले साल सत्ता में नहीं आया जा सकता. कहा जा रहा है कि बीजेपी ने कुछ महीने पहले सर्वे भी करवाया था. लेकिन विजय रुपाणी को फिर भी कुछ महीने दिए गए. सूरत नगरपालिका चुनाव में आम आदमी पार्टी ने 27 सीटें जीत कर विजय रुपाणी की विदाई का रास्ता तय कर दिया. एक वजह यह बताई जा रही है कि अमित शाह विजय रुपाणी को बहुत पसंद नहीं करते थे. आनंदी बेन पटेल को जब मुख्यमंत्री पद से हटाया गया था तब भी कहा जाता है कि अमित शाह की पहली पसंद विजय रुपाणी नहीं थे. हाल ही में बीजेपी संगठन की कमान सी आर पटेल को सौंपी गयी थी और वह शाह के करीबी माने जाते हैं. मेरी गुजरात के कुछ पत्रकारों से बात हुई, जिनका कहना था कि सी आर पटेल के आने के बाद ही रुपाणी का बदला जाना तय हो गया था.
एक वजह पाटीदार वोटों की राजनीति को बताया जा रहा है. पटेल काफी असरदार हैं. उनके समर्थन के बगैर चुनाव जीतना लगभग असंभव है. रुपाणी की जगह किसी पटेल को मुख्यमंत्री बनाए जाने की चर्चा है. कहा जा रहा है कि गुजरात में कांग्रेस हार्दिक पटेल को प्रदेश की कमान सौंप सकती है. ऐसे में पटेल का मुकाबला अगर एक पटेल ही करे तो राजनीति के हिसाब से मुफीद बैठता है. कुछ लोगों का कहना है कि कोरोना काल में गुजरात सरकार ने बेहद खराब काम किया है और जनता में गहरी नाराजगी बताई जाती है. यह नाराजगी दूर करने के लिए मुख्यमंत्री बदला जाना जरूरी हो गया था. लेकिन सबसे बड़ी वजह सी आर पटेल को अध्यक्ष बनाना ही था. वैसे भी गुजरात के लिए माना जाता है कि वहां खड़ाऊं मुख्यमंत्री होता है. सारा शासन तो दिल्ली से चलता है. ऐसे में सवाल उठता है कि खड़ाऊं मुख्यमंत्री को बदल देने से क्या फर्क पड़ेगा.
आमतौर पर कहा जाता है कि जनता को एक साल पहले मुख्यमंत्री बदल कर या मंत्रिमंडल में बदलाव करके खुश नहीं किया जा सकता. इससे हालात बदलते नहीं हैं. खासतौर से विपक्ष को मौका मिल जाता है यह कहने का कि चूंकि मुख्यमंत्री नाकाम थे, इसलिए हटा दिये गये. हालांकि कुछ लोगों का कहना है कि गुजरात में बीजेपी की जड़े बहुत गहरी हैं. गांव गांव तक संगठन हैं और मुख्यमंत्री को बदलकर जनता का गुस्सा कम किया जा सकता है. वहां की जनता मान कर चलती है कि मोदी जी ही गुजरात को संभाल रहे हैं और उन्हें ही संभालना है. दिल्ली की इतनी चलती है कि आनंदी बेन पटेल ने अपनी मर्जी से मुख्यसचिव को बदल दिया था और इसका खामियाजा उन्हें राज्यपाल बन कर चुकाना पड़ा.
ऐसे में सवाल उठता है कि आगे क्या होगा. क्या किसी पटेल को मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है. क्या कोरोना काल की गलतियों को सुधारा जा सकता है. क्या फिर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को, लव जेहाद को बढ़ावा दिया जाएगा.
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