कश्मीर के हालात बयान करते हुए सालों पहले मशहूर शायर बशीर बद्र ने लिखा था-


"अगर फ़ुर्सत मिले तो पानी की तहरीरों को पढ़ लेना


हर इक दरिया हज़ारों साल का अफ़्साना लिखता है."


ये वही कश्मीर है जिसे इस धरती का जन्नत सिर्फ समझा ही नहीं जाता बल्कि यही हक़ीक़त भी है, जहां चिनाब का पानी न जाने कितनी सदियों से लोगों की प्यास बुझाते हुए उन्हें अपने ही रंग में घुल जाने की नसीहत देता आया है. बरसों तक कुदरत की उस नियामत के मुताबिक ही वहां दोनों मज़हब के लोग अपनी जिंदगी जीते रहे. लेकिन 31 बरस पहले नापाक मुल्क कहलाने वाले पाकिस्तान की ऐसी नज़र लगी, जिसे उतारने के लिए पीर-पैगम्बरों की इस जमीं पर मुल्क के हुक्मरानों को भी उसी बंदूक की गोली से जवाब देने के लिए मजबूर होना पड़ा है, जिसके सहारे आतंकवादी बेगुनाहों के खून से इस वादी को लाल कर रहे हैं. ऎसे माहौल में देश के गृह मंत्री अमित शाह का कश्मीर घाटी जाकर वहां के विभिन्न वर्गों, तबकों के लोगों से मिलना सिर्फ बड़ी बात नहीं है, बल्कि ये आतंकियों औऱ उनके आकाओं को करारा जवाब देना भी है कि भारत वो नहीं है, जो आतंकावाद के आगे घुटने टेक दे.


शाह का कश्मीर दौरा सिर्फ पाकिस्तान को संदेश देने के लिए ही नहीं है बल्कि ये तालिबान व तुर्की समेत उन तमाम मुल्कों के लिए एक चेतावनी भी है, जो आतंक को पाल-पास रहे हैं या किसी भी जरिये से उनकी मदद कर रहे हैं. अगर साफ शब्दों में कहें, तो अन्तराष्ट्रीय सामरिक व सुरक्षा की कूटनीति के लिहाज से मोदी सरकार का ये साहसिक फैसला दुनिया के सबसे खूंखार आतंकी संगठन ISIS को ये पैगाम देने के लिए भी है कि वो कश्मीर को अपना नया ठिकाना बनाने के बारे में भूलकर भी न सोचे.  पाकिस्तान समेत तमाम इस्लामिक मुल्कों की निगाहे शाह के इस दौरे पर लगी हुई हैं क्योंकि वे सपने में भी ये सोच नहीं सकते थे कि जिस कश्मीर घाटी में आतंकियों ने इतनी तबाही मचा रखी हो, वहां उस देश का गृह मंत्री जाने और हर वर्ग के लोगों से मिलने की हिम्मत भी कर सकता है. लिहाज़ा, विपक्षी दलों को भी इस दौरे को लेकर सियासत इसलिये भी नहीं करनी चाहिये कि ये सिर्फ आंतरिक सुरक्षा से जुड़ा मसला नहीं है, बल्कि इससे घाटी में रहने वाले अल्पसंख्यकों में सुरक्षा का भरोसा तो पैदा होगा ही, साथ ही आतंकियों में भी नापाक मंसूबों को पूरा करने का अनजाना खौफ पैदा होगा. वैसे भी दुनिया के तमाम बड़े मनोवैज्ञानिक इसी नतीजे पर पहुंचे हैं कि अपने दुश्मन को परास्त करने के लिए आपको हथियार से ज्यादा दिमाग की जरुरत होती है लेकिन ये उस इंसान को ही तय करना होता है कि सजा इस्तेमाल कब, कहाँ व कैसे करना है. लिहाजा, ऐसे वक्त में जब आतंकी वहां तबाही की बुलंदी छूने की कोशिश कर रहे हों, तब वहां गृह मंत्री का दौरा कोई सियासी शगूफा नहीं समझा जाना चाहिए.


