Blog: भुलाए नहीं जा सकेंगे शाहरुख खान को ब्रेक देने वाले लेख टंडन...
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दिग्गज फिल्मकार लेख टंडन के निधन ने यह बात फिर से साबित कर दी कि दुनिया चढ़ते सूरज को ही प्रणाम करती है. फिल्मी दुनिया में तो यह कटु सत्य बार बार नज़र आता रहा है. एक दौर था जब लेख टंडन के नाम और काम की तूती बोलती थी. बड़े से बड़ा सितारा उनकी फिल्मों में काम करना चाहता था. बाद में जब लेख जी ने सीरियल बनाना शुरू किया तो वहां भी बहुत से नए पुराने कलाकार उनके साथ काम करने के लिए उनके इर्द गिर्द मंडराने लगे. लेकिन अब जब पिछले कुछ समय से लेख टंडन न कोई फिल्म बना रहे थे और न ही कोई सीरियल तो भला कोई उनकी सुध क्यों ले.
यही कारण रहा कि ब्रेन हेमरेज के बाद पिछले करीब तीन महीने से मौत से जूझते हुए इस महान फिल्मकार ने 15 अक्टूबर शाम को जब दम तोड़ा तो, उन्हें लता मंगेशकर, शेखर कपूर ,शबाना आज़मी, राज बब्बर और आशुतोष गोवारिकर जैसे गिने चुने लोगों के अलावा किसी बड़े कलाकार ने अपनी श्रद्धांजली देने तक का कष्ट नहीं उठाया. जब 16 अक्टूबर को पवई में उनके घर के पास उनका अंतिम संस्कार किया गया, तब भी वहां यह बॉलीवुड नदारद रहा.
लेख टंडन इसी फरवरी में 88 बरस के हो गए थे, लेकिन तीन चार महीने पहले तक उनमें इस उम्र में अब भी गजब की चुस्ती फुर्ती थी. मेरी उनसे मुलाकात और फोन पर बातचीत होती रहती थी. उन्हें अपनी बहुत सी पुरानी बातें ज्यों की त्यों याद थीं. कुछ समय पहले वह दिल्ली आये तो उनकी बहन के घर साकेत में एक दोपहर हमने लंच से शाम तक ढेरों बातें की. हालांकि तब उनके पैर में फ्रैक्चर के कारण तकलीफ थी और प्लास्टर चढ़ा हुआ था, लेकिन फिर भी वह मजे में सीढ़ियां उतर रहे थे. और तकलीफ के बाद भी वो उस शाम अपने किसी कलाकार मित्र की फरमाइश पूरी करने के लिए लाहोरी चप्पल-जूती खरीदने को मेरे साथ जनपथ मार्किट भी गए. असल में लेख टंडन जितने अच्छे फिल्मकार थे उतने अच्छे इंसान भी थे.
लेख जी के पिता फकीर चंद टंडन और पृथ्वीराज कपूर अच्छे मित्र थे. पृथ्वीराज कपूर ने अपने दोस्त के बड़े बेटे लेखराज और छोटे बेटे योगराज की नाटकों आदि में दिलचस्पी देख अपने पास मुंबई बुला लिया. दोनों पृथ्वी थिएटर से जुड़ गए. लेख टंडन बताते थे- “मुझे तो पृथ्वीराज जी ने ही पाला-पोसा ठीक ऐसे ही जैसे कोई अपने बेटे को पालता है. उन्होंने ही काफी कुछ सीखाया. मैं उनके थिएटर समूह के साथ थिएटर करने के लिए जगह जगह जाता था, जिसमें जोहरा सहगल भी हुआ करती थीं. पृथ्वी थिएटर में ही लेख जी की मुलाकात संगीतकार शंकर जयकिशन से हुई, जहां तब जयकिशन हारमोनियम बजाया करते थे और शंकर तबला. बाद में राज कपूर ने उन्हें अपनी फिल्म ‘बरसात’ से संगीतकार जोड़ी के रूप में प्रस्तुत किया तो ये जोड़ी रातों रात संगीतकार की एक सुपर हिट जोड़ी बन गई.
इधर लेख टंडन की दिलचस्पी भी फिल्मों के लिए बढ़ रही थी. तब उन्होंने पहले कुछ फिल्मों में सहायक निर्देशन के साथ फिल्मों की पटकथा भी लिखी, लेकिन सन् 1962 में वह स्वतंत्र रूप से निर्देशक बन गए. यह फिल्म थी ‘प्रोफेसर’, जिसके निर्माता थे एफ सी मेहरा. लेख जी ने फिल्म में शम्मी कपूर को नायक लिया और कल्पना को नायिका. फिल्म में ललिता पवार को अन्य प्रमुख भूमिका में रखा. अपनी इस पहली फिल्म में संगीतकार भी शंकर जयकिशन को लिया. यहां तक गीतकार के रूप में भी आर के फिल्म्स की गीतकार जोड़ी हसरत जयपुरी और शैलेन्द्र से ही उन्होंने गीत लिखवाए. उनकी यह पहली ही फिल्म सुपर हिट हो गई. फिल्म के गीत ‘मैं चली,मैं चली’ के साथ ‘खुली पलक पर झूठा गुस्सा’ और ‘आवाज़ देके हमें तुम बुलाओ’ ने धूम मचा दी.
