विनोद दुआ नहीं रहे ये लिखने में ही हिंदी पत्रकारिता का कितना दर्द छुपा है ये उनको दूर बैठकर सुनने और देखने वाले समझते होंगे. हिंदी की टेलीविजन पत्रकारिता का विनोद जी सबसे पुराना जाना पहचाना और भरोसेमंद नाम रहा है. चाहे नब्बे के दशक दूरदर्शन के जमाने में डॉ प्रणव राय के साथ के उनके चुनावी विश्लेषण के कार्यक्रम हों या फिर उनका कार्यक्रम परख, स्टार न्यूज का कौन बनेगा मुख्यमंत्री हो या फिर एनडीटीवी का चर्चित जायका इंडिया का या फिर वायर वेबसाइट पर जन गण मन की बात. विनोद जी हर फॉर्मेट में अपनी स्वाभाविक तरीके से कही गयी गहरी बात बोल जाते थे. जो सुनने वाले के दिल में सालों तक याद रहती थी. वो टीवी के सबसे नैसर्गिक पत्रकार थे. जो बिना चीखे चिल्लाये झुझलाए ऐसा तीखा सवाल पूछते थे कि जहां सवाल का जवाब देने वाला सुलग जाता था तो इसे देख रहा दर्शक तक उस सवाल और उनके अंदाज की दाद दिये बिना नहीं रह पाता था.


मुझे याद पड़ता है विनोद दुआ जी के साथ हम सहारा टीवी में थे. उन दिनों समाचार बुलेटिन बनते थे और उसके बाद दस मिनट की विनोद दुआ उस दिन की किसी चर्चित हस्ती से सवाल जवाब का कार्यक्रम करते थे. विनोद जी के एक कार्यक्रम में विश्व हिंदू परिषद के नेता गिरिराज किशोर आए. उन दिनों राम जन्म भूमि आंदोलन चरम पर था. विनोद जी ने कुछ तीखा सवाल अपने चुटीले अंदाज में घुमा फिराकर पूछ लिया जिसका जवाब जब गिरिराज किशोर से देते नहीं बना तो उन्होंने झुंझलाकर विनोद जी से कह दिया माफ करिये आप इस मुद्दे पर कुछ भी नहीं जानते विनोद जी. बस फिर क्या था विनोद दुआ हल्के से मुस्कुराये और कहा गिरिराज जी माना कि मैं आपकी नजर में अज्ञानी हूं मगर ये मेरे सवाल का जवाब नहीं है आप से मैंने सवाल अर्ज किया है कृपया उसका जवाब दीजिये. सामने वाले अतिथि के पास गिलास उठाकर पानी पीने के अलावा कोई चारा नहीं था. सहारा में उन दिनों प्रजेंटर के लिये एक अलग कोट पहनना पड़ता था मगर विनोद जी ने वो कभी नहीं पहना ये कहकर कि पत्रकार कभी कॉस्टयूम धारण नहीं करते.


मध्य प्रदेश विधानसभा के 2003 के चुनाव में विनोद जी भोपाल में लंबे वक्त तक रहे स्टार न्यूज के कार्यक्रम कौन बनेगा मुख्यमंत्री के लिये. इसके लिये विनोद जी को ऑटो रिक्शा में बैठकर किसी नेता के घर तक जाना होता था. उस वक्त विनोद जी की सहजता और विनोद प्रियता देखते ही बनती थी. कैमरामैन के एक एक निर्देश का वो जिस तरीके से बिना माथे पर शिकन लिए हुए पालन करते थे वो देखकर हम सब चकित रह जाते थे. वो कहते भी थे कि कैमरामैन इस मीडियम का राजा है राजा खुश रहेगा तो पूरी प्रजा खुष रहेगी यानि कि हमारा सूट खूबसूरत होगा हम ज्यादा देखें जायेंगे. ऑटो चालक से लेकर गाड़ी का ड्राइवर तक उनसे बेहद खुश रहते थे. और जब वो खुश होते थे तो इतना बेहतर गुनगुनाते थे कि लंबे समय तक उनको सुनते रहने की ही इच्छा होती थी. शूट के दौरान रास्ते में जो भी उनको पहचान कर उनसे मिलता विनोद जी उससे ज्यादा आदर के साथ उससे मिलते और अपने एक दो वाक्यों में सामने वाले को निहाल कर देते.


आज की टीवी पत्रकारिता में अपने को ही सर्वज्ञ ज्ञानी ध्यानी मानने वाले एंकर जिस तरीके से टीवी स्क्रीन पर शोर करते हैं उनके बीच में विनोद दुआ अपने संयत अंदाज शालीन मगर चुभते सवालों के साथ हमेशा याद आते रहेंगे. वरिष्ठ पत्रकार वीर संघवी ने सच ही कहा है कि विनोद टीवी के नैसर्गिक पत्रकार थे और हम सब चाह कर भी उन जैसा नहीं बन पाये ये अफसोस हमेशा रहेगा. अफसोस तो हमें भी बहुत होगा कि अभी विनोद जी के जाने की उम्र नहीं थी. लंबी बीमारी में भी उनके अंदर का पत्रकार बैचेन रहता था. इस दरम्यान जब भी गाहे बगाहे विनोद जी को सुनने मिलता था तो लगता था कि पत्रकार कभी बूढ़ा नहीं होता बल्कि उम्र के साथ और जवान होता है. हिंदी के पहले टीवी पत्रकार विनोद जी को अनेक अच्छे कार्यक्रमों की याद के साथ नमन.


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