जब राज कपूर ने मुझसे कहा- अब मैं ठीक नहीं होऊंगा, मुझे मरने दो
महान फ़िल्मकार और दिलकश अभिनेता राज कपूर को इस दुनिया से विदा हुए 32 बरस हो गए. इधर यह साल तो पूरे कपूर परिवार के लिए बेहद दुखदायी रहा. इस साल के पहले 4 महीनों में ही काल ने राज कपूर की दो संतानों को अपना ग्रास बना लिया. राज कपूर के बेटे ऋषि कपूर के निधन से पहले उनकी बड़ी बेटी रितु नन्दा का निधन भी 14 जनवरी को हो गया था.
यह भी संयोग है कि कपूर परिवार की तीन पीढ़ियों के तीन बड़े स्तम्भ अप्रैल, मई और जून के तीन महीने में ढहे. इन तीन महीनों में भी तीनों की पुण्य तिथि 34 दिनों के भीतर ही आती है. पृथ्वीराज कपूर जिनके कारण फिल्म संसार में कपूर खानदान का आगमन हुआ, उनका निधन 29 मई 1972 को हुआ था. जबकि कपूर खानदान का नाम शिखर पर पहुंचाने वाले उनके पुत्र राज कपूर ने 2 जून 1988 को दुनिया से बिदाई ली थी. उधर कपूर खानदान की सफलता, लोकप्रियता की परंपरा को आगे बढ़ाने वाले ऋषि कपूर का निधन गत 30 अप्रैल को ही हुआ है. राज कपूर ने अपनी शानदार फिल्मों से अपना नाम तो फिल्म वर्ल्ड में बुलंदियों पर पहुंचाया ही, साथ ही अपने पूरे कपूर खानदान को ऐसा गौरव दिलाया जिसे इतिहास कभी भुला नहीं सकेगा. पिछले कुछ बरसों से कपूर खानदान की चौथी पीढ़ी के तीन सदस्य करिश्मा कपूर, करीना कपूर और रणबीर कपूर भी अपने परिवार का नाम रोशन करते आ रहे हैं.
जब फाल्के पुरस्कार लेने दिल्ली आए यह भी बड़ी बात है कि पृथ्वीराज जी और राज कपूर दोनों को देश का सबसे बड़ा फिल्म सम्मान दादा साहब फाल्के मिल चुका है. मुझे वह बात कभी नहीं भूलती, जब राज कपूर अपना फाल्के सम्मान ग्रहण करने के लिए ही 2 मई 1988 को दिल्ली आए थे. सिरीफ़ोर्ट सभागार में आयोजित उस सम्मान समारोह में राज कपूर काफी खुश थे. लेकिन पल भर में तमाम खुशी तब गम में बदल गई जब यह सम्मान ग्रहण करने से पहले ही सभागार में राज कपूर को अस्थमा का जबर्दस्त दौरा पड़ गया.
राज कपूर के साथ बैठीं उनकी पत्नी कृष्णा जी ने अपने साथ रखे ऑक्सीजन के मिनी सिलेन्डर से उन्हें ऑक्सीजन भी दिया. मगर उनकी तबीयत नहीं संभली. तब तत्कालीन राष्ट्रपति आर वेंकटरमण ने प्रोटोकॉल कि परवाह किए बिना स्वयं राज कपूर की सीट पर आकर उन्हें फाल्के पुरस्कार प्रदान किया.
मैं उस समारोह को कवर करने के लिए वहां मौजूद था. अफरातफरी में पुरस्कार ग्रहण करने के तुरंत बाद राज कपूर को सभागार के बाहर ले जाया गया. मैं भी तभी समारोह छोड़कर तुरंत बाहर भागा. जहां एक कुर्सी पर बैठे राज कपूर बुरी तरह हांफ रहे थे. काफी लोगों ने उन्हें घेरा हुआ था, जिससे उन्हें हवा न मिलने के कारण और भी दिक्कत हो रही थी.
मैंने सबसे पहले उस भीड़ को हटाकर, उनके जूते जुराब उतारे और उन्हें पानी पिलाया. तब तक राष्ट्रपति भवन की वहां मौजूद एक लेडी डॉक्टर भी बाहर आ गईं और उन्होंने राज कपूर को डेरीफाइलीन का एक इंजेक्शन भी दिया. लेकिन डॉक्टर से बात करने के बाद मुझे लगा कि उन्हें अब अस्पताल ले जाना चाहिए. मैंने राज साहब से पूछा, आपको कौन से अस्पताल ले चलें. इस पर राज साहब बोले, जहां भी आप ठीक समझें वहां ले चलो. कृष्णा जी ने भी कहा, जो भी अच्छा हो वहां ले चलें.
मुझे लगा एम्स ही बेहतर होगा. मैंने तभी उन डॉक्टर साहिबा से आग्रह करके वहां मौजूद राष्ट्रपति भवन की एंबुलेंस एम्स अस्पताल तक ले जाने की इजाजत मांगी. पहले वह उसके लिए तैयार नहीं हुईं. क्योंकि समारोह अभी चल रहा था और राष्ट्रपति अभी सभागार में ही थे. लेकिन बाद में वह जैसे तैसे तैयार हो गईं. तब उस एंबुलेंस से मैं, राज साहब और कृष्णा जी एम्स के लिए रवाना हुए. एम्स पहुंचने पर पहले इमरजेंसी में उन्हें एक कुर्सी पर बैठाकार नेबूलाइजर दिया गया और मैं उनकी पीठ सहलाने के साथ उनकी सहायता करता रहा. यह देख राज कपूर अपनी आंखों से मुझे जिस तरह आभार प्रकट कर रहे थे वह दृश्य आज भी मेरी आंखों के सामने घूमता है. कुछ देर बाद राज कपूर को ऊपर एक कमरे में ले जाया गया. पहले लगा कि उनकी तबीयत सुधर रही है. उसी दौरान वहां उन्हें देखने अभिनेता कमल हासन भी आए तो राज कपूर ने उनसे मुस्कुराकर बात की, लेकिन कुछ देर बाद उनकी तबीयत फिर से बिगड़ गयी. तभी वहां के डॉक्टर पांडे ने उन्हें आईसीयू में ले जाने के लिए कहा.
