रूहदार मरता नहीं, रूह की मौत नहीं होती!
इरफान छोटे शहर से आए थे. काफी संघर्ष किया था. बहुत लंबा स्ट्रगल. उनकी कोई भी फिल्म देखिए चाहे वो 'मकबूल' हो, 'हासिल', 'साहेब बीवी और गैगस्टर', 'हिंदी मीडियम'...वो कोई भी किरदार निभाए तो यूं लगता था जैसे इस एक्सपीरिएंस, इस अनुभव से खुद गुजरे हों.
गले में उसके खुदा की अजीब बरकत है
वो बोलता है तो एक रोशनी सी होती है.
इरफ़ान के बारे में सोचकर बशीर बद्र का यही शेर ही याद आता है. इरफ़ान का यूं चले जाना और जेहन में लगातार उठते उनके ख्यालों का तूफान. आज हर कोई श्रद्धांजलि दे रहा है. उनकी जिंदगी के सफर, उनके करियर, जो उन्होंने जिंदगी में मुक़ाम हासिल किया उसकी बात कर रहा है. जो रिएक्शन हैं वो ये इशारा कर रहे हैं जैसे इरफ़ान के रूप में कोई अपना चला गया. मैं उनसे एक बार मिला था. बातें भी हुईं. लेकिन बड़े आम से लगते थे. जैसे हमारे बीच के हों. यही आम लगना शायद इरफ़ान की सबसे बड़ी खासियत थी. वो स्टारडम में भी एक्टर बने रहे.
इरफान छोटे शहर से आए थे. काफी संघर्ष किया था. बहुत लंबा स्ट्रगल. उनकी कोई भी फिल्म देखिए चाहे वो 'मकबूल' हो, 'हासिल', 'साहेब बीवी और गैगस्टर', 'हिंदी मीडियम'...वो कोई भी किरदार निभाए तो यूं लगता था जैसे इस एक्सपीरिएंस, इस अनुभव से खुद गुजरे हों. जैसे ये दर्द उनके फिल्मी किरदार का नहीं उनका अपना हो. चेहरे पर मुस्कान उनके कैरेक्टर के लिए नहीं बल्कि उनके दिल की गहराइयों से निकली हो. उनकी उबलती सी आंखें. जो बिना कहे ना जाने कितना कुछ कह जाती थीं. वो गहरी आवाज जो कभी लरजती थी, तो कभी गूंजती थी. कभी खिलखिलाती थी. तो कभी दर्द में नहाकर दिल को चीर जाती थी. उनकी फिल्मों से जुड़ी मेरी यादें बहुत हैं लेकिन जो फिलहाल जो याद आ रही हैं वो साझा कर रहा हूं.
मैं स्कूल में था जब दूरदर्शन पर 'भारत एक खोज', 'चाणक्य', 'चंद्रकांता', इन सब के कुछ एपिसोड्स में इरफान नजर आए. इन सबमें लीड रोल नहीं था. इन टीवी सीरियल का हीरो कोई और था. लेकिन इरफान स्क्रीन पर होते तो नजरें ठहर जातीं. तब भी डायलॉग का वही बेफिक्र अंदाज वही था. जैसे अपने आसपास का कोई दोस्त बोल रहा हो. बेतकल्लुफ़. ऐसा लगता ही नहीं था कि एक्टिंग कर रहे हैं. हम बार-बार सोचते कि यार ये ग़ज़ब का एक्टर है कौन?
फिर इरफान बहुत साल तक गायब हो गए. बचपन के टीवी सीरियल भूल कर हम भी आगे बढ़ गए.
फिर कॉलेज से निकले तो जिमी शेरगिल की फिल्म रिलीज़ हुई हासिल. गाने बड़े हिट थे तो हम देखने गए ये सोचकर कि प्यार मोहब्बत वाली रोमैंटिक फिल्म होगी. लेकिन जब थिएटर से बाहर आए तो सारे दोस्तों पर बस इरफान का बुखार था. स्टूडेंट लीडर के रोल में ऐसा लगा कि ये तो एक्टिंग कर ही नहीं रहा. ये तो वाकई स्टूडेंट लीडर रहा होगा. एक एक्टर के लिए ये शायद सबसे बड़ा कॉम्प्लीमेंट है कि लगता ही नहीं कि वो एक्टिंग कर रहे हैं. यूं लगता है जैसे किरदार को लिबास की तरह पहन लिया और ये आखिर तक रहा. इरफ़ान की कंसिस्टेंसी बेमिसाल है.
