BLOG: न पीने के लिए न आचमन के लिए साफ पानी, फिर भी मोदी के साथ है वाराणसी
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के चार साल पूरे होने वाले हैं. जनता ने इस सरकार को प्रचंड बहुमत से सत्ता में इसलिए बिठाया क्योंकि मोदी ने 2014 लोकसभा चुनावों के दौरान लंबे-चौड़े वादे किए थे. उन्होंने उम्मीदों की ऊंची-ऊंची इमारतें खड़ी कर दी थीं. 2019 की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है. ऐसे में सवाल है कि अब 2019 कौन जीतेगा? नरेंद्र मोदी या राहुल गांधी? मोदी जीतेंगे तो कैसे? राहुल गांधी, जिनकी पार्टी कांग्रेस चार राज्यों में सिमटी है, उसे जनता क्या 2019 की कमान सौंप सकती है या देश की राजनीति में क्षेत्रीय दलों की भूमिका एक बार फिर महत्वपूर्ण हो सकती है?
सवाल ये भी है कि क्या नरेंद्र मोदी इन चार सालों में जनता की उम्मीदों पर खरा उतर पाए हैं? इसी सवाल का जवाब ढूंढने के लिए एबीपी न्यूज की टीम देश के तमाम शहरों की यात्रा पर है. इस यात्रा का मकसद ये है कि एबीपी न्यूज अपने चुनावी बुलेटिन में, जमीन पर जनता के मिजाज को समझे और बारीक विश्लेषण के साथ उसे देश के सामने रखे. खबरों की विश्वसनीयता और पत्रकारिता के बुनियादी उसूलों पर हमेशा खरा उतरने की एबीपी न्यूज की कोशिश का ही नाम है ‘2019 कौन जीतेगा’?
वाराणसी
न पीने के लिए न आचमन के लिए साफ पानी
हम सबसे पहले दिल्ली से 800 किमी दूर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के लिए निकले. दिन में अलग-अलग हिस्सों में लोगों से सवाल करते रहे और फिर शाम 7 बजे वाराणसी में अस्सी घाट पर हमारा शो शुरु हुआ. बहस में कई चीजें साफ होने लगीं. वाराणसी की जनता का कहना है कि ना तो काशी विश्वनाथ के आचमन के लिए साफ पानी मिल रहा है और ना ही जनता को पीने के लिये. कुछ ने ये भी कहा कि मोदी जी जब आते हैं तो नालियों को ढंक दिया जाता है ताकि विदेशी मेहमानों की (अगर वे हैं तो) नजर ना आए. उनके लौटते ही हालात जस के तस हैं.
नाराजगी के बावजूद पीएम मोदी के साथ है ये शहर
वैसे इस दौरान दो बातें साफ समझ आईं. पहली ये कि प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र होने के नाते लोगों ने कई तरह की उम्मीदें लगा रखी हैं और वे पूरी नहीं हुई हैं. दूसरी, ये कि हिंदुत्व के मुद्दे पर इस सबसे पुरानी धार्मिक नगरी में पीएम मोदी सबसे आगे हैं. मंदिरों का ये शहर नाराजगी के बावजूद भी पीएम मोदी के साथ है. अगर 2004 को छोड़ दें तो साल 1989 से वाराणसी संसदीय सीट बीजेपी जीत रही है. 2014 में बीजेपी के पीएम उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के यहां आने के बाद यह सीट सबसे ज्यादा सुर्खियों में रही. नरेंद्र मोदी ने आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को तीन लाख से ज्यादा वोटों से काशी में हराया था.
गोरखपुर
युवाओं के सामने रोजगार की समस्या
अगले दिन वाराणसी से आगे हमारा सफर शुरु हुआ और हम पहुंचे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के शहर गोरखपुर. यहां हमने पाया कि हाल के गोरखपुर उपचुनाव के नतीजे ने समीकरण बदल दिए हैं. हमारे शो में गोरखपुर विश्वविद्यालय के छात्र भारी तादाद में आए हुए थे जिनका कहना था कि एक तो रेगुलर क्लास नहीं चलती हैं औऱ ऊपर से एग्जाम के समय पेपर लीक हो जाता है. रोजगार की समस्या चरम पर है. नौजवान कहां जाये? हम बेहद हताश और निराश हैं.
