पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना की तस्वीर का नया मुद्दा सामने आया है. हिंदू और मुस्लिम राजनीति करने वाले गदगद हैं. राम मंदिर, गाय, वंदेमातरम, तिरंगा यात्रा इन सब से अलग एक नया मुद्दा इन्हें हाथ आया है. 'जिन्ना का ये जिन्न' अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के पिटारे से निकला, जब अलीगढ़ के बीजेपी सांसद सतीश गौतम ने यूनिवर्सिटी के वीसी को चिठ्ठी लिख कर पूछा कि एएमयू छात्रसंघ के हॉल में जिन्ना की तस्वीर क्यों लगा रखी हैं?
जिस सतीश गौतम ने जिन्ना की तस्वीर हटाने की अब चिठ्ठी लिखी है वे तीन साल तक एएमयू कोर्ट के सदस्य रह चुके हैं, तब उन्हें तस्वीर हटाने का खयाल क्यों नहीं आया? पूरे मामले पर यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इसे सेंट्रल यूनिवर्सिटी का मामला बता कर पल्ला झाड़ रहे हैं और देश के शिक्षामंत्री प्रकाश जावड़ेकर चुप्पी साधे हैं.
एएमयू छात्रसंघ हॉल में जिन्ना की तस्वीर लगी हुई है. वे इसे न हटाने के लिए इतिहास से लेकर वर्तमान तक को कुरेद-कुरेद कर कुतर्क ला रहा है. तो क्यों ना ये कहा जाए कि ध्रुवीकरण की राजनीति के लिए जमीन तैयार करने के लिए सभी ने अपनी सहूलियत के हिसाब से मोर्चा संभाल लिया है!
सड़क पर हिंदू युवा वाहिनी भी हैं जो यूनिवर्सिटी कैम्पस में जबरन घुसकर प्रदर्शन करती हैं और पुलिस मूक दर्शक बनी रहती हैं. अब तक उन पर ट्रेसपासिंग का मामला भी दर्ज नहीं किया है. सड़क पर छात्र राजनीति के जरिए देश की राजनीति में भविष्य बनाने की जुगत में लगे वे एएमयू छात्रसंघ के नेता भी हैं जो मई की गर्मी में शेरवानी-टोपी पहन कर अपनी सियासी पहचान बनाने में जुटे हैं. दूसरी तरफ एसी कमरों औऱ न्यूज स्टूडियों में बैठे कर पार्टियों के प्रवक्ताओं ने मोर्चे संभाला हुआ है. ये ‘जिन्ना के जिन्न’ के जरिए पार्टी की वोट की मुराद पूरी करवाने में जुटे हैं.
वहीं एक तरफ कोई जिन्ना के योगदान की तुलना गांधी-नेहरू से कर रहा हैं तो दूसरी तरफ कोई जिन्ना के बंटवारे की विचारधारा का बीज उसी मुस्लिम कौम में पनपने का दावा कर रहा हैं जिसने 1947 में ही जिन्ना की विचारधारा को खारिज कर दिया था.
जिन्ना के नाम का सर्टिफिकेट उस बॉम्बे हाईकोर्ट के म्यूजियम में सजाने का क्या मतलब जिसका उद्घाटन खुद पीएम नरेंद्र मोदी साल 2015 में करते हैं? फिलहाल जिन्ना का जिन्न, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से निकला है मतलब ये हिंदू-मुस्लिम राजनीति के लिए बेहद मुफीद हैं.
जाहिर हैं चर्चा तभी तक होगी जब तक तस्वीर टंगी होगी. इसलिए इस बात को समझिए कि जिन्ना को आजादी की लड़ाई का नायक और इतिहास बता कर दीवार पर टंगाए रखना भी राजनीति हैं और जिन्ना की तस्वीर उतरवाने के नाम पर चुप्पी साध लेना और पल्ला झाड़ना भी राजनीति है. ये वो राजनीति है जो पार्टियों को फायदा पहुंचाएगी और हिंदुस्तान को बांटेगी. ऐसे में उम्मीद किस से की जाए जो जिन्ना की तस्वीर हटाएगा?
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)