देश की राजधानी दिल्ली में हवा का स्तर इतना जहरीला हो चुका है कि अब कोरोना के बाद प्रदूषण का लॉकडाउन लगाने की नौबत आ गई है. दिल्ली एक तरह से 'हेल्थ इमरजेंसी' की गिरफ्त में आ चुकी है, जहां स्वस्थ लोग भी बीमार हो रहे हैं और इनकी संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. फिलहाल तो राजधानी में स्कूल ही बंद किये गए हैं और लोगों को घर से काम करने के लिए कहा गया है. लेकिन जो हालात हैं, उसे देखते हुए सिर्फ दिल्ली की केजरीवाल सरकार को ही नहीं, बल्कि पड़ोसी राज्यों को भी कुछ दिनों के लिए संपूर्ण लॉकडाउन लगाने का फैसला लेने पर मजबूर होना पड़ सकता है.


सुप्रीम कोर्ट ने भी आज इस बारे में केंद्र सरकार से साफ कह दिया है कि वो सोमवार तक उसे बताए कि इस आपात स्थिति से निपटने के लिए क्या फैसला लिया है. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि हवा को जहरीला बनाने के लिए क्या सिर्फ किसानों के पराली जलाए जाने को ही दोषी ठहराया जा सकता है या फिर इसके लिए सरकारों की लापरवाही और हम नागरिकों की बेपरवाही भी कसूरवार है?


सरकारों के प्रतिबंध लगाए जाने के बावजूद दिवाली की रात दिल्ली-एनसीआर में जिस बेरहमी से पटाखे जलाए गए, उसने हवा को तो और अधिक जहरीला बनाना ही था. बेहतर होता कि लोग सांकेतिक रूप से कुछ ग्रीन पटाखे छोड़कर अगर ये उत्सव मनाते, तो शायद प्रदूषण इतने खतरनाक स्तर पर नहीं पहुंच पाता. इससे इनकार नहीं कर सकते कि किसानों द्वारा अपनी फसलों के अवशेष यानी पराली जलाना, प्रदूषण बढ़ने का एक मुख्य कारण है. लेकिन इस पर काबू पाने की जिम्मेदारी संबंधित राज्य सरकारों की थी कि वे इसके लिए किसानों को बायो डीकंपोजर उपलब्ध कराती, जो वे अभी तक भी नहीं करा पाई हैं. हालांकि दिल्ली सरकार ने इसके इंतज़ाम किये हैं, लेकिन राजधानी के ग्रामीण इलाकों में आखिर खेती होती ही कितनी है. खेती वाले मुख्य राज्य तो हरियाणा, पंजाब व उत्तरप्रदेश हैं. जब तक वे सरकारें किसानों के लिए इसका इंतज़ाम नहीं करतीं, ये समस्या तो हर साल बढ़ती ही जाएगी. इसके अलावा औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाले धुएं और कंस्ट्रक्शन से उड़ने वाली धूल पर कैसे नियंत्रण पाया जाये, उसके उपाय भी राज्य सरकारों को ही तलाशने होंगे.


जहां तक सवाल आम नागरिकों का है कि वे किस तरह से प्रदूषण को रोकने में अपना योगदान दे सकते हैं, तो उसका उपाय यही है कि जिन घरों में दो-तीन गाड़ियां हैं, तो उन्हें एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते एक दिन में एक ही गाड़ी को सड़क पर लाने जैसा 'सेल्फ रूल' बनाना होगा. अगर लोग ऐसा नहीं करते, तो फिर सरकार को ऑड-इवन जैसी योजना लागू करने पर मजबूर होना पड़ेगा और उस पर सख्ती भी दिखानी होगी. यानी इस नियम को तोड़ने वालों पर तगड़े जुर्माने का प्रावधान करना होगा. हालांकि कुछ साल पहले केजरीवाल सरकार की ये स्कीम कामयाब हुई थी और प्रदूषण रोकने में काफी हद तक इससे राहत भी मिली थी. लिहाज़ा, सरकार को दिल्ली में तो इसे कुछ दिनों के लिए चरण लागू कर ही देना चाहिए.