गोरखपुर की हार से सबक लेती नजर आई बीजेपी
गोरखपुर में हमें शिक्षा मित्र भी खासी तादाद में मिले जो योगी सरकार से उत्तराखण्ड की तर्ज पर सैलरी की मांग कर रहे थे. गोरखपुर में इंसेफेलाइटिस और ऑक्सीजन की कमी के कारण बच्चों की मौत को लेकर लोग गुस्से में दिखे. हांलाकि कई ऐसे भी हैं जिनका कहना है कि सांसद के रुप में योगी आदित्यनाथ ने गोरखपुर को आगे ले जाने की पूरी कोशिश की. गोरखपुर में एम्स का आना उनमें से ही एक है. मुख्यमंत्री बनने के बाद भी यहां पर अलग-अलग जगहों पर काम तेजी से आगे बढ़ रहा है. कुल मिलाकर आम शहरी औऱ अलग-अलग पार्टियों के लोगों ने बीजेपी के खिलाफ मजबूती से अपनी बात रखी. वैसे यह भी सही है कि गोरखपुर की हार से बीजेपी सबक लेती हुई नजर आई. पार्टी अब ना सिर्फ वहां पूरा जोर लगाएगी बल्कि उसके वोटर भी सारा काम छोड़कर 2019 में सबसे पहले वोट डालने पहुंचेंगे जिनके अंदर योगी के नेतृत्व में हार का मलाल है. एबीपी न्यूज के मंच पर से ये बातें साफ समझ आ रही थीं. इसी मंच पर गोरखपुर से सांसद चुने गए समाजवादी पार्टी के 28 साल के प्रवीण निषाद ये दावा कर रहे थे कि 2019 में वे फिर जीतेंगे.
अयोध्या
आम शहरी में सरकार को लेकर नाराजगी
गोरखपुर से हम निकल पड़े अपने अगले पड़ाव राम की जन्मभूमि अयोध्या के लिए. इस नगरी को अपने अच्छे दिनों का इंतजार है. चाहें वह विकास के मोर्च पर हो या फिर मंदिर का निर्माण का मुद्दा हो. अयोध्या, राम राज्य चाहती है औऱ उसे लगता है कि सरकार जिन उम्मीदों के साथ आई थी, वे चार साल बाद भी पूरी होती नहीं दिख रही हैं. आम शहरी में सरकार को लेकर नाराजगी है.
‘राम जी टाट में, बीजेपी वाले ठाट में’
एबीपी न्यूज के शाम 7 बजे के शो में इसकी गवाही साफ साफ मिली. ‘राम जी टाट में, बीजेपी वाले ठाट में’ ये कहना है अयोध्या निवासी संतोष दूबे का. जबकि बाबरी मस्जिद के मरहूम पक्षकार हासिम अंसारी के बेटे इकबाल अंसारी इस बात पर एतराज कर रहे थे कि सुप्रीम कोर्ट ने अभी तक फैसला दिया नहीं और संघ प्रमुख मोहन भागवत कह रहे हैं कि मंदिर बनाने का समय आ गया है. आखिर इतनी बेचैनी क्यों है? माना जा रहा है कि 2019 के पहले कोर्ट राम मंदिर पर अपना फैसला सुना सकता है इसीलिए हर खेमें में बेचैनी है. 2014 में लल्लू सिंह, जो अयोध्या से कई बार विधायक रहे वे बीजेपी के सांसद चुने गए.
तीन संसदीय सीटों का हाल हमें ये बता रहा था कि नरेंद्र मोदी के लिए आगे की राह आसान नहीं रहने वाली है. रोजगार, महिला सुरक्षा, विकास, किसान, दलितों के मुद्दे पर लोगों ने खुलकर अपनी राय रखी.
अमेठी
स्मृति ईरानी की सक्रियता ने बढ़ाई राहुल गांधी की मुश्किल
अयोध्या के बाद हम अमेठी पहुंचे. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का संसदीय क्षेत्र जहां से 2004 से वे लगातार जीतकर लोकसभा पहुंच रहे हैं. अमेठी जिसने हर चुनाव में गांधी परिवार को अपनी पलकों पर बिठाया, लेकिन यकीन मानिए शहर में आप दाखिल होते हैं तो विकास के मोर्चे पर ये शहर पीछे दिखता है. आपको अमेठी को देखकर निराशा होगी.
