पहले से ही न्यूज चैनल क्या कम थे..!!! जो एबीपी गंगा...और आ गया? हिंदी में एबीपी न्यूज जैसा ब्रांड पहले से ही मौजूद है। राष्ट्रीय स्तर पर जिसकी पहचान, प्रामाणिकता और दबदबा भी खूब है। ऐसे में एबीपी गंगा की जरूरत क्यों? ऐसे तमाम सवाल आपके मन में उठ सकते हैं। यकीन मानिये, एबीपी गंगा वास्तव में आपके जेहन में उठे इन्हीं सवालों का जवाब है।
प्रश्न कीजिए। कुछ प्रश्न बुरे लग सकते हैं। लेकिन वे जरूरी होते हैं। क्योंकि प्रश्नों में ही उत्तर छिपे हैं। यह भारतीय दर्शन का आधार है। देश को रखे आगे.. इस सूत्र वाक्य के साथ एबीपी न्यूज प्रश्नों से ही उत्तर या सवाल से ही समाधान की दिशा में आगे बढ़ने पर भरोसा करता है। सवाल से समाधान का मूलमंत्र ही असल में एबीपी गंगा का जनक है। ये सवाल क्या हैं, क्यों हैं इनके बारे में एबीपी न्यूज़ नेटवर्क की रिसर्च में बहुत ही दिलचस्प बातें सामने आईं। इन बातों को समझने के लिए और एबीपी गंगा की परिकल्पना को समझने के लिए सबसे पहले समझना होगा उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड का मिजाज।
पहले बात उत्तर प्रदेश की। उत्तर प्रदेश सिर्फ भौगोलिक नज़रिये से ही विशाल नहीं है, बल्कि सोच और सच के नज़रिये से भी विशाल है। सच्चाई ये है कि शक्ति, भक्ति, व्यापार और पूरे देश की सियासत का केंद्र है उत्तर प्रदेश। इस हकीकत को देश ही नहीं दुनिया भी जानती है। इसके साथ ही सोच की बात की जाए तो उत्तर प्रदेश के लोगों की सोच कभी प्रादेशिक दायरे तक सीमित नहीं रही है। उत्तर प्रदेश के लोग खुद को राष्ट्रीय परिदृश्य में रखकर ही सोचते हैं। इस बारे में एक दिलचस्प तथ्य ये है कि अगर हिंदी फ़िल्मों को हिंदुस्तानी भाषा का मानक मान लिया जाए तो फ़िल्मकार चाहे जो भी हो, फ़िल्म की भाषा लखनवी यानी खड़ी बोली ही होती है। मतलब ये कि यूपी का अर्थ राष्ट्रीय स्तर पर ही समझा जा सकता है।
जहां तक उत्तराखंड की बात है तो पहाड़ की हर तरह से समृद्ध संस्कृति का केंद्र है उत्तराखंड। जीवन दायिनी गंगा-जमुना के उद्गम से लेकर बोली, पहनावा और दुनियाभर को लुभाने वाला पर्यटन सब कुछ है उत्तराखंड में। उत्तर प्रदेश-उत्तराखंड के इस बानगी को ध्यान में रखते हुए अब अगर आप खुद से ये सवाल करेंगे कि क्या मौजूदा ख़बरिया चैनल इन दोनों राज्यों की पहचान की अभिव्यक्ति सही ढंग से कर रहे हैं तो समाधान खुद सामने आ जाएगा। इसका जवाब है-नहीं।
एबीपी न्यूज़ नेटवर्क की रिसर्च में यही दिलचस्प तथ्य सामने आया। लोगों का सवाल यही था कि पहाड़ की संस्कृति और संसाधनों की संपन्नता के बारे में किसी न्यूज़ चैनल के जरिये ना ही जानकारी मिल पा रही है, ना ही उनका प्रचार-प्रसार हो पा रहा है। उत्तर प्रदेश के मिजाज के मुताबिक ख़बरों को दिखाया नहीं जा रहा। ख़बरों को बहुत ही सतही अंदाज़ में या मिर्च-मसाले के साथ दिखाया जा रहा है। बड़े-बड़े ब्रांड के प्रादेशिक न्यूज़ चैनल भी एक ही ढर्रे पर चलते नज़र आ रहे हैं। महिलाओं, युवाओं को तरजीह नहीं मिल पा रही है। ऐसे हालात में उत्तर प्रदेश और देवभूमि उत्तराखंड की सही पहचान बन सकने वाले समाचार चैनल की ज़रूरत शिद्दत से महसूस की जा रही थी।
दर्शकों की इसी ज़रूरत को पूरा करने के मकसद से हम लाए हैं एबीपी गंगा। हमारे न्यूज़ चैनल का सूत्र वाक्य है.. ख़बर आपकी, ज़ुबां आपकी। ख़बरें दर्शकों के लिए..ख़बरें दर्शकों की जुबानी...ख़बरें दर्शकों के काम की। हमें उम्मीद है कि एबीपी गंगा का ये प्रयास दर्शकों के प्यार से कामयाबी की बुलंदी पर पहुंचेंगा।
राजकिशोर
संपादक
एबीपी गंगा
डिजिटल: आगे की बात
एबीपी गंगा के डिजिटल मंच पर हमारी कोशिश केवल सूचना भर देने की नहीं होगी, बल्कि उस सूचना की दर्शक के लिए उपयोगिता और साथ ही एक सहयोग की भावना स्थापित करने का प्रयास करने की भी होगी। ख़बरों के बताए जाने और दिखाए जाने में किसी भी तरह का अभाव दर्शकों को ना महसूस हो इसका ध्यान रखा जाएगा। सामाजिक, स्थानीय, प्रादेशिक और सत्ता से जुड़े सभी विषयों के तमाम पहलुओं को उजागर करने की हमारी चेष्टा रहेगी। प्रदेश की दशा और देश की दिशा दोनों को अपने भीतर समेटे हुए हम अपने डिजिटल मंच पर, दर्शकों की सभी आकांक्षाओं को पूरा करेंगे, ऐसा प्रयास रहेगा। आज के दौर में जब दर्शक वर्ग तेज़ी से बदला है, ख़बरों की उसकी ज़रूरतों में निरंतर परिवर्तन हो रहा है, ख़बरों तक पहुँचने के उसके माध्यमों में इज़ाफ़ा हुआ है, वो हर समय किसी सूचना से रूबरू हो रहा है, ऐसे में एबीपी गंगा हर उस मंच पर उपलब्ध होगा जहाँ उसका दर्शक मौजूद है।
हम ऐसे संवाद को प्रेरित करेंगे जो केवल एकतरफ़ा ना हो, जहाँ पाठक व दर्शक से एक जुड़ाव महसूस किया जा सके, जिस संवाद को दर्शक अपने जानकारों से साझा करे और आगे बढ़ाए। ऐसी मुहिम और अभियान हमारे मंच का हिस्सा बनें जो जन-उपयोगी हो, समाधान देने में कारगर हो। हमारे संवाद में धार, बहाव और रफ़्तार सब मौजूद रहे। हमारा भरपूर प्रयास रहेगा कि पत्रकारिता के इस मंच को गंगा की तरह निर्मल और निडर तरीक़े से आगे लेकर जाएँ।
सौरभ कुमार गुप्त
सह-संपादक
एबीपी गंगा (डिजिटल)