ग्लोबल टेररिज्म यानी वैश्विक आतंकवाद की शब्दावली में इसे 'साइक्लोजिकल अटैक ऑन वार' यानी मनोवैज्ञानिक तरीके से दुश्मन को कमजोर करने की रणनीति समझा जाता है. ग्लोबल टेररिज्म के विशेषज्ञ मानते हैं कि अतीत में अमेरिका, रूस व इज़रायल जैसे देशों ने भी इस रणनीति को अपनाया है और उसमें वे काफी हद तक कामयाब भी हुए हैं. उनका तर्क है कि देश के आतंकग्रस्त हिस्से में जब सरकार का कोई महत्वपूर्ण मंत्री बेख़ौफ होकर जाता है, तो उससे आतंक के सरगनाओं को ये अहसास हो जाता है कि एक तो सरकार को हमारा डर नहीं है और दूसरा, उस दौरान उन्हें सुरक्षा बलों की ताकत का भी अंदाज़ा हो जाता है कि इनसे मुकाबला करना कोई बच्चों का खेल नहीं है. जिहादी चाहे कितना ही ताकतवर क्यों न हो, उसे सबसे पहले अपनी जान ही प्यारी होती है, इसलिये वो हमला करके हर सूरत में खुद को बचाना चाहता है और पिछले डेढ़-दो दशक में आतंकी संगठनों के ज्यादातर लड़ाकों में इस तरह की मानसिकता हावी हो चुकी है.


हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पहले कार्यकाल में 2016 के वक़्त वह दौर भी आया था, जब पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई ने घाटी के बेरोजगार नौजवानों को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करना शुरु किया था. उन्हें सुरक्षा बलों पर पत्थर बरसाने के एवज़ में हर महीने आठ-दस हजार रुपये मिला करते थे. उसी साल जुलाई में हिजबुल मुजाहिदीन के कमांडर बुरहान वानी को हमारे सुरक्षा बलों ने एक मुठभेड़ में मार गिराया था. तब पूरी घाटी में इसकी जबरदस्त प्रतिक्रिया हुई. हर जगह हिंसक प्रदर्शन हुए  और वहां के राजनीतिक दलों ने इस मसले पर अपनी सियासी रोटियां भी जमकर सेंकी. उस दौरान घाटी के सभी 10 जिलों में लगातार 53 दिनों तक कर्फ्यू लगाना पड़ा था लेकिन पत्थरबाज अपनी हरकतों से तब भी बाज़ नहीं आये थे. आखिरकार सुरक्षा बलों ने कड़ा फैसला लिया और एक पत्थरबाज को पकड़कर उसे अपनी जीप के बोनट पर बांधकर उसे पूरी घाटि में घुमाया, ताकि बाकियों को पता लग जाये कि उनका भी वही अंज़ाम होगा.


उस दौरान राज्य की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती थीं और कहते हैं कि उनकी सरकार ने भी वहां के लोगों को सुरक्षा बलों के खिलाफ जमकर भड़काया था, जिसके कारण कई बेगुनाह नागरिकों की जान चली गईं. राज्य में हालात को सामान्य करने के मकसद से तत्कालीन गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने तब सवा महीने में दो बार कश्मीर का दौरा किया और सर्वदकीय बैठकें करके किसी तरह से स्थिति को शान करने की कोशिश की थी.


लेकिन अब हालात बिल्कुल अलग हैं. अगस्त 2019 में जम्मू-कश्मीर को मिला विशेष दर्जा वापस लिए जाने के बाद गृह मंत्री का ये पहला दौरा है. आतंकी संगठनों को इसकी भनक लग चुकी थी कि शाह जल्द ही घाटी में आ सकते हैं, इसीलिये उन्होंने पिछले दिनों में ताबड़तोड़ टार्गेटेड किलिंग करके आम लोगों को अपना निशाना बनाया, ताकि सरकार डर जाए और वे कश्मीर में आने की हिम्मत न जुटा सकें. लेकिन उनके मंसूबे पूरे नहीं हो पाएंगे. शायद इसलिए भी कि कश्मीर की मशहूर शायरा रुखसाना ने लिखा है,  'वो जब भी खींचते हैं कैनवस पर तस्वीरें,  चिराग आगे तो पीछे धुआं बनाते हैं.'



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