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असम: दो बच्चों का कानून बन जाने से क्या दूर हो पाएगी मुसलमानों की गरीबी ?

आरएसएस की बरसों पुरानी मांग रही है कि देश में तेजी से बढ़ रही आबादी पर अंकुश लगाने के लिए सरकार को जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाने की जरूरत है. फिलहाल केंद्र के स्तर पर न सही, लेकिन अलग-अलग राज्य की बीजेपी सरकार ने इसे अमलीजामा पहनाने की शुरुआत तेजी से कर दी है. बांग्लादेशी घुसपैठियों को लेकर अक्सर सुर्खियों में रहने वाले असम में जल्द ही दो बच्चों की नीति को लेकर एक कानून लाया जा रहा है. यह बन जाने के बाद राज्य में सरकारी नौकरी पाने और सरकार की अन्य कल्याणकारी योजनाओं का फायदा लेने के हकदार सिर्फ वही लोग होंगे, जिनके सिर्फ दो बच्चे होंगे.

हालांकि कांग्रेस समेत कुछ अन्य दलों व धार्मिक संगठनों ने सरकार की इस योजना का विरोध करते हुए कहा है कि एक खास समुदाय यानी मुसलमानों को निशाना बनाने की नीयत से यह कानून बनाया जा रहा है. लेकिन मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा सरमा ने इस गलतफहमी को दूर करने के लिए आज गुवाहाटी में मुस्लिम समुदाय के विभिन्न क्षेत्रों के करीब डेढ़ सौ समझदार लोगों से लंबी बैठक की है, ताकि जनसंख्या नियंत्रण की इस नीति को मुस्लिमों के बीच भी ज्यादा से ज्यादा प्रोत्साहित किया जा सके. चूंकि यह एक आम धारणा है कि हिंदुओं के मुकाबले मुस्लिमों में ज्यादा बच्चे पैदा होते हैं और इसकी बड़ी वजह अशिक्षा को बताया जाता है. चूंकि यह एक संवेदनशील मसला है, लिहाजा हेमंत बिस्वा कतई ये नहीं चाहते कि राज्य की आबादी के बड़े हिस्से को नाराज करके यह कानून लाया जाए. लिहाजा, उन्होंने मुस्लिम समुदाय में अपनी पैठ रखने वाले तमाम लोगों से मुलाकात करके उनका भरोसा हासिल करने की एक समझदार भरी कोशिश की है. चूंकि वहां बीजेपी अपने दम पर सरकार में है, लेकिन एक बड़ा फ़ैसला लेने से पहले अगर आम सहमति बनाने की कवायद की जाती है, तो इए अच्छा संकेत ही समझ जायेगा.

वैसे असम में अल्पसंख्यकों की आबादी करीब 37 फीसदी है जिसमें बड़ा हिस्सा मुस्लिमों का है और ये भी कहा जाता है कि इनमें बड़ी संख्या उनकी है जो बांग्लादेश से घुसपैठ करके वहां आकर बस गए. मुख्यमंत्री बनने के बाद हेमंत बिस्वा कई मौकों पर मुस्लिम समुदाय से ये अपील कर चुके हैं कि गरीबी मिटाने के लिए आबादी पर अंकुश लगाने की जरूरत है.

सरमा के मुताबिक "राज्य की 37 फीसदी अल्पसंख्यक आबादी के ज्यादातर हिस्से की स्थिति वंचित और अशिक्षित वर्ग की है. इन कुछ सालों में राज्य आर्थिक और सामाजिक स्तर पर बहुत तरक्की कर सकता था, जो नहीं कर सका क्योंकि बढ़ती आबादी और उससे उपजी गरीबी इसकी रुकावट की बड़ी वजह रही. इसके लिए आप महिलाओं को दोष नहीं दे सकते. वे परिवार के भारी दबाव में हैं, हालांकि, उनके लिए प्रतिरोध दिखाने का समय आ गया है और एक समाज के रूप में, हमें उनके सशक्तिकरण के लिए एक रास्ता बनाने की जरूरत है."

वैसे असम सरकार ने अल्पसंख्यक समुदाय की छात्राओं को ग्रेजुएशन तक मुफ्त शिक्षा देने का फैसला भी किया है. दो बच्चों की नीति पर आगे बढ़ने के लिए विधानसभा में पहले ही एक प्रस्ताव पारित किया जा चुका है और सरमा ने मुस्लिम युवाओं के साथ बातचीत कर उन्हें इसके लिये राजी भी किया है. कम से कम दो मौकों पर उन्होंने ऑल असम माइनॉरिटी स्टूडेंट यूनियन के दोनों धड़ों के साथ बैठक करके उनका समर्थन पाने की कोशिश की है. इसी महीने होने वाले विधानसभा सत्र में अब इससे संबंधित विधेयक को पारित कराकर इसे कानून की शक्ल दी जाएगी.

हालांकि सरमा का दावा है कि मुस्लिम समुदाय उनके प्रस्तावों के साथ खड़ा है. उनका मानना है कि "असम को आर्थिक व सामाजिक रूप से उन्नत राज्य के रूप में तब तक नहीं जाना जाएगा, जब तक मुस्लमानों की स्थिति में बदलाव नहीं आता है. मुस्लिम महिलाओं को सशक्त बनाना मेरी सरकार की प्राथमिकता में सबसे ऊपर है.”

वैसे मुख्यमंत्री बढ़ती आबादी के मुद्दे को जमीन के अतिक्रमण से भी जोड़ चुके हैं. हाल ही में उन्होंने कहा था कि 'यदि आबादी का विस्फोट जारी रहा तो एक दिन ऐसा भी आएगा, जब कामाख्या मंदिर की जमीन का भी अतिक्रमण हो जाएगा. यहां तक कि मेरे घर का भी अतिक्रमण हो जाएगा.

(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)

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