बरसों बाद आज भी यह फिल्म एक कालजयी फिल्म के रूप में जानी जाती है, जिसकी कॉमेडी कमाल की थी. तब से जब तक शंकर जयकिशन की जोड़ी रही तब तक इनकी सभी फिल्मों में यही संगीतकार रहे. लेख जी मुझे बताते थे –“शंकर जयकिशन का कोई जवाब नहीं था ये इतने अच्छे इंसान थे कि इनकी जितनी तारीफ की जाए उतनी कम है. मेरे तो ये सबसे पसंदीदा संगीतकार थे.” इसे संयोग कहें या कुछ और कि जब 15 अक्टूबर को लेख टंडन इस दुनिया से गए उसी दिन संगीतकार शंकर का जन्म दिन था.
इसके बाद 1966 में लेख टंडन ने सुनील दत्त और वैजयंती माला को लेकर एक और कालजयी फिल्म ‘आम्रपाली’ का निर्देशन किया. हालांकि इस फिल्म को बॉक्स ऑफिस पर तो शानदार सफलता नहीं मिली, लेकिन अपनी बहुत सी विशिष्टताओं के कारण इस फिल्म को 39वें एकेडमी अवॉर्ड के लिए विदेशी भाषा की श्रेष्ठ फिल्म के लिए चुना गया. इससे लेख टंडन एक अच्छे और लोकप्रिय निर्देशक के रूप में मशहूर हो गए. इसके बाद उन्होंने झुक गया आसमान, प्रिंस, जहां प्यार मिले, दुल्हन वही जो पिया मन भाये, दूसरी दुल्हन और अगर तुम न होते जैसी कई फिल्मों का निर्देशन किया, जिनमें अधिकांश फिल्में सफल रहीं.
![( ये तस्वीर फिल्म निर्देशक आशुतोष गोवारिकर ने अपने ट्विटर अकाउंट पर शेयर की है )](https://static.abplive.com/wp-content/uploads/sites/2/2017/10/16140245/0011.jpg)
बाद में बदलते दौर में उन्होंने फिल्मों से किनारा करके सीरियल की दुनिया का रुख किया और दिल्ली में रहकर सन् 80 के दशक के आखिर में दूरदर्शन के लिए कुछ सीरियल बनाए, जिनमें ‘दूसरा केवल’ और ‘दिल दरिया’ दो ऐसे सीरियल थे, जिनमें लेख टंडन ने शाहरुख खान को पहली बार मौका दिया. यूं लोग शाहरुख खान के पहले सीरियल के रूप में ‘फौजी’ को ज्यादा जानते हैं, लेकिन ‘फौजी’ से पहले शाहरुख ने जहां लेख टंडन के साथ सीरियल किये वहीं अरविन्द स्वामी की दूरदर्शन की टेली फिल्म ‘अधूरी जिंदगी’ और ‘दस्तक’ में भी काम किया. मुझे याद है उन दिनों जब शाहरुख इन सीरियल की शूटिंग करते थे तब इतना झेंपते और शरमाते थे कि जिसकी आज के शाहरुख खान को देख कल्पना भी नहीं की जा सकती.
दूसरा केवल और दिल दरिया के बाद लेख टंडन ने दूरदर्शन प्रोडक्शन के लिए ‘फिर वही तलाश’ सीरियल भी बनाया. जिसमें शाहिद कपूर की मां और पंकज कपूर की पूर्व पत्नी नीलिमा अज़ीम भी प्रमुख भूमिका में थीं. यह सीरियल तब सबका प्यारा बन गया था. इसके बाद देश में जब निजी चैनल आ गए तब तक लेख जी ने दूरदर्शन के साथ निजी चैनल के लिए भी बहुत से सीरियल बनाए, जिनमें दरार, अधिकार, कहां से कहाँ तक, मिलन, बिखरी आस निखरी प्रीत और पंजाब की पृष्ठभूमि पर ऐसा देश है मेरा जैसे कई हिट सीरियल हैं.
इधर चाहे शाहरुख खान ने अभी तक लेख टंडन के निधन पर कोई अफसोस नहीं जताया लेकिन शाहरुख ने इतना जरुर किया कि जिन निर्देशक ने उन्हें अभिनेता बनाया उन निर्देशक को शाहरुख ने अपनी फिल्म में अभिनेता बना दिया. लेख टंडन ने पिछले कुछ बरसों में फिल्मों में कुछ छोटी छोटी भूमिकाएं भी कीं, जिनमें शाहरुख खान की स्वदेश, पहेली और चेन्नई एक्सप्रेस के अलावा रंग दे बसंती भी है. लेख जी ने एक बार मुझे बताया था “मैंने तो शाहरुख के कहने पर ही ये फ़िल्में कीं. पीछे ‘चेन्नई एक्सप्रेस’ के लिए भी उसने मुझे फोन करवाया कि मैं यह फिल्म करूं तो मैंने उसे मना नहीं किया.”
लेख टंडन अब भी पिछले कुछ बरसों से एक फिल्म और एक सीरियल के प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे लेकिन फिल्म के लिए फाइनेंस न मिलने के कारण उनका यह सपना पूरा नहीं हो सका. लेकिन उनकी अच्छी यादों के लिए हमारे पास जो उनकी पुरानी फिल्में हैं, उन्हें देखते हुए उनके शानदार काम को भुलाया नहीं जा सकेगा.
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