यूं तो 50 ओवर के मैच में टीम इंडिया के मौजूदा बैटिंग लाइन अप के लिहाज से 237 रन का लक्ष्य ज्यादा नहीं है. लेकिन इस लक्ष्य का पीछा करते वक्त जब 21वें ओवर में रोहित शर्मा आउट हुए तो हालात थोड़े ‘टाइट’ हो गए. उस वक्त भारतीय टीम 100 रन भी नहीं जोड़ पाई थी और रोहित, विराट और शिखर पवेलियन लौट चुके थे. फिर धोनी मैदान में उतरे. उनका साथ देने के लिए विकेट के दूसरे छोर पर अंबाती रायडू थे. 24वें ओवर में जब अंबाती रायडू भी आउट हो गए तब तो मैच फंस गया. भारतीय टीम का स्कोर हो गया 99 रन पर 4 विकेट. यानि अभी भी भारतीय टीम सौ रनों के आंकड़े तक नहीं पहुंची थी.
यहां से धोनी और केदार जाधव ने मोर्चा संभाला. ये इन दोनों बल्लेबाजों की लाजवाब समझदारी थी कि इसके बाद ऑस्ट्रेलिया को एक भी सफलता नहीं मिली और भारतीय टीम 49वें ओवर में मैच जीत गई. केदार जाधव ने एक बार फिर साबित किया कि वो गजब के भरोसेमंद खिलाड़ी हैं. मुश्किल परिस्थितियों में आप केदार जाधव को गेंद दीजिए वो विकेट लेकर देते हैं और बल्लेबाजी करने भेजिए तो वो रन बनाकर जीत दिलाते हैं. अब बात धोनी की. एक बार फिर इस जीत में धोनी का अनुभव शानदार तरीके से काम आया. अपनी पूरी पारी में उनकी वो ‘टिपिकल’ सोच दिखी जो उन्हें लक्ष्य का पीछा करते समय दूसरे खिलाड़ियों से अलग करती है.
धोनी की सोच में क्या अलग है
लक्ष्य का पीछा करते समय धोनी कभी ‘रिक्वायर्ड रन रेट’ यानि आने वाले ओवरों में प्रति ओवर कितने रन बनाने हैं की परवाह नहीं करते. वो हमेशा मैच को आखिरी के ओवरों तक ले जाने में भरोसा करते हैं. विराट कोहली अगर लक्ष्य का पीछा कर रहे हैं तो वो हमेशा प्रति ओवर जितने रन चाहिए उससे ज्यादा रन बनाने की कोशिश करते हैं. मसलन- आप यूं समझिए कि अगर जीत के लिए हर ओवर में 6 रन चाहिए तो विराट कोहली की कोशिश होती है कि 6 की बजाए 7 रन बनाए जाएं जिससे आखिरी के ओवरों में किसी तरह का ‘प्रेशर’ ना रहे.
इससे उलट धोनी हर ओवर में 6 की बजाए 4 रन बनाकर भी खुश रहते हैं भले ही अगले ओवरों में उन्हें प्रति ओवर 8 रन बनाने पड़ें. अपने करीब डेढ़ दशक के करियर में धोनी ने हमेशा इसी रणनीति के साथ बल्लेबाजी की है और टीम को जीत दिलाई है. ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ पहले मैच में भी उन्होंने इसी रणनीति से कामयाबी दिलाई. धोनी और केदार जाधव जब बल्लेबाजी कर रहे थे तो 30 वें ओवर तक रिक्वार्यड रन रेट 5.60 का था. 36वें ओवर तक आते आते वो बढ़कर 6 रन प्रति ओवर हो गया. 40 वां ओवर खत्म हुआ तो और बढकर 6.10 हो गया. बावजूद जिसके बड़ी बात ये थी कि भारत ने कोई विकेट नहीं खोया. 44वें ओवर के बाद जब मैच पूरी तरह भारत के काबू में आ गया तो 45वें ओवर से रनों की रफ्तार में मामूली इजाफा कर धोनी और केदार जाधव ने टीम को जीत दिला दी.
धोनी ने फिर दिया आलोचकों को जवाब
धोनी की बल्लेबाजी को लेकर सवाल उठाने वालों को उन्होंने फिर जवाब दिया. कंगारुओं के खिलाफ दूसरे टी-20 मैच में उन्होंने ताबड़तोड़ बल्लेबाजी की थी. उस मैच में उन्होंने 23 गेंद पर 40 रन बनाए थे. हालांकि ग्लेन मैक्सवेल के तूफानी शतक की वजह से टीम इंडिया वो मैच जीत नहीं पाई. इसके बाद पहले वनडे में उन्होंने 72 गेंद पर 59 रन बनाए. इस पारी में कोई जल्दबाजी नहीं थी. कोई जोखिम नहीं था. बावजूद इसके इसी पारी की बदौलत टीम इंडिया को जीत मिली.
BLOG: लक्ष्य का पीछा करने में औरों से किस तरह अलग हैं धोनी
शिवेन्द्र कुमार सिंह, वरिष्ठ खेल पत्रकार
Updated at:
03 Mar 2019 03:40 PM (IST)
लक्ष्य का पीछा करते समय धोनी कभी ‘रिक्वायर्ड रन रेट’ यानि आने वाले ओवरों में प्रति ओवर कितने रन बनाने हैं की परवाह नहीं करते. वो हमेशा मैच को आखिरी के ओवरों तक ले जाने में भरोसा करते हैं.
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