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BLOG: अब वायु प्रदूषण से ज्यादा मानसिक प्रदूषण घटाने की चिंता कीजिए

राहत की बात मात्र इतनी है कि दिल्ली-एनसीआर में पिछली दिवाली के मुक़ाबले प्रदूषण की मात्रा इस बार घटते क्रम में दर्ज की जा रही है. लेकिन इसका अर्थ यह न समझा जाए कि प्रदूषण सहनीय स्तर पर आ गया है, बल्कि इसे यों देखा जाए कि पटाखों के योगदान से बढ़ने वाला प्रदूषण इस बार घटा है, जो माननीय सर्वोच्च न्यायालय के सीमित पटाख़ाबंदी आदेश का सुखद परिणाम है.

दिवाली का बारूदी धूमधड़ाका बीत गया है तो लोग अब यह मापने में जुट गए हैं कि किस शहर के किस इलाक़े में प्रदूषण की मात्रा कितनी रही. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की वेबसाइट के अनुसार आज सुबह छह बजे दिल्ली में प्रदूषण सूचकांक 351 दर्ज किया गया जो पर्याप्त ख़तरनाक श्रेणी में आता है. ग़ाज़ियाबाद में दिवाली की रात 12 बजे के पहले ही पीएम 2.5 का स्तर 500 और पीएम 10 का स्तर 800 हो चुका था तथा ज़हरीली सल्फर डाइऑक्साइड की मात्रा तय मानकों से 5 गुना तक बढ़ चुकी थी. अब दिल्लीवासी अपने फेफड़ों को बचाने के लिए मास्क लगाए टहल रहे हैं!

राहत की बात मात्र इतनी है कि दिल्ली-एनसीआर में पिछली दिवाली के मुक़ाबले प्रदूषण की मात्रा इस बार घटते क्रम में दर्ज की जा रही है. लेकिन इसका अर्थ यह न समझा जाए कि प्रदूषण सहनीय स्तर पर आ गया है, बल्कि इसे यों देखा जाए कि पटाखों के योगदान से बढ़ने वाला प्रदूषण इस बार घटा है, जो माननीय सर्वोच्च न्यायालय के सीमित पटाख़ाबंदी आदेश का सुखद परिणाम है. इसके लिए बच्चों के अभिभावक और आम दिल्लीवासी भी एससी के शुक्रगुज़ार ही होंगे और सोच रहे होंगे कि अगर माननीय न्यायालय की मूल भावना को ध्यान में रखते हुए अगर समस्त दिल्ली-एनसीआरवासियों ने पटाख़ों से पूरी तरह दूरी बना ली होती तो आबोहवा की गुणवत्ता इससे कई गुना बेहतर हो सकती थी और उनके बच्चों के नथुने ज्यादा राहत महसूस कर सकते थे. पर अफसोस! धर्म के अदृश्य ठेकेदारों के चलते यह न हो सका!

दिल्लीवासियों की जान बचाने की कोशिश को हिंदू धर्म पर कुठाराघात समझ लिया गया. रोक लगने की घोषणा होते ही लोगों ने संगठित अविवेक का बाना धारण कर लिया. व्हाट्सएप पर सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ संदेशों की कलुषित नदी उफनने लगी. सोशल मीडिया पर तैर रही टिप्पणियों में भी देश की सर्वोच्च अदालत के सम्मान का ध्यान नहीं रखा गया. सवाल उठ रहे थे कि जब मुसलमानों के त्योहारों पर बकरे काटने और ईसाइयों के न्यू इयर पर आतिशबाज़ी करने पर कोर्ट को कोई आपत्ति नहीं है तो हिंदू धर्म के त्योहारों पर पटाख़े चलाना आंखों में क्यों खटक रहा है? पूरे मामले को साम्प्रदायिक रंग दे दिया गया. वे यह तथ्य भूल गए अगर वे चाहें तो बकरीद या न्यू इयर पर होने वाले प्रदूषण के खिलाफ जितनी चाहे उतनी याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दाखिल कर सकते हैं. लेकिन नहीं, युद्धस्तर पर दिल्ली के बाहर से पटाखों की गोपनीय खेपें असलहों की तरह मंगाई-पठाई जाने लगीं जैसे किसी से बदला चुकाना है. बीजेपी का थप्पड़मार प्रवक्ता जतिंदर बग्गा अपने साथियों के साथ कॉलोनियों में पटाख़े बांटने यों निकलने पड़ा जैसे कोई भूखों को रोटियां बांटता है!

