ब्लॉग: पांच राज्यों का चुनावी नतीजा कुछ भी हो, कांग्रेस के लिए अगले छह महीने मुश्किल के हैं
आज जब देश 2019 के लोकसभा चुनाव की ओर बढ़ रहा है और चुनावी राजनीति गरमा रही है -नेहरू गांधी परिवार पर फिर संकट के बादल गहरा रहे हैं. प्रश्न ये उठता है कि क्या राहुल गांधी में इतना नैतिक साहस है कि वह हथकड़ी और गिरफ़्तारी की मांग कर सकते हैं या तिहाड़, अदालतों और पुलिस थानों के चक्कर लगा सकते हैं?
'मुझे गिरफ्तार कर हथकड़ी लगाओ' तीन अक्तूबर 1977 की शाम और इंदिरा गांधी की यह कड़कदार आवाज़. सीबीआई एसपी एन के सिंह एकदम ठिठक कर रह गए थे. बात 12 वेलिंगटन क्रिसेंट की है जो इंदिरा के सत्ता से बाहर होने के बाद उनका निवास था. राहुल गांधी उस समय मात्र सात साल के थे. यह नेहरू गांधी परिवार के लिए मुश्किलों भरा समय था. इंदिरा को तीन और संजय गांधी को बारह बार तिहाड़, बरेली और देहरादून जेल का मुंह देखना पड़ा. मोरारजी सरकार ने विशेष अदालतों के द्वारा इंदिरा और उनके परिवार को घेरने की कोशिश की. षड़यत्र की बातें इतनी फैलीं की इंदिरा ने रसोइया तक नहीं रखा. यह वह समय था जब सोनिया सब्जी पकाती थीं और मेनका इंदिरा के भाषण में मदद करती थीं.
2 मई, 1979 को स्टेट्समैन अख़बार में मुख पृष्ठ पर संजय गांधी का एक चित्र प्रकाशित हुआ था जिसमे संजय आधे बदन से नंगे खड़े थे और उनकी पीठ और कमर पर चोटों के निशान साफ़ नज़र आ रहे थे. पुराने लोगों को शायद दिल्ली पुलिस के डिप्टी कमिश्नर पी एस बरार की ककर्श आवाज़ अभी भी याद हो, संजय पर जब लाठियों की बरसात हो रही थी तो वह बोले थे. 'देखो मैं तुम्हें कैसे लीडर बनाता हूँ '
आज जब देश 2019 के लोकसभा चुनाव की ओर बढ़ रहा है और चुनावी राजनीति गरमा रही है -नेहरू गांधी परिवार पर फिर संकट के बादल गहरा रहे हैं. प्रश्न ये उठता है कि क्या राहुल गांधी में इतना नैतिक साहस है कि वह हथकड़ी और गिरफ़्तारी की मांग कर सकते हैं या तिहाड़, अदालतों और पुलिस थानों के चक्कर लगा सकते हैं? या फिर अपने चाचा संजय की तरह लाठियां खा सकते हैं.
मई 2019 तक का राजनीतिक घटनाक्रम तेज़ी से घूम रहा है. चुनाव पांच राज्यों में हो रहे हैं लेकिन चुनावी भाषण नेहरू गांधी परिवार के सन्दर्भ से भरे हुए हैं. मोदी के भाषण में 35 और 40 मिनट नेहरू इंदिरा राजीव और सोनिया की निंदा में निकल जाते हैं. नेशनल हेराल्ड केस की गति चरम सीमा पर है. दुबई से क्रिश्चियन मिशेल को भारत लाया जा चुका है. जी हां वही क्रिश्चियन मिशेल जिन्होंने एक दावा किया था कि उनपर किसी बड़े राजनेता का नाम लेने का दबाव है. दूसरी तरफ रॉबर्ट वाड्रा से जुड़े मामलों ने भी गति पकड़ ली है. ऐसा नजर आता है कि यह तमाम मामले चुनावी रूप लेंगे और कुछ ऐसा वातावरण बनाने का प्रयास होगा कि महागठबंधन छोड़ कांग्रेस समेत सब विपक्षी दल अपने आप को बचाने और संभालने में लग जाएँ.
पांच राज्यों का चुनाव नतीजा कुछ भी हो, कांग्रेस के लिए अगले छह महीने मुश्किल के हैं. संगठन की व्यवस्था कुछ ऐसी है कि प्रचार और साधन से लेकर सब कुछ नेहरू गांधी परिवार के हाथ में है. कांग्रेस के भीतर वकीलों में प्रतिस्पर्धा चरम पर है. ऐसे वातावरण में पार्टी को दिशा देना और मज़बूती से खड़ा होना बहुत मुश्किल होगा. मुंशी प्रेमचंद ने एक बार कहा था, 'दुनिया में विपत्ति से बढ़कर अनुभव सिखाने वाला कोई भी विद्यालय आज तक नहीं खुला है.
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