छह साल पहले नेशनल स्क्वॉश चैंपियनशिप जीतने वाली दीपिका पल्लीकल को जो प्राइज मनी दी गई, वह पुरुषों के टाइटल विनर से करीब 40 परसेंट कम थी. दीपिका ने विरोधस्वरूप अगली चैंपियनशिप्स को पांच साल तक बायकॉट किया. जब यह पक्का हो गया कि पुरुष और महिला खिलाड़ियो को एक बराबर प्राइज मनी मिलेगी, मतलब सवा लाख रुपए, तब उन्होंने वापसी की. 2016 में उन्होंने जोशना चिनप्पा को हराकर खिताब अपने नाम किया और अपने पुरुष साथियों के बराबर प्राइज मनी जीती.


खेल की दुनिया के सितारों जैसे आम लोग नहीं होते. आम लोगों की दुनिया अलग होती है. इस दुनिया में एक से काम के लिए आदमियों को अलग कीमत चुकाई जाती है, औरतों को अलग. मर्द ऊपर ही रहता है, औरत नीचे ही. औरत को मर्दों के बराबर लाने में कितना समय लगेगा, यह कोई सोच सकता है. इसमें 217 साल लगेंगे. वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की सालाना ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट में हाल ही में यही कहा गया है. इस सर्वे में 144 देश शामिल थे. फोरम 2006 से हर साल जेंडर गैप पर रिपोर्ट प्रकाशित करता है और हैरानी की बात यह है कि पिछले 11 सालों में औरतों की स्थिति विश्व स्तर पर और खराब हुई है. देश तरक्की कर रहे हैं, पर औरतें नहीं. सबसे अमीर देशों में भी- जिसका अर्थ यह है कि कमाई बढ़ने के बावजूद औरतों का लाभ में अपना हिस्सा नहीं मिल रहा. इकोनॉमी और राजनीति में हालत सबसे खराब है.


अपने देश का हाल भी सुन लीजिए. पिछले साल भारत का स्थान इस सूची में 87वां था जोकि इस साल 108वां हो गया है. मतलब आदमी हमारे यहां एक से काम करके बहुत ज्यादा कमाते हैं, औरतें कम कम. वैसे भारत में आदमियों और औरतों की कमाई पर मॉन्स्टर सैलरी इंडेक्स (एमएसआई) में पिछले साल कहा गया था कि औरतों की कमाई आदमियों से औसतन 25% कम है. मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में उन्हें 29.5% और एजुकेशन और रिसर्च के क्षेत्र में 25.8% कम तनख्वाह मिलती है. भारत का आईटी सेक्टर 135 बिलियन डॉलर का है, जिसमें सबसे ज्यादा तनख्वाह मिलती है. इसमें तो यह गैर बराबरी सबसे ज्यादा है.


यूं भारत में औरतों का लेबर पार्टिसिपेशन मतलब श्रम भागीदारी सिर्फ 28% है. इसके अलावा उनके द्वारा किए जाने वाले 66% काम अनपेड ही कहलाते हैं. खेतों में किसानी से लेकर घरों में किया जाना वाला घरेलू काम, बूढ़ों और बीमारों की तीमारदारी. इन सबके लिए किस औरत को पैसे मिलते हैं. हां, आदमियों के सिर्फ 12% काम अनपेड होते हैं. अपने देश में हर इलाके की स्थितियों में भी फर्क है. गोवा को ही लीजिए. वह सबसे सुरक्षित जगह है. महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने पिछले हफ्ते एक रिपोर्ट जारी करके कहा है. बिहार और झारखंड हर लिहाज से खराब स्थिति में हैं. तो, इससे नुकसान किसे होता है, सभी को. मैककिन्से ग्लोबल का कहना है कि अगर आदमियों और औरतों के बीच बराबरी हो तो ग्लोबल इकोनॉमी को 28 खरब का मुनाफा होगा. इस मुनाफे में हमारा भी हिस्सा होगा, हम मानें या न मानें.