अमेठी के विकास के लिए राहुल गांधी ने पन्द्रह साल और मांगें हैं. ये बात समझ से परे है कि जिस अमेठी को रोल मॉडल सिटी के तौर पर पहचान रखनी चाहिए थी वो अमेठी गरीबी और तंगहाली के दौर से उबर क्यों नहीं पाई? आज भी यहां बिजली, पानी, सड़क, अस्पताल, स्कूल-कॉलेज की खस्ताहाली का लोग जिक्र करते हैं. अमेठी में पिछले चार सालों से मोदी सरकार में मंत्री स्मृति ईरानी की सक्रियता ने राहुल गांधी की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. अमेठी में बीजेपी के स्थानीय कार्यकर्ताओं में भी अलग-सा जोश दिखता है जो 2019 के लिये राहुल गांधी की परेशानी का सबब बन सकता है.
मैनपुरी
मुलायम परिवार का गढ़
अगले दिन हम पहुंचे मैनपुरी, जो मुलायम सिंह यादव परिवार का गढ़ कहा जाता है. 1997 से आज तक समाजवादी पार्टी के ही उम्मीदवार जीते हैं. 2014 में आजमगढ़ के अलावा मुलायम सिंह यादव यहां से चुनाव लड़े, जीत दर्ज की और बाद में ये सीट छोड़ दी. इसपर उपचुनाव में मुलायम सिंह यादव के बड़े भाई के बेटे तेजप्रताप सिंह यादव ने जीत दर्ज की. मैनपुरी में सड़के अच्छी हैं और बिजली को लेकर भी प्रदेश के बाकी हिस्सों के मुकाबले हालात अच्छे हैं.
मौजूदा सपा सांसद को लेकर लोगों की राय अच्छी नहीं
मुलायम सिंह यादव से यहां के लोगों का एक भावनात्मक जुड़ाव है. वैसे जाति का फैक्टर भी यहां सपा के पक्ष में है. तकरीबन 35 फीसदी आबादी यादवों की है जो पूरी तरह लामबंद है. मुसलमानों के जुड़ जाने से दूसरी पार्टियों के लिए यहां जीत हासिल करना आसान नहीं है. लेकिन शहर में आने के बाद चौराहों और कई घरों में आरएसएस का झंडा लहराता हुआ दिखा. सवाल पूछने पर पता चला कि कुछ दिन पहले यहां आरएसएस का एक कार्यक्रम हुआ था, जिसकी वजह से झंडे लगाये गये थे. वैसे मौजूदा सपा सांसद और लालू प्रसाद यादव के दामाद तेजप्रताप सिंह यादव को लेकर अच्छी राय नहीं है.
बीजेपी यहां मजबूत नहीं
मैनपुरी के ही कृष्णचंद बताते हैं कि उम्मीदों के मुताबिक काम नहीं हुआ. लोग यहां से एक बार फिर सांसद के तौर पर मुलायम सिंह यादव को ही चुनना चाहते हैं. ये कयास लगाए भी जा रहे हैं कि 2019 में मुलायम सिंह याद, आजमगढ़ छोड़ घर वापसी करेंगे और मैनपुरी से चुनाव लड़ेंगे. हमारे कार्यक्रम के दौरान मोदी-मोदी के नारे जरुर लग रहे थे लेकिन मैनपुरी में बीजेपी मजबूत नहीं है.
मैनपुरी में नरेंद्र मोदी के चार साल की पड़ताल के बाद हम यमुना एक्सप्रेस-वे से दिल्ली के लिए निकल पड़े. इस एक्सप्रेसवे को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव दावा करते रहे हैं कि एक बार जो एक्सप्रेस-वे से यात्रा कर लेगा वह सपा को ही वोट देगा. लेकिन यात्रा करने वालों ने क्या वास्तव में ऐसा किया? ये बड़ा सवाल है. नरेंद्र मोदी के चार साल पर बड़ी पड़ताल और ‘2019 कौन जीतेगा’ के लिए एबीपी न्यूज की यात्रा जारी है.
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)