कुछ साल पहले की बात है. टेलीविजन पर एक विज्ञापन बहुत लोकप्रिय हुआ था. ये इंडिया का क्रिकेट है बीडू,  विकेट मिले तो ताली बीडू, बॉलर पिटे तो गाली बीडू, ये इंडिया का क्रिकेट है बीडू, लपकेगा कैच तो बोले छक्कास, टपकेगा कैच तो सत्यानाश, ये इंडिया का क्रिकेट है बीडू, जीते तो ठाठ और हारे तो वाट है.

विराट कोहली अपने पहले बड़े इम्तिहान में इस बात पर ध्यान देंगे तो अच्छा रहेगा. ये सच है कि विराट कोहली एक शानदार बल्लेबाज हैं. दुनिया के बेहतरीन बल्लेबाजों में से एक. दक्षिण अफ्रीका के मुश्किल दौरे में भी वो शतक जमा चुके हैं. बावजूद इसके उनकी आलोचना हो रही है. आलोचना इसलिए क्योंकि वो टीम के कप्तान भी हैं. बतौर कप्तान उन्होंने भारतीय पिचों पर जो साख कमाई थी, दक्षिण अफ्रीका में गंवाई है.

आलोचना इसलिए भी हो रही है क्योंकि पिछले कुछ महीनों में  विराट कोहली ने एक से बढ़कर एक बयान दिए हैं. ऐसी बातें कहीं हैं, जिन्हें सुनकर या पढ़कर लगता है कि विराट कोहली देश के क्रिकेट भविष्य को सकारात्मक कर देंगे. जबकि सच ये है कि जैसे ही मुश्किल पिच मिली उनकी टीम पुरानी टीम इंडिया की तरह ही दिखने लगी. आज दुनिया की नंबर एक टेस्ट टीम पर ‘व्हाइटवाश’ का खतरा मंडरा रहा है. ऐसे में विराट कोहली आज जब मैदान में उतरेंगे तो उनकी रणनीति पर सभी की नजर रहेगी, जिसमें सबसे पहली जिज्ञासा प्लेइंग 11 को लेकर होगी.

कई बड़े दिग्गजों ने प्लेइंग 11 पर उठाए सवाल
बिशन सिंह बेदी समेत कई दिग्गज खिलाड़ियों ने पिछले दो टेस्ट मैच में विराट कोहली के प्लेइंग 11 पर सवाल खड़े किए. टीम के भरोसेमंद बल्लेबाज अजिंक्य रहाणे को दोनों टेस्ट मैच से बाहर रखने पर उनकी आलोचना हुई. पहले मैच में अच्छा प्रदर्शन करने वाले भुवनेश्वर कुमार को दूसरे टेस्ट में बाहर बिठाने को लेकर भी लोगों ने सवाल खड़े किए. इन सवालों के पीछे पसंद नापसंद का मामला नहीं था, क्योंकि किसी ने ये नहीं कहाकि रोहित शर्मा को क्यों खिलाया जा रहा है बल्कि ये पूछा कि अजिंक्य रहाणे को क्यों नहीं खिलाया जा रहा है. जसप्रीत बुमराह के चयन पर सवाल उठे.

इस बात पर तो जमकर सवाल उठे कि विराट कोहली लगभग हर टेस्ट मैच में अपने प्लेइंग 11 में बदलाव क्यों करते हैं? इन परिस्थितियों में विराट कोहली को आज प्लेइंग-11 चुनना है. भारतीय टीम तीसरा टेस्ट मैच जीतेगी या हारेगी, इससे पहले इस बात का भरोसा होना चाहिए कि विराट कोहली ने प्लेइंग-11 चुनने में अपनी मनमर्जी नहीं की है. बतौर कप्तान विराट इस वक्त बड़ी बारीक सी लाइन पर चल रहे हैं. उन पर दबाव होगा उस दबाव के बीच उन्हें निष्पक्ष होकर अपना प्लेइंग 11 चुनना है.

एक मैच और हारे तो बढ़ेगा दबाव
भूलना नहीं चाहिए कि ये वो देश है जहां सचिन तेंडुलकर को कप्तानी छोड़नी पड़ी थी. भारत के लिए क्रिकेट खेलना एक बात है और कप्तानी करना दूसरी बात. सचिन तेंडुलकर ही क्यों, सौरव गांगुली और राहुल द्रविड़ ने कप्तानी छोड़ी. टीम इंडिया का कप्तान होना इतना आसान काम नहीं है. जिस देश में लोगों को क्रिकेट में हार चाहिए ही नहीं, उस देश में आप लगातार हारें तो ताली के बदले तुरंत गाली मिलने लगती है. यूं तो कप्तानी धोनी ने भी छोड़ी लेकिन उन्होंने कप्तानी छोड़ने से पहले खुद को बतौर कप्तान एक शिखर तक पहुंचाया, विराट कोहली बतौर कप्तान अभी उस शिखर से बहुत दूर हैं.

उस शिखर तक पहुंचने के रास्ते में इस तरह की मुश्किल सीरीज हैं, हार है, हार की निराशा है, पत्रकारों के तीखे चुभते सवाल हैं, क्रिकेट फैंस का नाराजगी भरा प्रदर्शन है...इन मुश्किल चुनौतियों को पार करके कप्तानी के शिखर पर पहुंचने का रास्ता है. विराट कोहली को भी इन रास्तों से गुजरना होगा. पिछले टेस्ट मैच में हार के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में जो उनका गुस्सा पत्रकारों पर निकला, वो गुस्सा पीना होगा. उन्हें समझना होगा कि वो भारत की क्रिकेट टीम के कप्तान हैं, किसी और खेल के नहीं...और भारत में क्रिकेट कप्तान से सवाल पूछने का हक सभी को है. सचिन, कपिल, गावस्कर जैसे खिलाड़ी इससे नहीं बचे तो कोई क्या बचेगा, इसलिए इससे पहले कि बतौर कप्तान विराट कोहली पर दबाव और बढ़े पहली जरूरत सही खिलाड़ियों को चुनने की है.