उसी साल डायरेक्टर विशाल भारद्वाज की मकबूल आयी थी. नसीरुद्दीन शाह थे, ओम पुरी थे, पंकज कपूर, तबू, पीयूष मिश्रा जैसे दिग्गज एक्ट्रस थे. लेकिन मकबूल के लीड रोल में इरफान थे. आपने देखी होगी ये फिल्म बताने की जरूरत नहीं है. लेकिन इरफान को याद करते हैं तो मकबूल एक बार फिर देख लीजिएगा. कई सीन खासतौर पर आखिर के जब वो अब्बाजी बने पंकज कपूर का कत्ल करने के बाद जो सीन हैं. उनकी एक्टिंग रोंगटे खड़े करने वाली है. जब वो कहते हैं कि दरिया मेरे घर तक घुस आया है. अपने एनएसडी के दिनों में इरफान नसीरुद्दीन शाह की कॉपी करते थे. लेकिन मकबूल में उनके साथ काम करने के बाद नसीर ने भी उनका लोहा माना और कहा था कि इरफान तो जादू हैं.
कहते हैं बड़ा स्टार वो होता है जिसकी बुरी फिल्में भी पैसा कमाती है. और बड़ा एक्टर वो होता है जो बकवास फिल्मों में जान डाल दे. एक फिल्म थी 'रोग' जिसमें इरफान हीरो थे. इरॉटिक थ्रिलर, मर्डर मिस्ट्री थी जिसमें इरफान को एक लड़की की तस्वीर से इश्क हो जाता है. वो लड़की जिसका कत्ल हो चुका है. गाना बड़ा मशहूर है आपको याद होगा - मैंने दिल से कहा ढूंढ लाना खुशी. फिल्म बुरी तरह फ्लॉप हो गयी. लेकिन इरफान को देखेंगे तो लगेगा कि इस कदर बर्बाद फिल्म में वो अपना सबकुछ दे रहे हैं. ये भी लगेगा कि इश्क तो ऐसे ही करना चाहिए.
ये 2005 की बात है. तब भी ये लगता रहा कि इस एक्टर को उसका ड्यू नहीं मिल रहा इंटस्ट्री में. लगा कि इरफान को और ज्यादा नजर आना चाहिए स्क्रीन पर.
उन्होंने फिर 2007 में फिर जादू किया. फिल्म थी 'लाइफ इन अ मेट्रो'. एक किरदार जो शुरू में आपको इरिटेटिंग लगेगा. जैसे फिल्म में वो हीरोइन कोंकणा सेन को लगता है. लेकिन अगले एक घंटे में धीरे-धीरे अपने खांटी देसी अंदाज़ वाले ह्यूमर से कब आपके दिल में जगह बना लेता है आपको अहसास नहीं होता. फिल्म के क्लाईमैक्स में जब वो एक ही सीन में जिंदगी का फलसफा दे जाता है कि लाइफ में 'टेक योर चांस बेबी' तो पता चलता है कि फिल्म का हीरो तो असल में ये शख्स है.
बॉलीवुड में इरफान के कॉमेडी टैलेंट पर ज्यादा फोकस किया गया. ट्रेजेडीज़ यहां चलती हैं. कमर्शियल आस्पेक्ट आ जाता है. अपना वो चेहरा दिखाने के लए हॉलीवुड जाना पड़ा. मीरा नयर की द नेमसेक. अपने वतन से दूर अपने जड़े तलाश करते अशोक गांगुली के रोल में इरफान. ये फिल्म जितनी बार देखेंगे उतनी बार आखें नम होंगी. इस फिल्म से उनके सीन याद करेंगे तो गला भर आएगा. इरफान की रेंज देखती हो तो द नेमसेक देख लीजिए.
2008 के बाद इरफान को स्टारडम मिल गया. एक छोटे शहर से आए एक्टर, टीवी सीरियल और फिल्मों में में छोटे-छोटे रोल करके यहां तक पहुचने वाले एक्टर उस मकाम तक आ गए थे जहां शाहरुख खान ने फिल्म बनायी और हीरो लिया इरफान को. बिल्लू. फिल्म में कई खामियां हैं लेकिन इरफान की एक्टिंग कतई उनमें से नहीं है. शाहरुख के साथ एक सीन है आखिरी... जब फिल्मस्टार बने शाहरुख कहते हैं कि तुम इतनी मुश्किलों से गुजर रहे थे. मुझे कभी बताया क्यों नहीं. तो इरफान कहते हैं कि तू तो इतनी जल्दी ऊंचाई पर गया कि मेरी पहुंच से निकल गया. और फिर मेरी हिम्मत टूट गयी. पूरी फिल्म ना भी देख पाएं तो वो सीन देखिएगा आज यू ट्यूब पर.
