बेबस, बेकल, थका हुआ तन, चमड़े से बाहर को झांकती हुई नसें, सूखी हड्डी पर रूखी पतली चमड़ी ढोने वाले 70 शरीर सिस्टम के काल के गाल में समा गये. ये सभी इंसान ही थे जो हमारे बीच हंसते, गुनगुनाते, उखड़ी-उखड़ी सांसों के बीच भी ठहाका लगाते दिख जाते थे. ये वे लोग हैं जिन्हें आपकी सहूलियत के लिए बनाया गया सिस्टम बिन पते की खत की तरह समझता है. ये वे लोग हैं जिन पर वक्त ईनाम के बजाए हर इल्जाम आसानी से धर देता है.
यूपी और उत्तराखंड के दर्द से भरे, आंसुओं से भीगे, विपत्ति के घेरे में व्याकुल 70 परिवार रेशमी कलम से तकदीर संवारने वालों के लिए सिर्फ सियासी द्ंवद बने हुए हैं. सत्ता पक्ष कुछ मुआवजा देगा, सिस्टम के चंद सिपहसालारों की गर्दन मरोड़ कर वाहवाही लूटने की रासलीला में व्यस्त होगा. विपक्ष एक कागज के टुकड़े पर या माइक पर कड़ी प्रतिक्रिया देकर अखबार के पन्ने या टीवी का रिमोट पकड़कर अपनी तस्वीर देखने में जुट जाएगा.
चलिए पहले आपको खबर बता दूं. यूपी और उत्तराखंड में जहरीली शराब पीने से 70 लोगों की मौत हो गई है. आंकड़े कम या अधिक आपको हर महीने ऐसी खबरें पढ़ने की आदत हो गई होगी. चाय का कप रखते हुए मजदूरों को गाली देते हुए निकल लेते होंगे नहाने या नाश्ता करने. यदि मजदूर अनपढ़ है, शराबी है आपके समाज में आपके मेन स्ट्रीम में नहीं जुड़ पा रहा है क्या यह गलती उसकी है? कभी गहरी सांस भर कर सोचिएगा. आपने ऐसा कौन सा सिस्टम बनाया हुआ है, जहां लोकतंत्र सिर्फ वोट देने तक सीमित होता जा रहा है? जहां एक वक्त की रोटी के लिए एक इंसान अपने बच्चों को बेच देता है वहां आप वोट के बदले नोट ना लें, की रंगीन अपील कर रहे हैं. चाहते आप क्या हैं हमें पता है?
आप चंद छोटी मछलियों पर गाज गिराकर मलाईदार मैसेज दे सकते हैं, जिन्दा शरीर को जहरीली शराब पीने से नहीं रोक सकते हैं. सिस्टम में लगी नोटों की घुन को मारिए.. सिस्टम एक प्लेटफॉर्म है, सियासी दल रेल गाड़ियों की तरह आते जाते हैं. आपको क्या लगता है कि सेल का खेल सिर्फ बाजारों में है. कभी सिस्टम के बाजार में झांकिए ऊंची-ऊंची बोलियां लगी हुई हैं. यह अलिखित गठजोड़ किसी भी खून के रिश्ते से ज्यादा मजबूत है. आप मुआवजा और कड़ी कार्रवाई का झांसा देने के बजाए ऊंची-ऊंची लगने वाली बोलियों पर कुछ कीजिए.. वैसे हमें पता है जैसे शेर कोई बड़ा शिकार करता है तो लोमड़ी और लक्कड़बग्घों के लिए थोड़ा हिस्सा अनजाने में छोड़ देता है लेकिन कंकरीट के इंसानों की बस्ती में जानबूझकर लाभ दिया जाता है. स्वार्थ के इस शतरंज में सियासी दल भी सिर्फ एक मोहरे हैं, पूरा खेल तो सिस्टम का है.
राजनीतिक दलों और नौकरशाही से मिला शह दबंगों को कुछ भी करने का हौसला देता है. नकली शराब के चवन्नीछाप चंद छोटी मछलियों का शिकार करने के बजाए सिस्टम को दुरूस्त करने के लिए सोचिए. अब यह जायज सवाल उठने लगा है कि क्या हमारे सहूलियत के लिए बना सिस्टम आम जनता को धोखा देता है? इन आंकड़ों को पढ़िए और सोचिए कि मकड़जाल कैसा है..घुन कहां लगा है...
2005 से 2015 तक 12000 लोगों की मौत
2005 से 2015 तक जहरीली शराब पीने से लगभग 12000 लोगों की जान गई. यानि औसतन 1183 लोग हर साल इस नकली शराब की चपेट में आकर दुनिया से चले जाते हैं. 2006 में मरने वालों का आंकड़ा 685 था, लेकिन 2015 के आकड़ों से तुलना करें तो वह डबल से भी ज्यादा हो गया.
मरनेवालों में 79 प्रतिशत पुरुष
जिन 12 हजार लोगों की 2005 से 2015 तक मौत हुई है उसमें लगभग 9 हजार से ज्यादा पुरुष शामिल हैं. जहरीली शराब से मरने वाले पुरुषों की संख्या कुल मरने वालों की संख्या का 79 प्रतिशत है. वहीं महिलाओं की बात करें तो कुल 2490 महिलाओं की जान जहरीली शराब से पिछले इस समयावधी में गई है. जो कि मरनेवालों के संख्या का 21 प्रतिशत है.
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)