'संस्कारी' सेंसर बोर्ड, प्लीज! 'असंस्कारी' सिनेमा को रिलीज होने दीजिए
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देश के 'संस्कारी' सेंसर बोर्ड ने समाज तक 'संस्कारी', नही-नहीं सिर्फ और सिर्फ 'संस्कारी' सिनेमा पहुंचाने का बीड़ा उठाया है. अब तक गिने-चुने लोगों को ही अलंकृता श्रीवास्तव के डायरेक्शन वाली फिल्म लिपस्टिक अंडर माई बुरखा के सेंसर के बारे में पता था, जैसे ही बात आगे बढी. अब सोशल मीडिया पर भारी संख्या में लोग विरोध दर्ज कर रहे हैं.
'संस्कारी' सेंसर बोर्ड को लगता है कि 55 साल की विधवा की जिंदगी में सेक्स नाम की कोई चीज भी होती है क्या? चार बच्चों की मां के पास सेक्स डिजायर जैसी कोई चीज बचनी चाहिए क्या? सेंसर बोर्ड को लगता है कि ये फिल्म समाज के एक विशेष वर्ग के प्रति अधिक संवेदनशील है. इसलिए फिल्म को सर्टिफिकेट दिया ही नहीं जा सकता. U, A या U/A छोड़िए फिल्म को रिलीज ही नहीं करना है. सेंसर बोर्ड की चिट्ठी में लिखा है- 'फिल्म की कहानी महिला आधारित है और जीवन से इतर उनकी फैंटेसी को दिखाया गया है. इसमें यौन दृश्य, अपमानजनक शब्द और अश्लील ऑडियो हैं. यह फिल्म समाज के एक विशेष वर्ग के प्रति अधिक संवेदनशील है. इसलिए फिल्म को प्रमाणीकरण के लिए नामंजूर किया जाता है.'
बुर्का, लिपस्टिक और बवाल: फिर विवादों में सेंसर बोर्ड प्रमुख पहलाज निहलानी
‘संस्कार के मंदिर के प्रधान पुजारी’ प्रहलाज निहलानी ने भी साफ बोल दिया है कि नियमों के मुताबिक ये फैसला लिया गया है, फिल्म के प्रोड्यूसर इस बात को आगे ले जा सकते हैं'अब जब 'मैं माल गाड़ी तू धक्का लगा' जैसे गानों वाली फिल्मों के प्रोड्यूसर ऐसी बात करता है तो हंसी से ज्यादा तरस आता है. कोई इतना मासूम कैसे हो सकता है? इनकी एक और फिल्म ‘अंदाज’ आई थी जिसमें अनिल कपूर और जूही चावला थे. फिल्म में एक गाना था 'खड़ा है-खड़ा है' ऐसे गाने देने वाला शख्स जब आने वाली पीढ़ियों तक संस्कार और ओवर सेंसिटिविटी की बात करता है तो वो 'क्यूट' लगने लगता है.
एक बात सेंसर बोर्ड की आड़ में 'संस्कार के मंदिर' को समझ लेना चाहिए कि अगर कोई दर्शक लिपस्टिक अंडर माय बुरखा देखने जाता है तो इससे पहले वो ट्रेलर जरूर देखेगा. आम तौर पर ऐसा होता और जो दर्शक बिना ट्रेलर देखे जाएगा वो इस तरह की गुमनाम और बिना स्टार की फिल्में जाहिर तौर पर नहीं देखेगा. इस तरह की फिल्में देखने का फैसला आप जनता पर क्यों नहीं छोड़ सकते? आप एजुकेटर बनने की कोशिश क्यों कर रहे हैं? आप एजुकेशन बॉडी नहीं हैं ये सच समझने में आपको कितना वक्त चाहिए?संस्कार और समाज के नाम पर आप 'कमीने' नाम की फिल्म को सर्टिफाई करते हैं लेकिन 'हरामखोर' पर आपके 'संस्कारी' समाज पर खतरा आ जाता है. फिल्म रिलीज के लिए प्रोड्यूसर-डायरेक्टर एक लड़ाई लड़ते हैं तब जाकर फिल्म परदे पर आ पाती है. आपके 'संस्कारी मंदिर' के 'प्रधान पुजारी' निहलानी साहब जेम्स बॉन्ड इंस्पेक्टर में डेनियल क्रेग और मोनिका बलूची का किसिंग सीन काट देते हैं. भाई एक बात मेरे समझ में नहीं आती कि जेम्स बॉन्ड में उसकी गर्लफ्रेंड उसको 'किस' नहीं करेगी तो क्या आरती उतारेगी. और अगर आपको आरती जैसा कोई दृश्य देखना है तो आप रामायण या कोई मैथालॉजिकल शो या फिल्म देखिए.
फिल्मों से अलग तरह का जुड़ाव रखने वाले दर्शक के तौर पर आपको एक बात बता दूं कि फिल्म के टीजर से लेकर रिलीज डेट तक इस तरह की सिनेमा वाले दर्शक फिल्म का इंतजार करते हैं. आपके पास सर्टिफिकेट के कई स्तर हैं आप उसे देने में मनमानी करें लेकिन आप कई स्पॉटबॉय से लेकर एक्टर-डायरेक्ट-प्रोड्यूसर तक की मेहनत पर ऐसे फैसले नहीं दे सकते. यकीनन फिल्म तो रिलीज होगी ही आप ना दें सर्टिफिकेट तो कोर्ट तक बात पहुंचेगी लेकिन इससे आप बिना मतलब कलाकारों, प्रोड्यूसर, डायरेक्टर और हां आप अपना वक्त ज़ाया कर रहे हैं. नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आकड़ें लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.
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