जमाना बड़े शौक से सुन रहा था, हमीं सो गए दास्तां कहते कहते. साकिब लखनवी का यह मशहूर शेर तब एक दम याद हो आया जब जाने माने फिल्म अभिनेता इरफान खान के इंतकाल की खबर आई. यूं दो साल पहले इरफान ने अपने प्रशंसकों और फ़िल्मकारों की तब भी नींद उड़ा दी थी, जब पहली बार यह पता लगा कि इरफान को कैंसर है. वह भी न्यूरोएंडोकाइन नाम के उस ट्यूमर के रूप में जो बेहद दुर्लभ होता है.
इरफान खान खुद अपनी यह बीमारी जानकार सकते में आ गए थे और उन्होंने अपना दर्द साझा करते हुए कहा भी था कि अच्छी भली ज़िंदगी जब उड़ान भर रही हो तो अचानक क्या हो जाये, यह कोई नहीं जानता.
इरफान ने तब अपने ट्विटर पर भी लिखा था, “कभी कभी जब आप सुबह उठते हैं तो ज़िंदगी आपको एक झटका देती है. मेरे पिछले 15 दिन एक सस्पेंस स्टोरी की तरह रहे. मुझे नहीं पता था कि दुर्लभ कहानियों को ढूंढते ढूंढते मुझे ही एक दुर्लभ बीमारी मिल जाएगी. लेकिन मैंने कभी हार नहीं मानी. हमेशा लड़ा हूं और आगे भी लड़ूंगा. मेरा परिवार और मेरे दोस्त मेरे साथ हैं."
इस सारे मामले में इरफान को उनकी पत्नी सुतापा सिकदर ने भी जमकर हिम्मत बंधाई और वह उन्हें इलाज़ के लिए लंदन लेकर गईं. बता दें की सुतापा और इरफान अपने राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के दिनों में एक ही बैच में साथ-साथ पढ़ते थे. यानी इरफान के पुराने संघर्ष के दिनों से ही वह उनके साथ थीं. ऐसा नहीं था कि इरफान की सफलता के बाद वह उनकी जीवन संगिनी बनी थीं. वह उनकी पत्नी ही नहीं दोस्त भी थीं.
लगभग पूरे एक साल सुतापा इरफान के साथ रहकर लंदन में महंगे से महंगा इलाज़ कराती रहीं. खुशी तब हुई जब फरवरी 2019 में इरफान ठीक होकर मुंबई वापस आ गए. लेकिन क्या पता था कि वह खुशी क्षणिक थी.
हालांकि ठीक होकर स्वदेश लौटने पर इरफान ने अपनी एक फिल्म ‘अंग्रेजी मीडियम’ की लगातार शूटिंग की और जल्द ही फिल्म को पूरा करके खत्म किया. क्योंकि इरफान की पिछली फिल्म ‘हिन्दी मीडियम’ ने देश विदेश में बड़ी सफलता पाई थी. इसलिए सभी को ‘अंग्रेजी मीडियम’ से बहुत उम्मीद थी. फिर यह भी था कि गंभीर बीमारी से ठीक होकर लौटने के बाद ‘अंग्रेजी मीडियम’ फिल्म उनकी पहली फिल्म है, इसलिए इसे और भी बड़ी सफलता मिलेगी. लेकिन जब यह फिल्म गत मार्च को रिलीज होने वाली थी तो इरफान खान इसके प्रमोशन और ट्रेलर लॉन्च पर खुद नहीं पहुंच सके.
तब उन्होंने एक ऑडियो मेसेज भेजकर सभी को संबोधित किया था. इससे यह आभास हो गया था कि इरफान चाहे ठीक होकर फिर से शूटिंग तो कर गए लेकिन उनकी तबीयत अभी भी ठीक नहीं है. उनके उस संदेश में उनकी जानदार आवाज़ और शब्द आज भी दिमाग में गूंजते हैं. इरफान ने तब कहा था- “भाइयो बहनों नमस्कार मैं इरफान. मैं आज आपके साथ हूं भी और नहीं भी. खैर ये मेरी फिल्म ‘अंग्रेजी मीडियम’ मेरे लिए बहुत खास है. यकीन मानिए ये मेरी दिली ख्वाहिश थी कि अपनी इस फिल्म को मैं उतने प्यार से प्रमोट करूं जितने प्यार से इसे बनाया है. लेकिन मेरे शरीर के अंदर कुछ अनवांटेड मेहमान बैठे हुए हैं, उनसे वार्तालाप चल रहा है. देखते हैं किस करवट ऊंट बैठता है. जैसा भी होगा आपको इतला कर दी जाएगी." इतला तो अब मिल ही गयी कि शानदार अभिनेता इरफान अब इस दुनिया में नहीं रहे. हालांकि इरफान इस अफसोस के साथ दुनिया से विदा हुए कि उनके लिए यह बेहद खास फिल्म ‘अंग्रेजी मीडियम’ सफल नहीं हो सकी.
असल में जब गत 13 मार्च को यह फिल्म प्रदर्शित हुई तब कोरोना का कहर देश में भी पांव पसार चुका था. इससे शूटिंग बंद और सिनेमाघर बंद होते चले गए. बाद में पूरे देश में लॉकडाउन होने पर तो सब कुछ ही ठहर गया. इससे यह फिल्म सिर्फ लगभग 10 करोड़ का ही बिजनेस कर पाई. इससे इरफान सहित सभी निराश हुए. लेकिन कहा गया जब सब कुछ सामान्य होने के बाद फिर से सिनेमा खुलेंगे तब इस फिल्म को फिर से रिलीज किया जाएगा. लेकिन अब ‘अंग्रेजी मीडियम’ इरफान की अंतिम फिल्म बनकर रह गयी है. साथ ही यह वह फिल्म भी है जिसके बाद देश में अभी तक कोई और फिल्म प्रदशित नहीं हो सकी है.
