एक सत्र के चुनाव से सब कुछ ठीक नहीं हो सकता है लेकिन हमारी सही भागीदारी होने से कुछ चीजें बेहतर हो सकती हैं. सरकार को रातों-रात क्रांति के साथ बदला जा सकता है, लेकिन विकास केवल क्रमागत उन्नति के माध्यम से किया जाता है, इसीलिए योग्य उम्मीदवार का चयन आवश्यक है, यह समाज में एक सकारात्मक परिवर्तनों को प्राप्त करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण तरीका है.


चौक चौराहों पर बैठ, फुसियाही रगड़ा और अनावश्यक मुद्दों पर चर्चा करने से चीजें खुद-बखुद ठीक नहीं होतीं हैं. निजी स्वार्थ के आधार पर उम्मीदवार का चुनाव करना पूरे समाज के लिए दुःख़द होता आया है. नेता वही सही है जिसके पास ठोस योजनाएं और नीतियां हैं, जो एक बेहतर, निष्पक्ष, मजबूत राज्य की हमारी दृष्टि को वास्तविकता में बदले, ताकि मिथिला में शताब्दियों से छाए अंधेरे को दूर कर सही दिशा दिखाए, जिससे समाज को एक बेहतर भविष्य की कल्पना को नया आयाम मिले.


सीता शक्ति का प्रतिक है, वो मिथिला के राजा जनक की पुत्री और अयोध्या के राजा, भगवान श्री राम की पत्नी थीं. हिंदू में सीता को लक्ष्मी, दुर्गा और सरस्वती के सभी गुणों में देखतें हैं. किसी भी अन्य देवी-देवता ने भारतीय महिलाओं के सांस्कृतिक जीवन को प्रभावित नहीं किया है, जितना कि सीता ने किया है, जो अपने आप में अदभुत है.


कोटा शहर जहां अधिकांश विद्यार्थी व शिक्षक बिहार से अपने भविष्य को संवारने जाते हैं. सिर्फ कोचिंग से ही कोटा का कारोबार हजारों करोड़ का है. राजनीतिक इच्छाशक्ति को छोड़, मिथिला को एजुकेशन का हब बनाने में किसी और चीज की आवश्यक्ता नहीं है. यहां का किसान अपना खेत बेचकर अपने बच्चों को पढ़ने दूसरे राज्य में भेजते हैं. अगर पढ़ने का अवसर यहां मिले तो पूरे प्रदेश में खुशहाली आएगी और यहां की लड़के-लड़कियां भी आगे बढ़ेगी और यहां का कारोबार भी बढ़ेगा.


जब अधिक महिलाएं काम करती हैं, तो अर्थव्यवस्था बढ़ती है. मिथिला पेंटिंग कला की उत्पत्ति का वर्णन रामायण के समय से मिलता है, जब भगवान श्री राम मिथिला आये थे. अगर पौराणिक कथाओं की सुने तो, मिथिला के राजा जनक द्वारा राम और सीता के विवाह के अवसर पर कलाकारों के एक समूह को सुंदर चित्रों के साथ विवाह स्थल को सजाने के लिए भार सौंपा गया था. हालांकि, बीते कुछ सालों में इस कला की सराहना देश-दुनिया में भी हुई है. इस कला में ज्यादातर महिलाएं ही शामिल होती हैं. इसके प्रचार-प्रसार से न केवल कारोबार में बृद्धि होगी, बल्कि महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण में भी मदद मिलेगा.


आम, मखाना और मछली से भी मिथिला की पहचान है, बीते कुछ सालों में इसकी महत्ता और मांग दोनों में ही वृद्धि हुई है. अर्थव्यवस्था में महिलाओं को सशक्त बनाना और जेण्डर गैप को कम करना आवश्यक है. मखाना का लावा बनाने की प्रक्रिया में महिलाओं की भी भागीदारी होती है. इन प्रदेशों में महिला रोज़गार दर बढ़ाने से सकल घरेलू उत्पाद को बढ़ावा मिलेगा. महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण से सकारात्मक विकास परिणामों के अलावा आर्थिक विविधीकरण में वृद्धि होगी.


आर्थिक सशक्तिकरण के लिए सबसे आवश्यक है, साफ-सुथरा और स्वच्छ वातावरण. यदि मिथिला की महिमा को पुनर्जीवित करना है, तो यह आवश्यक है कि, स्कूल, अस्पताल, सड़क, नदी, तालाबों और धार्मिक जगहों जैसी सार्वजनिक स्थानों के सुदृढ़ करना होगा और अतिक्रमण से भी बचाना होगा. ग्रामीण व शहरी इलाकों में जल निकासी व्यवस्था या साफ-सफाई के लिए आवश्यक कदम उठाने होंगे. सार्वजनिक स्थानों, अपने घर, आस-पड़ोस को सफाई के प्रति लोगों में जागरूकता लाने की भी आवश्यकता है. शहर के सभी महत्वपूर्ण सार्वजनिक जगहों पर, सड़क के किनारे, रेल मार्ग, नदी या तालाब के किनारे, इन सभी स्थानों पर वृक्षारोपण को प्राथमिकता दी जानी चाहिए. जल निकासी नालों का निर्माण कवर के साथ किया जाना चाहिए ताकि मच्छर की समस्या को प्रभावी ढंग से संबोधित किया जा सके. ग्रामीण व शहरी इलाकों में कचरा प्रबंधन पर भी ध्यान देना अति आवश्यक है.


क्या दरभंगा एयरपोर्ट को इंटरनेशनल एयरपोर्ट का दर्जा दिया जा सकता है? क्या भारत की यह पवित्र भूमि मिथिला, विश्व आध्यात्मिक केंद्र के रूप में फिर से उभर सकती है? सालों पहले, व्यापार व रोज़गार का अवसर ढूंढने यहां से लोग रंगून, काठमांडू, भूटान और बांग्लादेश भी जाते थे. प्रस्तावित रामायण सर्किट में दरभंगा का महत्वपूर्ण स्थान होगा, अगर इसकी प्लानिंग सही से की जाए तो, यह भारत के साथ नेपाल, बांग्लादेश, बर्मा, भूटान, थाईलैंड के संबंधों को मजबूत करने के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र हो सकता है.


पूर्व में मिथिला धर्म और आध्यात्म का केंद्र रही है, और यहां की न केवल पुरुष, यहां की महिलाओं ने भी भारतीय संस्कृति को एक सही दिशा दिखाने में अहम भूमिका निभाई है. न केवल सीता, यहां तक कि भारतीय संस्कृत को बचाने के लिए शंकराचार्य को मदद करने में मंडन मिश्र की पत्नी उभय भारती, जिन्हें देवी सरस्वती का अवतार माना जाता है, उनकी भी महत्वपूर्ण भूमिका रही है, ऐसा मिथिला के लोक गीतों में मिलता है.


इस चुनाव में महिलाओं की भागीदारी अति आवश्यक है. आज सीता और उभय भारती की धरती पर महिलाओं को सशक्त होने की आवश्यकता है. यहां चुनाव के बस कुछ ही दिन बचें हैं. मिथिला के सामने जो संकट दशकों से घेरा हुए है, उसका समाधान करने के लिए हमे फिर से एकजुट होने की आवश्यकता हैं.


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)


https://twitter.com/hemantjha


https://www.facebook.com/hemant.jha