महज बीस करोड़ की आबादी वाले अफ्रीकी देश नाइजीरिया ने डिजिटल मीडिया की दुनिया में बढ़ती अमेरिकी ताकत को एक झटके में ही वहां ला दिया, जहां 'ट्विटर' ने कभी सोचा भी न होगा. हमारे देश में पिछले दो दिनों से छिड़े इस विवाद पर तमाम तर्क आये हैं, लेकिन हैरानी तब होती है, जब सरकार को लाने वाले संगठत ही ये दलील दे दें कि भारत सरकार चाह कर भी ऐसी कठोर कार्रवाई नहीं कर सकती क्योंकि भारत एक मजबूत लोकतंत्र है, लिहाजा हम उन्हें प्रेम की भाषा में समझा रहे हैं. तो फिर उन्हें अंजाम भुगतने की चेतावनी देने का कोई रास्ता तो इस्तेमाल ही नहीं करना चाहिए था.
जी हां, वो रास्ता है और वो है ऐसा भरपूर विदेशी निवेश जो अमेरिका के जरिये ही भारत मे आता है. जो लोग सोशल मीडिया पर बहुत एक्टिव रहते हैं, उन्होंने ट्विटर और भारत सरकार के बीच छिड़ी तक़रार में कभी भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रतिक्रिया को नहीं देखा होगा. शायद वो आएगी भी नहीं क्योंकि वो सिर्फ एक मसले पर अमेरिका जैसे ताकतवर मित्र को कभी नहीं खोना चाहेंगे. दुनिया के देशों से चाहे वो रुस हो, अमेरिका हो, इज़रायल हो या बेहद मजबूरी में चीन हो, तब भी भारत सरकार इनसे अपने रिश्ते खराब होने-करने को कभी प्राथमिकता नहीं देती.
देशहित में हम सबको ये मंजूर करना चाहिए और उम्मीद भी करनी चाहिए कि विदेशी निवेश आने से देश की माली हालत कुछ सुधरेगी और बेरोजगार लोगों की संख्या में कमी आयेगी. माना कि पिछले डेढ़ दशक में इतनी विदेशी कंपनियों ने हमारे यहां इतने युवाओं को नौकरियां दीं, जिसकी कल्पना नहीं कर सकते थे. लेकिन कोरोनाकाल के बाद हालात बदल चुके हैं, जो वाकई बदतर हैं. क्योंकि बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम करने वाले नौजवान भी अब सैलरी की बात करने में मुंह चुराते हैं. इन सबका जिक्र करना इसलिये भी ज़रूरी था कि लोग अपने शिक्षित बच्चों को अमेरिकी कंपनियों में काम करने के लिए इस सिर्फ लालच में भेजते हैं कि रुपयों की बजाय डॉलर की खेती होगी.
लेकिन ऐसे सब टेक्निकल एक्सपर्ट को अब समझना चाहिए कि डिजिटल मीडिया में एक नई इबारत लिखने की शुरुआत हो चुकी है. वो हुई तो भारत से ही थी, लेकिन आज उसने नाइजीरिया देश को अपनाने के लिए मजबूर कर दिया. पुरानी कहावत है कि सबसे ऊंची मस्जिद-मंदिर पर पहुंचने का सफर रास्ते में आने वाले नुकीले पत्थरों की खरोंच खाये आप पूरा कर ही नहीं पाते. लेकिन उसे साकार किया, अपने ही देश के नौजवानों ने. आज नाइजीरिया ने अपनाया है, कल से और भी देश अपनाएंगे, लेकिन शायद हम उसे सबसे आखिर में अपनाएंगे क्योंकि हमारी फितरत बन चुकी है, हर विदेशी माल को अपनाने की.
भारत का सोशल नेटवर्किंग प्लेटफॉर्म Koo अब नाइजीरिया में भी उपलब्ध है. कंपनी के को-फाउंडर और सीईओ अप्रमेय राधाकृष्ण ने ट्वीट कर इस बात की जानकारी दी है. दरअसल ट्विटर ने अपने नियमों के उल्लंघन का हवाला देते हुए नाइजीरिया के राष्ट्रपति मुहम्मदु बुहारी का एक ट्वीट डिलीट कर दिया था. जिसके बाद वहां की सरकार ने ट्विटर के इस्तेमाल पर अनिश्चितकाल तक रोक लगा दी है. अप्रमेय राधाकृष्ण ने इसके बाद ट्वीट करते हुए लिखा, "Koo अब नाइजीरिया में भी उपलब्ध है. हम अपने इस प्लेटफॉर्म पर यहां की स्थानीय भाषाओं का विकल्प देने की भी सोच रहे हैं."
भारत में Koo App को देसी ट्विटर कहा तो जाता है और इसने ट्विटर के विकल्प के तौर पर अपनी शुरुआत की है, लेकिन लोग अभी उतनी तादाद में नहीं जुड़े हैं. अप्रमेय राधाकृष्ण और मयंक बिडवाटका द्वारा तैयार किए गए इस सोशल नेटवर्किंग प्लेटफॉर्म ने पिछले साल अगस्त 2020 में भारत सरकार का आत्मनिर्भर ऐप इनोवेशन चैलेंज जीता था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अपने 'मन की बात' कार्यक्रम में देशवासियों को इस ऐप का इस्तेमाल करने के लिए प्रोत्साहित कर चुके हैं. पिछले साल अगस्त 2020 में इसने भारत सरकार का ‘आत्मनिर्भर ऐप इनोवेशन चैलेंज’ जीता था और वर्तमान में इसका मूल्य $ 100 मिलियन से अधिक है. ये हिंदी, तेलुगु और बंगाली सहित अन्य कई भाषाओं में उपलब्ध है और इसका उद्देश्य अगले दो सालों में अपने यूजर्स की संख्या 10 करोड़ तक पहुंचाने का है.
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)