मानना तो यह भी होगा कि औरतों के बीच भी इस गैप को भरने की जरूरत है. औरतें एक ही समूह हैं. इसमें गंवई या कस्बाई और शहरी का फर्क नहीं होना चाहिए. न ही उन्हें मदरहुड की पैनल्टी भरने के लिए मजबूर किया जाना चाहिए. मां बनते ही उनकी काबीलियत को कम करके नहीं आंका जाना चाहिए. जातीय भेदभाव न हो, इसका भी ख्याल रखा जाना चाहिए. इसका एक मायने यह भी है कि औरतों को पेशेवर क्षमता के नेगेटिव स्टीरियोटाइप से भी निकलने की जरूरत है. चूंकि मजदूर और किसान भी औरत है, और आईटी प्रोफेशनल और इनवेस्टमेंट बैंकर भी औरत. दोनों अपने अपने सेक्टर में कम कमा रही हैं, इसलिए उन सभी को मर्दों के बराबर लाया जाना चाहिए.


औरतें खुद भी इसे समझ रही हैं. कम से कम दूसरे देशों की ही सही. पिछले महीने आइसलैंड के महिला संगठनों ने एक दिलचस्प अभियान चलाया. दोपहर दो बजकर 38 मिनट से काम करना बंद कर दिया. उनका कहना था कि वेतन में 14% से 18% के गैप के मायने यह हैं कि औरतें दोपहर के बाद से मुफ्त काम करती हैं. इसलिए मुफ्त काम करना बंद. औरतों ने दोपहर के बाद से स्ट्राइक करनी शुरू कर दी. जितना दाम, उतना काम की तर्ज पर.


संयुक्त राष्ट्र जिसे विश्व इतिहास की सबसे बड़ी डकैती कहता है, उस जेंडर गैप का एहसास हाल ही के एक कमर्शियल में देखा गया है. एक मशहूर ग्लोबल एथलेटिक फुटवियर और एपेरल कंपनी के विज्ञापन में कंगना रणौत ने इस मुद्दे को उठाया है. एड में कंगना एक लड़की को प्रोत्साहित करती हैं और वह लड़की कंपनी में बराबर वेतन की मांग रखती है, वरना वह नौकरी छोड़ देगी. विज्ञापन का स्लोगन है, गर्ल्स डोंट फाइट, जिसमें डोंट को लिखकर काटा गया है. मतलब गर्ल्स फाइट. जाहिर है, अपने हक के लिए लड़कियां लड़ना भी जानती हैं.


कंगना जैसी अभिनेत्रियां भी फिल्म इंडस्ट्री में लड़ रही हैं. उन्हें अपनी आखिरी फिल्म के लिए 11 करोड़ मिले थे. यूं दीपिका पादुकोण सबसे ज्यादा कमाने वाली हीरोइन हैं, जिन्हें ‘पद्मावती’ के लिए साढ़े बारह करोड़ मिले हैं. जबकि उसी फिल्म के लिए शाहिद और रणवीर सिंह को लगभग 20-20 करोड़. वैसे सबसे ज्यादा कमाई तीनों खान्स की है जो एक फिल्म के लिए 50 करोड़ से ज्यादा की फीस वसूलते हैं. भई, मर्द मर्द है, और औरत, औरत. हां, इस बीच मलयालम फिल्म इंडस्ट्री के एक विमेन कलेक्टिव ने सीएम को एक मेमो देकर औरतों के लिए समान वेतन, पीएफ और मेडिकल फेसिलिटीज, सरकारी स्टूडियो में महिलाओं को नौकरियों में आरक्षण और 30 परसेंट औरतों वाले प्रोडक्शन क्रू को सबसिडी देने की मांग की है. कुल मिलाकर, औरतें जाग रही हैं और समानता की बात कर रही हैं जोकि तसल्ली देता है.


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)