कई बार ऐसा लगता है कि अगर सुप्रीम कोर्ट अपनी सख्ती न दिखाए, तो आमतौर पर सरकारें लोगों की जिंदगी की परवाह ही नहीं करतीं. प्रदूषण भी ऐसा गंभीर विषय है जो सीधे इंसान की जिंदगी से जुड़ा हुआ है और जो सरकारों की पहली प्राथमिकता होनी चाहिये जो नहीं है. लिहाज़ा दिल्ली में पिछले एक साल से प्रदूषण के जो हालात हैं, उसमें कोई बदलाव नहीं आया है. सरकार की नाकामी को देखकर सुप्रीम कोर्ट ने आज केंद्र सरकार को खासी फटकार लगाई है और सोमवार तक जवाब तलब किया है.


कोर्ट ने चेतावनी देते हुए कहा कि अगले दो-तीन दिनों में हालात को बेहतर बनाने के लिए आपातकालीन कदम उठाए जाएं. अगर जरूरी हो तो दिल्ली में कुछ दिनों के लिए लॉकडाउन लगाने पर भी विचार हो. केंद्र सरकार ने आश्वासन दिया कि संबंधित राज्यों से बात कर तात्कालिक कदम उठाए जाएंगे. चीफ जस्टिस की अगुवाई वाली बेंच में हुई सुनवाई की शुरुआत करते हुए केंद्र सरकार ने सफाई दी कि समस्या से निपटने के लिए बहुत तरह के कदम उठाए जा रहे हैं. पंजाब को सख्ती बरतनी पड़ेगी. जो लोग पराली जला रहे हैं, उन पर जुर्माना लगाना होगा. जजों को यह बात पसंद नहीं आई. चीफ जस्टिस ने कहा, "आप सिर्फ किसानों को दोषी ठहराना चाहते हैं. 70 प्रतिशत प्रदूषण दूसरी वजह से है. उस पर बात नहीं करना चाहते हैं."


जजों ने कहा, "सरकार पराली से निपटने के लिए दो लाख मशीनों की बात कह रही है. लेकिन इस मशीन की कीमत क्या है? क्या साधारण किसान इसे खरीद सकता है? सरकार यह भी कह रही है कि फसल अवशेष से बिजली बनाई जा सकती है. लेकिन थर्मल पावर कंपनियों के साथ किसानों का समझौता करवाया गया है? किसानों के सामने मजबूरी होती है कि उन्हें अगली फसल के लिए जमीन खाली करनी पड़ती है. सवाल यही है कि उन्हें अवशेष जलाना न पड़े, इसके लिए सरकार ने क्या सुविधा दी? आप उन्हें दंडित करने के बजाय प्रोत्साहित करने की बात क्यों नहीं कहते हैं? बायो डीकंपोजर कितने किसानों को उपलब्ध कराया गया है? यह कुल जमीन का कितना प्रतिशत है?" कोर्ट ने यह भी कहा कि औद्योगिक धुंआ, गाड़ियों से होने वाला प्रदूषण, धूल, पटाखे जैसी तमाम बातों को नजरअंदाज कर बस किसानों को दोष देना गलत है.


वैसे हक़ीक़त यही है कि दिल्ली के हालात बेहद खतरनाक बनते जा रहे हैं. दुनिया भर के एयर क्वालिटी इंडेक्स पर निगरानी रखने वाली संस्था आईक्यू एयर (IQ Air) के आंकड़ों पर गौर करें, तो शुक्रवार को दुनिया के दस सबसे प्रदूषित शहरों में दिल्ली पहले स्थान पर रहा. यहां का वायु गुणवत्ता सूचकांक 556 था, तो कोलकाता 177 एक्यूआई के साथ चौथे नंबर पर था. जबकि मुंबई छठे नंबर पर दर्ज किया गया,जहां का एक्यूआई 169 रहा.


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