तर्की में दीपा को मिली कामयाबी किसी मायने में आसान नहीं थी. उन्होंने वॉल्ट इवेंट में 14.150 प्वाइंट का स्कोर लेकर गोल्ड मेडल जरूर जीता लेकिन इसके पीछे की कहानी कम ही लोगों को पता है. दीपा पिछले करीब दो साल से एक्शन से बाहर थीं. 2016 में जब वो रियो ओलंपिक में ब्रांज मेडल से चूकीं तो रातों रात उन्हें पूरा देश जान गया. दीपा ने चौथी पोजीशन पर फिनिश किया था. सचिन तेंडुलकर से लेकर शायद ही कोई बड़ी हस्ती हो जिसने दीपा की इस उपबल्धि पर उन्हें बधाई ना दी हो. दीपा को तमाम ईनाम भी मिले. कुछ दो तीन महीने तक तो लोगों के बीच दीपा करमाकर का नाम एक स्टार के तौर पर रहा लेकिन दो तीन महीने बाद क्या हुआ शायद ये कोई नहीं जानता.


दीपा दिल्ली के एक स्टेडियम में अपनी अगली चुनौती के लिए पसीना बहा रही थीं. उन्हें पता था कि ओलंपिक मेडल का जो सपना टूटा है अब वो इतनी जल्दी पूरा होने वाला नहीं है. लाख सर पटक लिया जाए ओलंपिक चार साल बाद ही होना है. उनकी मुश्किल ट्रेनिंग जारी थी. उनके गुरू नंदी पहले की ही तरह अपनी शिष्य के साथ लक्ष्य बनाने में लगे हुए थे. बीते दो साल में दीपा करमाकर से जुड़ी अगर किसी खबर ने जगह पाई तो वो थी उनके अनफिट होने की.


दीपा को कुछ बड़ी प्रतियोगिताएं छोड़नी पड़ी. इसी दौरान दीपा से मेरी मुलाकात हुई थी. लंबी बातचीत हुई. उन्होंने अपनी जिंदगी के कई अनसुने किस्से सुनाए. आखिरकार अब दीपा ने वापस अपनी काबिलियत का करतब दिखाया है. यहां से एक बार फिर उनपर सभी की नजरें रहेंगी.


चोट से कभी नहीं रूकी दीपा करमाकर
खेल है तो चोट तो लगेगी ही. दीपा बचपन की अपनी एक चोट का जिक्र जरूर करती हैं. बचपन में प्रैक्टिस के दौरान उनके हाथ की हड्डी टूट गई थी. दीपा इन सारी छोटी मोटी चोट बावजूद कभी ‘डबल माइंडेड’ नहीं हुई कि उन्हें जिमनास्टिक की बजाए कोई और खेल खेलना है. बल्कि दीपा तो चोट को चैलेंज के तौर पर लेती हैं. अगर उनके कोच ने उन्हें किसी चीज को एक बार करने के लिए बोला है तो वो तीन बार कर लेती थीं. किसी भी चीज को जरूरत से ज्यादा करने पर चोट लगने का खतरा रहता था. कोच की शिकायत के बाद पापा से डांट पड़ती थी. नंदी सर दीपा के पापा को बता देते थे कि वो ज्यादा भागदौड़ करती हैं. गुस्से में पापा जिम से निकाल देने की धमकी देते थे. बावजूद इसके दीपा को कभी फर्क नहीं पड़ा, हर हालत में उसका मूलमंत्र है प्रैक्टिस...प्रैक्टिस...प्रैक्टिस.


एक प्रतिज्ञा है दीपा करमाकर की ये जीत
ये सुनकर भी ताज्जुब होने लगता है कि जिन खिलाड़ियों की नाकामी पर लोग तुरंत उंगलियां उठाने लगते हैं वो कितनी मेहनत करते हैं. जिमनास्टिक में जो मूवमेंट होते हैं उसमें ‘प्वाइंट’ कट जाते हैं. पिछले दो साल से दीपा इसी बात पर मेहनत कर रही थीं कि ओलंपिक की तरह उनके प्वाइंट्स किसी सूरत में कटे नहीं. उनकी दिनचर्या पूछिए तो वो बताती हैं. “हम जब मन चाहे तब घर नहीं जा सकते. हर जो मन करे वो खा नहीं सकते. हम जब मन चाहे घूमने नहीं जा सकते. मुझे मिठाई बहुत पसंद हैं लेकिन मैं खा नहीं सकती हूं. मुझे ऋतिक रोशन और कैटरीना कैफ बहुत अच्छे लगते हैं. लेकिन उनकी फिल्मों को देखने का समय नहीं मिलता”. आपके चेहरे पर चौंकने का भाव देखकर दीपा कहती हैं कि वो इन सेक्रीफाइस को बहुत छोटी सी बात मानती हैं. कुछ पाने के लिए थोड़ा बहुत तो खोना ही पड़ता है. दीपा अभी 24 की हैं. फिलहाल एशियन गेम्स में उनकी कामयाबी तय करेगी कि जो मुकाम वो रियो में चूक गईं क्या उसे हासिल करने का रास्ता अभी खुला हुआ है.