कहीं ऐसा न हो कि शिवराज सिंह चौहान, वसुंधरा राजे और डॉक्टर रमन सिंह के चलते पीएम मोदी की लोकसभा की सीटें ही कम हो जाएं? केवल अरुण जेटली के अच्छे बजट से ही चुनावी संकेत आएंगे कि लोकसभा चुनाव 2018 में या 2019 में.


क्या देश मध्यवर्ती चुनाव की ओर जा रहा है? मल्लिकर्जुन खड़गे के बयान के बाद यह मुद्दा फिर से चर्चा का विषय बन गया है. तर्क दो दोनों ओर से दिए जा सकते हैं लेकिन मूल प्रश्न बजट 2018 और अर्थव्यवस्था का है. क्या वित्त मंत्री अरुण जेटली फरवरी की पहली तारीख़ को एक चुनावी और मनलुभावन बजट पेश करेंगे? क्या मध्यमवर्ग को इनकम टैक्स में भारी छूट मिलेगी? क्या छोटे व्यापारियों, किसानों और आम आदमी को ऐसी मदद मिल पाएगी जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक बार फिर बहुमत दिला सके?


यदि हम इस समय के राजनीतिक हालात देखें तो चुनाव एक जुए के सामान है. यह सही है कि मूड ऑफ़ द नेशन सर्वे में NDA का बहुमत दिख रहा है लेकिन बीजेपी को खुद अपने दम पर बहुमत दिख नहीं रहा है. अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल को देखने पर साफ़ नज़र आता है कि गठबंधन की सरकार चलाना बहुत कठिन होता है. एनडीए सहयोगी दल जैसे शिवसेना, तेलेगु देसम और अकाली दल मोदी सरकार से खुश नहीं हैं और जब तब रिश्तों में खटास आती रहती है.


याद रहे कि पीएम मोदी और अमित शाह का व्यक्तियत्व भी वाजपेयी जी जैसा लचीला और उदारवादी नहीं हैं. ऐसी स्थिति में बीजेपी के लिए खुद 272 की संख्या लोकसभा में बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है.


एक और स्तर पर मोदी और अमित शाह ने अपने आप को चुनाव जीतने की मशीन के रूप में बहुत अच्छे रूप से पेश किया हुआ है. यदि कर्नाटक और उसके बाद मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में बीजेपी का प्रदर्शन अच्छा नहीं हुआ तो मोदी सरकार की मुश्किलें बढ़ जाएंगी.


समस्या यह भी है कि बीजेपी की राज्य सरकारें जैसे की राजस्थान, हरियाणा व मध्य प्रदेश उतना अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पा रहीं हैं जैसी लोगों को उम्मीदे थीं या केंद्र सरकार अच्छे काम कर रही है. पीएम मोदी ने इंदिरा गांधी की तरह न तो राज्य के मुख्यमंत्रियों को बदला है और न ही अपने मंत्रिमंडल में व्यापक फेरबदल किये हैं. जो भी बदलाव आये जैसे कि मनोहर पर्रिकर का गोवा में जाना, वह परिस्थितयों के कारण था.


मध्यवर्ती चुनाव का सबसे मजबूत पक्ष ‘एक देश एक चुनाव’ के स्लोगन का है जिसके तहत लोकसभा व राज्यों के चुनाव एक साथ कराय जाएं. लेकिन यह व्यवहारिक और विधि के अनुसार इतना आसान नहीं है.  क्या बीजेपी मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ का चुनाव लोकसभा के साथ जीत सकती है? गुजरात राज्य चुनाव की स्थिति अलग थी क्योंकि मोदी और अमित शाह दोनों गुजरात से जुड़े थे.


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आकड़ें लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)