आननफानन में ऐसा आक्रामक कार्यक्रम रचना आम हिंदू के वश की बात नहीं, न ही उसकी ऐसी कोई कुचेष्टा रहती है. इसका सूत्र-संचालन तो किसी ऊपर वाले के हाथों में ही है. जमीन पर पटाख़ा मिश्रित नफरत बांट रहे लोग तो मात्र उसकी बेजान बना दी गई कठपुतलियां हैं. आम हिंदू जानता है कि दीपोत्सव को बारूदोत्सव में बदल देने से उसके ही बाल-बच्चों का दम घुटेगा. वो यह भी जानता है कि हवा में ज़हर घोलना किसी हिंदू का धर्म नहीं हो सकता. वह तो अपनी स्मृति के शुरुआती छोर से लेकर आज तक नदी, जल, जंगल, पहाड़, पवन और पेड़-पौधों की पूजा करता चला आ रहा है. घी या तेल में पगी कपास की बाती से सिक्त मिट्टी के सुंदर दीपक जलाकर अपने राजा राम की अगवानी करता आया है. फिर प्रकृति पदत्त पवन में ज़हर घोलने की जिद पर अड़ने वाले लोग किन गलियों से निकले थे? सुप्रीम कोर्ट परिसर के सामने सरे आम पटाख़े चलाकर उसे उसकी हैसियत दिखाने की कोशिश करने वाले लोग कौन थे? दिवाली की रात पटाख़ा चलाने से मना करने पर पुलिस से हाथापाई करने वाले समूह पाकिस्तान से आए आतंकवादी तो नहीं ही थे!

नामी मेडिकल जनरल लैंसेट का हालिया अध्ययन बताता है कि भारत में 2015 के दौरान सिर्फ प्रदूषण से संबंधित रोगों से 25 लाख लोगों की मृत्यु हो गई थी यानी प्रदूषण से हर मिनट 5 लोगों की मौत हुई. ध्यान रहे यह दो साल पहले का आंकड़ा है. इन दो सालों में प्रदूषण आसमान छू चुका है. हालांकि इस प्रदूषण का एकमात्र कारण दिवाली पर चलाए गए पटाख़े ही नहीं हैं, इसके अन्य कारक भी हैं. लेकिन अगर न्यायालय इस बार पटाख़े न चलाने का असर देखना चाहता था तो सभ्य समाज को इसमें उसका खुशी-खुशी सहयोग करना चाहिए था. दिल्ली-एनसीआर के लोगों ने निर्णय का स्वागत और सहयोग किया भी और पटाख़े कम चलाए, तभी तो इस बार वायु और ध्वनि प्रदूषण घटा है. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव ए. सुधाकर भी मान रहे है कि प्रदूषण सूचकांक पिछली दिवाली में मापे गए 450 के मुकाबले इस बार 350 के आसपास है, जो सुखद परिवर्तन है.

लेकिन वायुमंडल का प्रदूषण कम करने से ज्यादा चिंता अब लोगों के मानसिक प्रदूषण को कम करने की हो रही है. पटाख़ा बिक्री पर लगी रोक से पगलाए कुछ लोगों ने सुप्रीम कोर्ट को दिल्ली नगरनिगम का दफ्तर समझ लिया लेकिन न तो कोई धर्माचार्य कुछ बोला, न राजनेता न सरकार! चंद राजनीतिक दलों, सामाजिक संगठनों, उनकी मातृ-पितृ संस्थाओं तथा अनुषंगी बगलबच्चों की यह मनबढ़ लोकतंत्र का गला घोट देगी. ये लोग पार्टी कार्यालय की तर्ज पर शक्तिप्रदर्शन कर रहे हैं. यह कल्पना करके भी सिहरन होती है कि कल को चुनाव हार जाने पर अगर कोई राजनीतिक दल सरकार छोड़ने से इंकार कर दे और सुप्रीम कोर्ट द्वारा हटने का आदेश देने पर उसके समर्थक उत्पात मचाना शुरू कर दें तो इस महान भारतवर्ष का क्या होगा! मैं समझता हूं कि यह तिल का ताड़ है, लेकिन इस मानसिकता पर अगर समय रहते लगाम नहीं लगाई गई तो आज के राजनीतिक माहौल व दो फाड़ करने वाले विमर्श में तिल के ताड़ को हकीकत बनते कितनी देर लगेगी?

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(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)

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