इरफान ने अपनी ज़िंदगी की लड़ाई बहुत ही बहादुरी के साथ लड़ी. लेकिन उनके मन में कहीं न कहीं यह डर तो था ही कि यह गंभीर और जानलेवा बीमारी उन्हें कहीं फिर से अपनी चपेट में न ले ले. अपने ट्विटर पर भी आखिरी बार 12 अप्रैल को अपनी अंतिम फिल्म ‘अंग्रेजी मीडियम’ का ही एक संवाद इरफान ने लिखा था –“इंसाइड आई एम वेरी इमोशनल, आउटसाइड आई एम वेरी हैप्पी.“ जो उनके दिल की हकीकत भी बताता है कि वह बाहर से चाहे खुश दिखते हैं लेकिन भीतर से बेहद भावुक हैं.
देखा जाये तो इरफान का जीवन बेहद उतार चढ़ाव वाला रहा. इरफान का जन्म 7 जुलाई 1967 को जयपुर में एक मुस्लिम पठान परिवार में हुआ था. उनके वालिद यासीन अली खान टायर का बिजनेस करते थे. जो पहले ही इस दुनिया से कूच कर गए. जबकि उनकी वालिदा सईदा बेगम खान तो गत 25 अप्रैल को ही 95 बरस की उम्र में चल बसीं. लॉकडाउन के चलते इरफान खान अपनी मां के अंतिम यात्रा में भी शामिल नहीं हो सके और तब भी उन्होंने विडियो संदेश भेजकर अपनी भावनाओं और शोक को अपने परिवार के साथ साझा किया. लेकिन वह अपनी मां से मिलने के लिए खुद ही पांच दिन बाद उसी सफर पर निकल पड़ेंगे, जिस सफर पर उनकी मां गयी हैं. यह किसी ने सोचा भी नहीं था. इरफान को बचपन में क्रिकेट का बहुत शौक था और अपनी पढ़ाई के दौरान यह क्रिकेट में भी तेजी से आगे बढ़ रहे थे. यह भी एक संयोग था कि लंदन में जिस अस्पताल में इरफान इलाज के लिए गए थे. उसके सामने लॉर्ड्स का वह क्रिकेट मैदान था जो दुनिया भर के अनेक क्रिकेट मैच का साक्षी रहा है. बहरहाल इरफान जयपुर से अपनी एमए की पढ़ाई के बाद सन् 1984 में तब दिल्ली आ गए जब इनका दाखिला यहां के प्रसिद्ध राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में हो गया. सन् 1987 में एनएसडी से पास होने के बाद इरफान ने मुंबई का रुख किया और जल्द ही वहां इन्हें सीरियल में काम मिल गया, जिनमें चाणक्य, भारत एक खोज, सारा जहां हमारा, चंद्रकांता, जैसे सीरियल भी थे.
साथ ही उसी दौरान इरफान को मीरा नायर की फिल्म ‘सलाम बॉम्बे’ भी मिल गयी. इसी के साथ फिल्मों में 1988 में आरंभ हुई उनकी फिल्म यात्रा उनकी अंतिम सांस तक जारी रही. इरफान के खाते में एक से एक फिल्म है, जिसमें इरफान ने कभी सहायक भूमिकाओं में कभी नेगेटिव भूमिकाओं में तो कभी नायक के रूप में एक से एक खास फिल्म देकर खुद को एक सम्पूर्ण और सशक्त अभिनेता के रूप में स्थापित किया है.
अपनी ज़िंदगी के 54 और अपने 32 बरसों के फिल्मी सफर में इरफान ने करीब 50 हिन्दी और दस हॉलीवुड की फिल्मों में काम किया है. जिनमें ‘पान सिंह तोमर’ के लिए तो इरफान को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला. साथ ही उन्हें 4 बार फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिला. जिनमें ‘पान सिंह तोमर’ के साथ ‘हासिल’, 'लाइफ इन द मेट्रो' और 'हिन्दी मीडियम' शामिल हैं. उनके फिल्मों में किए गए असाधारण योगदान के लिए भारत सरकार ने इरफान को 2011 में पदमश्री से भी सम्मानित किया. देश विदेश में उन्हें कुछ और भी पुरस्कार मिलते रहे.
उनकी अन्य यादगार हिन्दी फिल्मों में मकबूल, क्रेजी -4, लंचबॉक्स, बिल्लू, सात खून माफ, मदारी, तलवार, जज़्बा, साहिब बीवी और गैंगस्टर रिटर्न, गुंडे और पीकू जैसे कई नाम हैं. वहां विदेशी फिल्मों में द नेमसेक, स्लमडॉग मिलेनियर, लाइफ ऑफ पाई, द अमेजिंग स्पाईड़रमैन, जुरासिक वर्ल्ड और हिस्स प्रमुख हैं. जिस तरह इरफान का करियर दिन प्रति दिन नए शिखर की ओर बढ़ रहा था, उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि यदि उनकी ज़िंदगी आगे चलती तो वह और भी कई नयी मंज़िलों तक पहुंचते. लेकिन उनका अभी तक का योगदान भी उनकी यादों और उपलब्धियों को बरसों बरसों तक ज़िंदा रखेगा.
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