इसके बाद एक बार फिर पान सिंह तोमर देखिएगा. मुझे कभी कभी लगता है कि इरफान क्लाईमैक्स सीन्स के मास्टर थे. पान सिंह तोमर में यूं तो कई सीन में वो करिश्मा करते हैं लेकिन जब वो अंतिम सीन में भागते हैं आखिरी बार. आपकी आंखों में आंसू आ जाएंगे.
उन्हें हॉलीवुड में भी झंडे गाड़े. लाइफ़ ऑफ पाई, अमेजिंग स्पाइडर मैन, जुरासिक पार्क में भी थे. लेकिन हॉलीवुड फिल्मों में भी वो कभी भी एक्स्ट्रा कलाकार जैसे नहीं लगे. वहां की इंडसट्री के लोग जानते थे कि हिदुस्तान का एक शानदार एक्टर है जिसका नाम इरफान है. इस मुक़ाम तक तक हमारे गिने चुने एक्टर ही पहुंच पाए हैं.
इरफान की एक्टिंग का जलवा कैसा था-इसका एक दिलचस्प किस्सा है. न्यूयॉर्क के एक रेस्तरां में इरफान अपने दोस्त आदित्य भट्टाचार्य और अपने एजेंट के साथ बैठे थे. तभी उन्होंने देखा कि पीछे की सीट पर एवेंजर्स और डार्क वॉटर वाले एक्टर मार्क रफैलो बैठे हैं. इरफान की बहुत इच्छा थी कि वो मार्क को हैलो कहें. उन्होंने आदित्य से कहा, ''यार, मैं मार्क का बड़ा फैन हूं और एक छोटा सा हैलो तो बोल ही सकते हैं.'' लेकिन साथ के लोगों को यह अच्छा नहीं लगा कि वो उठकर मार्क के पास जाएं. लंच के बाद इरफान एंड टीम उठकर जाने लगी. इरफान को बहुत अफसोस था कि वो मार्क से नहीं मिल पाए. तभी अचानक चमत्कार हुआ. मार्क ने गेट के पास पहुंचे इरफान को देखा और जैसे फौरन पहचान लिया. इरफान ठिठके और तभी मार्क ने वेव करते हुए कहा, ''इरफान मुझे आपका काम पसंद आया!'' तो ये था जलवा हॉलीवुड में.
विशाल भारद्वाज की हैदर याद होगी. तीन घंटे की फिल्म में शायद 15 मिनट का ही रोल था इरफान का लेकिन रूहदार बने इरफान की आवाज़... उनका अंदाज़ आपके दिल में घर कर लेगा. डिटेंशन सेंटर वाले सीन ...वो शायरी...आप भूल नहीं पाते.
वो स्टार भी थे, वो एक्टर भी थे. शाहरुख को जब एक बेहतरीन स्क्रिप्ट मिली तो हीरो के रूप में उन्होंने इरफान को लिया. बिल्लू बार्बर में इरफ़ान ने जबरदस्त एक्टिंग की. पिछले कुछ सालों में इंडस्ट्री में एक अलग जगह बन गयी थी. हिंदी मीडियम, ब्लैकमेल, करीब-करीब सिंगल, औऱ आखिरी फिल्म इंगलिस मीडियम जो कई मायनों में बेहद कमजोर फिल्म थी लेकिन बीमारी के बावजूद कैसे उन्होंने अपने आखिरी रोल में जान डाल दी.
वो जहां भी हों हमारी दुआ है कि सुकून से हों. फिल्म सात खून माफ में शायर के रोल में वो एक शेर कहते हैं-
इक बार तो यूं होगा,
थोड़ा सा सुकूं होगा.
ना दिल में कसक होगी,
ना सर पे जुनूं होगा.
तो जब याद आए इरफान की उनकी फिल्म देखिएगा. दिल से दुआ निकलेगी. उनके इंटरव्यू देखिएगा. उनके फलसफे की झलक भी मिल जाएगी. अपनी बीमारी से खूब लड़े इरफ़ान. कोई च्वाइस थी भी नहीं. लेकिन उनके आखिरी मैसेज सुनिए. लड़ने में भी अदा थी.
अपने बेमिसाल किरदारों, अपनी फिल्मों के ज़रिए वो हमारी यादों में हमेशा रहेंगे क्योंकि रूहदार मरता नहीं. रूह की मौत नहीं होती.
इरफान आपको हमारा सलाम.
(उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है)