नहीं भूलती एम्स की वह रात हम उन्हें आईसीयू में ले गए. तब डॉक्टर ने मुझसे कहा कि प्लीज अब आप बाहर ही रहें. यह सुनकर राज साहब ने डॉक्टर से कहा, “नो डॉक्टर नो, इन्हें प्लीज मेरे साथ ही यहां रहने दें." डॉक्टर राज कपूर के आग्रह को मना नहीं कर सके. असल में जिस तरह मैं सिरीफ़ोर्ट से लेकर अस्पताल तक उनका खयाल रख रहा था, उनकी चिंता कर रहा था, उससे राज कपूर को लगा कि मैं उनके साथ ही रहूं तो अच्छा है. अब राज कपूर के पलंग के एक ओर कृष्णा जी खड़ी थीं और दूसरी ओर मैं.
तभी राज कपूर बोले, "क्या बात है मुझे आराम क्यों नहीं आ रहा." हमने कहा आ जाएगा, चिंता मत कीजिये. लेकिन कुछ देर बाद जब उनकी तबीयत और बिगड़ने लगी तो राज कपूर मेरी ओर मुखातिब होते हुए बोले, "अब मैं ठीक नहीं होऊंगा, लेट मी डाई (मुझे मरने दो)." तब मैं नहीं जानता था कि ये शब्द ही राज कपूर के अंतिम शब्द होंगे. लेकिन ये उनके अंतिम शब्द हो गए.
यह सुन कृष्णा जी बुरी तरह घबरा गईं और उनसे बोलीं, "ओह ऐसा क्यों बोल रहे हो, आप ठीक हो जाओगे." लेकिन उसके बाद राज कपूर कुछ नहीं बोले. कुछ ही देर में वह अचेत अवस्था में चले गए. मैं काफी देर रात तक उनके साथ आईसीयू में ही रहा. डॉक्टर उनको ठीक करने के लिए यथा संभव सभी प्रयास कर रहे थे. उधर मैं और कृष्णा जी बार बार उनके ठीक होने की दुआ कर रहे थे.
यह भी संयोग था कि राज कपूर के तीन बेटों रणधीर कपूर, ऋषि कपूर और राजीव कपूर सहित उनका भरा पूरा परिवार है. लेकिन उनके अंतिम समय में विधाता ने मुझे इस महान हस्ती की सेवा का मौका दिया. क्योंकि तब कोई भी दिल्ली में नहीं था. हां इस बीच कृष्णा जी आईसीयू से बाहर निकलकर मुंबई में अपने परिवार में फोन करके ये खबर दे आयीं. जहां तक मुझे याद आ रहा है तब रणधीर तो मुंबई में थे, लेकिन ऋषि तब शायद नेपाल में किसी फिल्म की शूटिंग कर रहे थे. कृष्णा जी फोन करके लौटकर रूम में आयीं ही थीं कि तभी डॉक्टर ने कहा इनको निमोनिया हो गया है और वह कोमा में चले गए हैं. यह सुन हम विचलित हो गए. राज कपूर पूरे एक महीना कोमा में रहे और दो जून को वह चल बसे. इतने बरसों बाद भी राज कपूर और उनकी स्मृतियां भुलाई नहीं जा सकी हैं.
भुलाए नहीं जा सकेंगे राज कपूर राज कपूर को दादा साहब फाल्के शिखर पुरस्कार के अतिरिक्त उनकी दो फिल्मों के लिए भी उन्हें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से नवाजा गया. साथ ही सरकार ने 1971 में उन्हें पदमभूषण भी दिया. उधर जहां उनकी फिल्मों को कुछ अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिले वहां फिल्मफेयर पुरस्कारों में तो वह बरसों छाए रहे. उन्हें कुल 11 फिल्मफेयर पुरस्कार मिले. जिनमें सन् 1959 और 1960 में लगातार दो बार उन्हें ‘अनाड़ी’ और ‘जिस देश में गंगा बहती है’ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्मफेयर मिला और चार बार उन्हें सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिला. फिल्म ‘संगम’, ‘मेरा नाम जोकर’, ‘प्रेम रोग’ और ‘राम तेरी गंगा मैली’ के लिए.
इनके अलावा जिन फिल्मों के लिए राज कपूर को हमेशा याद किया जाता है और आगे भी किया जाता रहेगा उनमें बरसात, आवारा, श्री 420, बूट पॉलिश, फिर सुबह होगी, जागते रहो, तीसरी कसम, कन्हैया, छलिया, कल आज और कल और बॉबी जैसी फिल्में भी हैं. जिनके कारण राज कपूर सदियों तक जन मानस के दिलों में बसे रहेंगे.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और फ़िल्म समीक्षक हैं)
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है)
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