नई दिल्ली: जार्ज बर्नाड शॉ ने एक बार कहा कि जीवन खुद को खोजने का नाम नहीं है बल्कि जीवन खुद को बनाने का नाम है. बर्नाड शॉ ने तकरीबन 90 या 100 साल पहले ये बात कही थी. लगभग एक शताब्दी बाद यही बात क्रिकेट के मैदान पर भारतीय कप्तान विराट कोहली सच करते दिख रहे हैं. वो क्रिकेट की गलाकाट स्पर्धा में खुद को बनाने की नई लीक खोल रहे हैं.

आप जितने भी साल से क्रिकेट देख रहे हैं और भारतीय क्रिकेट के फैन रहे हों, बता दीजिए कब आपने देखा कि कोई भारतीय कप्तान किसी घरेलू सीरीज़ में स्पिन की मददगार पिच छोड़कर कोलकाता जैसी सीमिंग और स्विंगिंग कंडीशंस को गले लगाता हो? कोई दूसरा कप्तान होता तो कोलकाता टेस्ट के बाद ही कह देता बस बहुत हुआ, स्पिन वाली पिच बनाओ, सीरीज़ जीतेंगे और चौड़े से जाएंगे दक्षिण अफ्रीका.

एक वाकया याद आता है जो यहां बेहद मौजू है. भारतीय कप्तानों की फेहरिस्त में सबसे बड़े दिल वाले कप्तानों में सौरव गांगुली को माना जाता है . नागपुर में साल 2004 में ऑस्ट्रेलियाई टीम से मुकाबला था. गांगुली कप्तान थे और हनक से कप्तानी कर रहे थे. नागपुर की पिच पर घास देखकर गांगुली भी दहल गए और उन्होंने प्लेइंग इलेवन से ही खुद को बाहर कर लिया . ये गांगुली का तेज़ पिचों पर खौफ नहीं था जितना इस बात का गुस्सा कि हिंदुस्तान में तेज गेंदबाजों की मदद वाली पिच बन कैसे गई? बहरहाल गांगुली ने इस पिच की काफी आलोचना भी की. भारतीय क्रिकेट को 13 साल फास्ट फारवर्ड कीजिए और आज कप्तान कोहली को देखिए .

घर में ही तेज़ पिच पर लोहा लेंगे
विराट कोहली की कप्तानी में पिछले दो सालों में करीब-करीब आधा दर्जन टेस्ट मैच ऐसे हैं जो भारत ने ऐसे ही कंडीशंस में भारत में खेले हैं. कोलकाता में बल्लेबाजों की कब्रगाह बनी सो बनी लेकिन विराट सीरीज़ के अगले दो टेस्ट मैचों के लिए भी तेज़ पिच ही मांग रहे हैं और वो उन्हें मिलेगी भी. विराट ऐसा दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ जनवरी में होने वाली सीरीज़ की तैयारी के लिए कर रहे हैं.

ये प्रयोग भारतीय क्रिकेट में पहली बार हो रहा है. ये तो ऐसे ही है कि टीम इंडिया दक्षिण अफ्रीका जाए और वहां उसे स्पिनिंग ट्रैक्स मिलें. ऐसा क्रिकेट में होता नहीं है. लेकिन टीम को हर कंडीशन के लिए तैयार करने और विदेशों में भी जाकर जीत का दम भरने के लिए विराट के ये प्लान वाकई तारीफ के काबिल है क्योंकि ये ऐसा कप्तान है जिसे पूरी दुनिया जीतनी है और अपनी शर्तों पर जीतनी है .

चौथी पारी में चार चांद
हिंदुस्तान में जैसा कि अक्सर होता है, अधिकतर या यूं कहें 90 फीसदी बल्लेबाज पहली पारी के शेर होते हैं लेकिन चौथी पारी में भारतीय बल्लेबाजों का दमखम कम ही देखने को मिलता है. विराट भी बाकी बल्लेबाजों की तरह पहली पारी में शानदार रिकॉर्ड रखते हैं . पहली पारी में विराट का औसत शानदार 54.13 का है जबकि दूसरी पारी में ये 43.83 हो जाता है. लेकिन विराट लगातार इस पर मेहनत कर रहे हैं. 2014 में एडिलेड में आखिरी दिन शानदार 141 रन की पारी के बाद कोलकाता की पारी इसकी मिसाल है. कोलकाता में विराट ने अर्धशतक के शतक के बीच सिर्फ 39 गेंदें लीं.

लेकिन सबसे तारीफ वाली बात ये है कि आखिरी दिन कुल 241 रन बनाए और 14 विकेट गिरे. इन 241 रनों में से 104 अकेले कोहली ने ही बनाए. श्रीलंका को 231 रन का लक्ष्य देने के बाद विराट के गेंदबाजों ने जैसे शेरदिल दिखाया वैसे भारतीय क्रिकेट के इतिहास में कम ही देखने को मिलता है. विराट एक ऐसे कप्तान बन चुके हैं जिसे सिर्फ लड़ना नहीं आता है बल्कि वो जीतना भी चाहता है. दक्षिण अफ्रीका की चुनौती के लिए जो तैयारी विराट कर रहे हैं, अगर उसमें सफल हो गए तो यकीन रखिएगा. वो भारतीय इतिहास की सबसे सफल क्रिकेट टीम की नींव रख चुके होंगे.