मंत्री के इस्तीफे के लिए आखिर क्यों हो रहा है सुप्रीम कोर्ट की फटकार का इंतज़ार ?

लखीमपुर खीरी की हिंसा का मामला यूपी के चुनावों में ऐसा मुद्दा बनता जा रहा है, जो जनता के हितों से जुड़े तमाम मसलों को हाशिये पर धकेलता हुआ दिखाई दे रहा है. केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी के इस्तीफे की मांग को लेकर संसद के भीतर व बाहर सियासी पारा गरम है और समूचा विपक्ष इस पर सरकार के खिलाफ लामबंद हो चुका है. लेकिन एक सच ये भी है कि विपक्ष की इस मांग के आगे सरकार फिलहाल तो झुकने भी नहीं वाली है.
जाहिर-सी बात है कि मोदी सरकार अपने मंत्री का इस्तीफा तब तक नहीं लेने वाली, जब तक कि कानून की निगाह में वे आरोपी नहीं बन जाते. वैसे भी चुनाव से पहले मिश्रा के खिलाफ कोई भी ऐक्शन लेना बीजेपी के लिए अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसा होगा क्योंकि उस सूरत में ब्राह्मणों की नाराजगी बीजेपी के लिए भारी पड़ सकती है, जो उसके दोबारा सत्ता में आने का स्पीड ब्रेकर बन सकता है.
दरअसल, लखीमपुर खीरी मामले की जांच कर रही एसआईटी ने मंगलवार को अदालत में जो आवेदन दिया था, उसने लखनऊ से लेकर दिल्ली तक की सियासत को यों ही नहीं गरमा दिया है और उसके बाद आज मिश्रा के पत्रकारों पर भड़कने और उनसे बदसलूकी करने की भी बड़ी वजह है. एसआईटी ने अपनी अर्जी में 3 अक्टूबर को हुई चार किसानों और एक पत्रकार की हत्या की उस घटना को एक ‘‘सोची-समझी साजिश’’ करार दिया है. साथ ही एसआईटी ने मामले में अधिक गंभीर आरोपों को शामिल किए जाने का अनुरोध किया था जिसकी उसे मंजूरी भी मिल गई.
कानूनी जानकारों के मुताबिक एसआईटी इस नतीजे पर तो पहुंच गई है कि वो एक सुनियोजित साजिश थी और उस साजिश को अंजाम देने वालों को गिरफ्तार भी कर लिया है. लेकिन अब उसकी जांच इस दिशा में आगे बढ़ेगी कि उस साजिश के सूत्रधार कौन थे, लिहाज़ा उस जांच के लपेटे में टेनी भी आ सकते हैं लेकिन प्रोटोकॉल के मुताबिक एसआईटी उनसे तब तक पुछ्ताछ नहीं कर सकती, जब तक वे मंत्रिपद पर हैं. दिल्ली हाइकोर्ट के वकील रवींद्र कुमार के मुताबिक "अगर अजय मिश्रा केंद्रीय मंत्री नहीं होते, तो उस घटना के बाद दर्ज हुई एफआईआर में उनका नाम मुख्य अभियुक्त के रूप में होता."
वह इसलिये कि साजिश उन्होंने रची, उन्होंने किसानों को मारने के लिए ललकारा. लिहाज़ा, इस घटना से पहले उन्होंने एक कार्यक्रम में किसानों को सबक सिखाने और उन्हें देख लेने की जो धमकी दी थी, उसका वीडियो अब एसआईटी के लिए एक महत्वपूर्ण एविडेंस बन गया है. फिलहाल तो एसआईटी के हाथ प्रोटोकॉल के कारण बंधे पड़े हैं. लेकिन एसआईटी अपनी जांच-रिपोर्ट जब सुप्रीम कोर्ट को सौंपेगी, तो उसमें साजिश के सूत्रधारों के नाम भी उसे बताने पड़ेंगे. तब सुप्रीम कोर्ट अजय मिश्रा से भी पूछताछ करने का आदेश देगा. उस सूरत में टेनी को पद से इस्तीफा देना पड़ेगा और तब यही एसआईटी उनके खिलाफ कानून के मुताबिक एक्शन लेने के लिए स्वतंत्र होगी." गौरतलब है कि एसआईटी की ये जांच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में हो रही है और कमेटी कुछ ऐसी निष्पक्षता से बनाई गई है कि कोई भी गुनहगार कानून के शिकंजे से बच न सके, भले ही वो कितना ही ताकतवर क्यों न हो.
यही कारण है कि टेनी को कल एसआईटी की अर्जी और अदालत का रुख देखने के बाद ये अहसास हो गया है कि उस हत्याकांड की जांच की सुई उनकी तरफ घूमने वाली है. इसीलिये आज अपने संसदीय क्षेत्र में पहुंचे अजय मिश्र से एबीपी न्यूज़ के रिपोर्टर व अन्य स्थानीय पत्रकारों ने जेल में बंद उनके बेटे आशीष मिश्र के बारे में जब सवाल पूछा, तो वे अपना आपा खो बैठे और उनके साथ बदसलूकी पर उतर आए. राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि उनका ये बर्ताव बीजेपी के लिए नुकसानदायक बनेगा. जबकि कानूनी जानकारों की नजर में मीडिया को अपनी ताकत दिखाने का ये प्रदर्शन मिश्रा के खिलाफ ही जाएगा और इस घटना के बाद न्यायपालिका का रुख़ उनके प्रति और अधिक सख्त ही होगा.
हालांकि सरकार के सूत्र अभी भी यही दावा कर रहे हैं कि फिलहाल अजय मिश्रा को पद से नहीं हटाया जाएगा क्योंकि जांच की निगरानी सुप्रीम कोर्ट कर रहा है. लिहाज़ा, ऐसी सूरत में अजय मिश्रा जांच को प्रभावित नहीं कर सकते हैं, सो उन्हें हटाने की कोई वजह नहीं है. तर्क ये भी दिया जा रहा है कि अजय मिश्रा यूपी के गृहमंत्री नहीं हैं कि वे जांच को प्रभावित कर सकें. ये भी कि आरोप अजय मिश्रा के बेटे पर लगे हैं, जो अभी दोषी साबित नहीं हुए हैं. इसलिए भी उन्हें हटाने की जरूरत नहीं है.
लेकिन कानून की निगाह में सियासी तर्क कोई मायने नहीं रखते और न ही वे इस आधार पर अपना काम करता है. लिहाज़ा, सरकार के आगे अब बड़ी मुश्किल ये है कि वो अजय मिश्रा का इस्तीफा लेकर विपक्ष के सिर जीत का सेहरा बांधे या फिर सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद उन्हें मंत्रिमंडल से हटाने की शर्मिंदगी झेले?
नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.
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