नई दिल्ली: किसी भी व्यक्ति का व्यवहार उसके सोचने के तरीके का परिणाम होता है. दिमाग जिस रास्ते पर सोचता है, व्यक्ति का व्यवहार उसी दिशा में काम करता है. इन्वेस्टिगेटिव साइकोलोजी में अलग-अलग अपराध और उसके लिए जिम्मेदार दिमागी प्रतिक्रिया की खोज की जाती है. यहां विज्ञान के इसी चश्मे से बिहार के मुजफ्फरपुर की धटना को देखने की कोशिश की गई है.


बिहार के मुजफ्फरपुर के बालिका सुधार गृह में 42 में से 34 लड़कियों के साथ रेप की पुष्टि हुई है. यानी वहां रहने वाली 70 फीसदी से अधिक लड़कियों के साथ यौन अपराध किया गया. इतनी बड़ी संख्या में यौन अपराध की घटना एक संगठित अपराध की तरफ इशारा करती है. बालिका सुधार गृह में काम करने वाले ज़िम्मेदार लोग या तो इसमें सीधे तौर पर शामिल थे या फिर अप्रत्यक्ष तौर पर इस अपराध में उनकी सहमति थी.


पुलिस की जांच में मुख्य आरोपी ब्रजेश ठाकुर पर आरोप लगे हैं, उसने इस घटना को खुद अंजाम दिया और दूसरे लोगों को भी इस अपराध में प्रतिभागी बनाया. ब्रजेश ठाकुर को इस सुधाग गृह का मुखिया बताया जा रहा है. इस अपराध में शामिल ब्रजेश ठाकुर की दिमागी हालत क्या सामान्य थी या फिर वो 'सेक्स आफेंडर मेंटल स्टेट' की गिरफ्त में था, यह समझना जरूरी है.


ब्रजेश ठाकुर का नियंत्रण इस सुधार गृह पर सबसे ज्यादा था. यहां की लड़कियों और यहां के स्टाफ पर ब्रजेश ठाकुर का मानसिक और सामाजिक नियंत्रण 'सुप्रीम' स्तर पर था. यानी मानसिक तौर पर वो जो सोच रहा है, उसे घटित करने के लिए उसके पास पर्याप्त अवसर मौजूद थे.


सीरियल सेक्सुअल अपराधी अपने शिकार पर हमला करने के लिए वक्त और जगह का चुनाव खुद करता है. ऐसा अपराधी कोशिश करता है कि शिकार और जगह दोनों उसके नियंत्रण वाला हो. वो महिला या लड़की को इंसान ना मान कर उसे वस्तु की तरह समझने लगता है, उसे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि उस लड़की या महिला के साथ इस अपराध के दौरान मानसिक या शारीरिक नुकसान पहुंचेगा. वो अपराध के पहले या उसके दौरान अपने शिकार पर हमले भी करता रहता है. यानी ऐसे अपराधी के दिमाग में सेक्स एक छीनी हुई चीज़ होती है, जिसे वो हर हाल में हासिल करना चाहता है. उसके लिए सेक्स में किसी संबंध या प्रेम की ज़रुरत महसूस नहीं होती है.


जबकि सामान्य दिमाग, अपराधी के दिमाग से थोड़ा अलग होता है. सामान्य दिमाग में सेक्स के दौरान प्रेम और संबंध जैसे तत्व मौजूद रहते हैं. बिना संबंध या प्रेम के उसके अन्दर सेक्स जैसी क्रियाओं के लिए दिमाग से संदेश नहीं मिलता.


मुजफ्फरपुर कांड के मुख्य आरोपी पर ये चीज़ें काफी लागू होती हैं. पुलिस की जांच और मीडिया रिपोर्ट में ये बात सामने आई है कि वो लड़कियों को मारता था और धमका कर संबंध बनाता था. यानी उसका दिमाग एक सेक्स अपराधी की तरह काम कर रहा था. संबंध के साथ प्रेम और सहमति तैसे तत्व उसके अन्दर नहीं थे, जो एक तरह के दिमागी विकार का बड़ा संकेत है. इस तरह के मानसिकता वाले अपराधी अपने शिकार के चुनाव में एक चीज़ का ख्याल रखते हैं कि उनका शिकार उसके अधीन हो. यानी सामाजिक तौर पर उसकी 'सुप्रीमेसी' शिकार पर हावी रहे. उसे अपने अपराध के दौरान या उसके बाद अपने शिकार से विरोध बिल्कुल बर्दाश्त नहीं होता.


ऐसे अपराधी में एक और बड़ी चीज़ पाई जाती है, वो होती है 'सेन्स आफ यूनिकनेस' यानी शिकार और उसके कृत्य में नयापन. ऐसा आदमी किसी एक व्यक्ति से संबंध के बाद संतुष्ट नहीं होता, बल्कि उसे अपने इस अपराध में हमेशा नयापन चाहिए, नए शिकार चाहिए. यही वजह है कि ऐसा अपराधी अपराध करने की बारंबरता और नए-नए शिकार के चुनाव के चलते सीरियल अफेंडर यानी सीरियल अपराधी बन जाता है.


मुजफ्फरपुर कांड के आरोपी के बारे में ये चीज़ें काफी कुछ मिलती जुलती हैं. अगर वो सीरियल अपराधी ना होता तो सुधार गृह में किसी एक लड़की का चुनाव अपने अपराध के लिए करता और उसी के साथ वो अपराध बार-बार करता लेकिन उसने ऐसा नहीं किया. एक के बाद एक 34 लड़कियों को अपना शिकार बनाया.


इस तरह के अपराधी के दिमाग में एक बात और होती है कि वो इतना शक्तिशाली है कि उसका शिकार खुद उसके सामने समर्पण कर देगा. अगर ऐसा नहीं होता तो वो हिंसक हो जाता है. लड़कियों के बयान ब्रजेश ठाकुर के दिमाग के अन्दर इस तत्व की मौजूदगी के संकेत दे रहे हैं.


ऐसा अपराधी बेहद शातिर और चालाक होता है. वो अपने से ज्यादा शक्तिशाली या अपने लिए खतरा बनने वाले लोगों को भी अपने अपराध में शामिल करने की कोशिश करता है. उनको भी अपनी मानसिकता या दिमागी संकेत हासिल करने की दिशा में लगातार आगे बढ़ाने की कोशिश करता रहता है.


ऐसे अपाराधियों के दिमागी विकार के इन्फेक्शन से दूसरों को बचने के लिए ये ज़रुरी होता है कि वो दिमागी और व्यवहारिक तौर पर प्रशिक्षित हों. उन्हें इस तरह के विकार के बारे में पता हो वरना आसानी से ऐसे अपराधी के संपर्क में रहने वाले दूसरे लोग भी 'इन्फेक्शन' की चपेट में आ जाते हैं और सेक्स अपराधी बन जाते हैं. जैसा कि मुजफ्फरपुर कांड के दूसरे सह आरोपियों के साथ हुआ.


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)