कहावत पुरानी है. जब रोम जल रहा था तब नीरो बांसुरी बजा रहा था. आज जब दिल्ली सड़ रही है, लोग मर रहे हैं तो तीन-तीन नीरो बांसुरी पर बेसुरी तान छेड़े हुए है. तीन नीरो यानि केजरीवाल सरकार, मोदी सरकार और तीनों एमसीडी. केजरीवाल सरकार ही दिल्ली से बाहर है. केजरीवाल को गले के इलाज के लिए यही समय मिला तो उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया फिनलैंड जाना टाल सकते थे. गोपाल राय भी बाहर हैं. एक मंत्री हज पर है और खुद स्वास्थ्य मंत्रई सत्येंद्र जैन गोवा दौरे पर हैं जाहिर है कि चुनावों के सिलसिले में ही दौरा होगा. केन्द्र सरकार के नुमायंदे एलजी साहब फ्रांस की यात्रा पर हैं. हैरानी की बात है कि तीन में से दो मेयरों को भी यही समय मिला था बाहर जाने का. ऐसे में टोपी ट्रांसफर का खेल शुरु हो गया है. आप कहती है कि बीजेपी के एमसीडी जिम्मेदार हैं. बीजेपी कहती है कि आप जिम्मेदार है. आप कहती है कि एलजी के बहाने केन्द्र सरकार जिम्मेदार है. केन्द्र कहता है कि आप जिम्मेदार है. आप कहती है कि.....

इस टोपी ट्रांसफर के बीच अभी तक चिकनगुनिया से चार लोगों के मरने की बात सामने आई है और आप ने बड़े आराम से से कह दिया है कि इनमें से तीन दिल्ली के बाहर के हैं. गोया दिल्ली से बाहर का आदमी अगर दिल्ली में आकर इलाज के दौरान मरता है तो उसके लिए दिल्ली की सरकार न तो जवाबदेह और न ही जिम्मेदार है. अगर आम आदमी पार्टी के इस तर्क को मान लिया जाए तो फिर सवाल उठता है कि दिल्ली के आदमी को चिकनगुनिया होने पर उसके इलाज की जिम्मेदारी तो दिल्ली सरकार की है . चिकनगुनिया, मलेरिया और डेंगु के दो हजार से ज्यादा मरीजों के लिए दिल्ली सरकार जिम्मेदार है.

केन्द्र सरकार बीजेपी की है और बीजेपी के प्रवक्ता केजरीवाल को गलिया के खुद की सरकार का बचाव नहीं कर सकते. आखिर एम्स जैसे बड़े अस्पतालों की रखरखाव केन्द्र के तहत है . वहां अगर मरीज भटक रहे हैं या सुविधाओं के लिए रो रहे हैं तो उसके लिए किसी अन्य को कैसे जिम्मेदार ठहराया जा सकता है . यही बात तीनों एससीडी के लिए भी कही जा सकती है . तीनों पर ही बीजेपी का कब्जा है . दिल्ली में कचरा उठाने की जिम्मेदारी तीनों की है . लेकिन दिल्ली का दौरा करके आसानी से कहा जा सकता है कि कचरा बराबर उठ नहीं रहा है , गंदगी के ढेर लगे हैं और मच्छरों को न्यौता मिल रहा है . मच्छर अगर बोल पाते तो जरुर उनसे पूछा जाता कि हे मच्छर बता तेरी उत्पत्ति के लिए कौन जिम्मेदार है .

दिल्ली की जनता मच्छर , गंदगी , डेंगू , चिकनगुनिया , मलेरिया से दुखी है . वह एक दूसरे को गलियाने वाले बयानों से आजिज आ चुकी है . सुबह की सैर पर निकला तो लोग यही बात कर रहे थे कि तीनों नीरो ने एक दूसरे पर आरोप लगाकर दिल्ली का सत्यानाश कर दिया है . लोग कहने लगे हैं कि कांग्रेस की शीला दीक्षित के समय भी एमसीडी पर बीजेपी का कब्जा था लेकिन तब कचरा समय पर उठता था , तनख्वाह समय पर बंटती थी . कुछ गड़बड़ी होती तो शीला दीक्षित मेयरों से बात कर लेती थी . केन्द्र में जरुर दस सालों तक कांग्रेस की ही सरकार रही लेकिन तब केन्द्र के स्वास्थ्य मंत्री से लेकर शहरी विकास मंत्री से बात हो जाती थी . चाय पर मिलकर सहयोग मांग लिया जाता था , मदद की गुहार कर दी जाती थी और मदद हो भी जाती थी . सवाल उठता है कि तब अगर ऐसा हो सकता था तो आज क्यों नहीं हो सकता .

राजनीति में जनता के लिए काम कर रहे हैं केजरीवाल , जनता के प्रधानसेवक हैं मोदी और जनता के लिए समर्पित हैं तीनों एमसीडी . जब सब जनता के लिए है तो मुसीबत के समय आपसी मतभेद दूर कर सभी पक्ष एक मंच पर क्यों नहीं आते . दिल्ली के आखिरकार मुख्यमंत्री हैं केजरीवाल ( भले ही आधीअधूरी शक्तियों के साथ) लेकिन यही मौका था जब वह खुद को जनता के सेवक साबित कर सकते थे . उन्हे केन्द्र के दरवाजे पर जाना चाहिए था , तीनों मेयरों के पास जाना चाहिए था . अलग तरह की राजनीति शायद यही होती . केन्द्र और एससीडी का सहयोग मिलता तो सियासी जीत भी जीतते और जनता का विश्वास भी . सहयोग के बजाए आश्वासन मिलते तो भी सियासी जीत भी जीतते और जनता का विश्वास भी . बहुत बड़ा मौका खो दिया उन्होंने . ऐसा ही मौका खो दिया है केन्द्र ने भी .