जिन पांच राज्यों राज्यों में अगले माह विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं, उनमें दक्षिणी राज्य केरल काफी अहम है. केरल में मुस्लिम मतदाताओं की तादाद करीब तीस फीसदी है और इसलिए किसी भी दल या गठबंधन की सरकार बनने में यहां मुस्लिम मतदाताओं का रोल काफी महत्वपूर्ण होता है. केरल में यूं तो मुसलमानों की सबसे बड़ी पार्टी इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) है और ज्यादातर मुस्लिम वोट इसी पार्टी को हासिल होते हैं लेकिन राज्य के मुसलिम मतदाता गठबंधनों की लहर को देखते हुए इसके विरोध में भी वोट देते रहे हैं.
किसी को नहीं मिली स्पष्ट बहुमत दिलचस्प बात ये है कि सौ प्रतिशत साक्षरता का दावा करने वाला केरल देश का अकेला ऐसा राज्य है जहां कई दशकों से किसी एक दल को स्पष्ट बहुमत हासिल नहीं हुई है और इसलिए यहां हर बार गठबंधन सरकार ही बनती है. इसके अलावा हर पांच साल बाद यहां के जागरूक मतदाता गठबंधन सरकारों को बदल देते हैं. प्रमुख राजनीतिक दलों के यहां दो बड़े गठबंधन हैं एक तो सत्ताधारी मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) के नेतृत्व वाला लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) है, जिसमें वामपंथी दलों के अलावा जनता दल(सेक्युलर) और नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी जैसे दल हैं तो दूसरा कांग्रेस के नेतृत्व वाला यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) है, जिसमें इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के अलावा कुछ स्थानीय छोटे दाल भी शामिल हैं.
पिछले चुनाव में था LDF का बोलबाला केरल विधानसभा में 140 सीटें हैं और राज्य में किसी भी दल या गठबंधन को सत्ता में आने के लिए 71 सीटों की ज़रूरत होती है. पिछली मर्तबा 2016 में हुए केरल विधानसभा चुनाव के नतीजों पर नजर डालें तो राज्य में लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) का बोलबाला था. इस चुनाव में एलडीएफ को 91 सीटें और कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) को 47 सीटें मिली थीं.
पिछली बार बदले समीकरण इन चुनावों में 32 मुस्लिम विधायक विधान सभा के लिए निर्वाचित हुए थे. इनमें मुसलिम लीग के 18, लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) के 10 और चार अन्य दलों से जीते थे. हालांकि इससे पहले 2011 में हुए विधान सभा चुनावों में 36 मुस्लिम विधायक चुने गए थे. इन चुनावों में लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) के उम्मीदवारों ने मुस्लिम बहुल इलाकों में बेहतर प्रदर्शन किया था. हालांकि मुस्लिम बहुल इलाकों को लेफ्ट के लिए मुश्किल गढ़ माना जाता था लेकिन पिछली बार समीकरण बदल गए. लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) ने मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में ऐसी 43 सीटों में से 22 सीटें जीती थीं और जबकि कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) को 21 सीटें मिलीं. इन इलाकों में यूडीएफ के वोट शेयर में भी बड़ी गिरावट दर्ज की गई और आंकड़ा 47.8 फीसदी से गिरकर 38.4 फीसदी ही रह गया. केरल विधानसभा की 140 सीटों में से कई सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक स्थिति में हैं. इनमें वायनाड, त्रिसूर, चलकुडी एर्नाकुलम, इडुक्की, कोट्टयम, अल्पूझा, पथनमिथिट्टा, पोन्नानी, मंजेरी और मल्लापुरम जैसे इलाके शामिल हैं.
मुस्लिम लीग ने पहली बार महिला को दिया टिकट केरल में इस बार होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) गठबंधन ने अपनी सहयोगी इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के लिए 27 विधानसभा सीटें छोड़ी हैं. इसके लिए आईयूएमएल ने अपने 25 उम्मीदवारों के नाम की घोषणा भी कर दी है. इसके अलावा यूडीएफ गठबंधन ने उपचुनाव और राज्यसभा चुनाव के लिए भी अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है. राज्य के मल्लपुरम लोक सभा उपचुनाव के लिए मुस्लिम लीग के अब्दुसमद समदानी को यूडीएफ गठबंधन का उम्मीदवार बनाया गया है, जबकि राज्य सभा चुनाव के लिए इंडियन मुस्लिम लीग के ही अब्दुल वहाब को मैदान में उतारा है. मल्लपुरम लोक सभा सीट से 2019 में आईयूएमएल के पीके कुन्हालीकुट्टी ने चुनाव जीता था मगर विधान सभा चुनाव लड़ने के लिए उन्होंने लोक सभा की सदस्य्ता से इस्तीफा दे दिया और अब वह वेंगारा विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. केरल विधानसभा में विरोधी दल के उप-नेता एमके मुनीर कोडुवली से चुनाव लड़ेंगे, जबकि मुस्लिम लीग से ही नूरबीना राशिद कोझीकोड साउथ में चुनाव लड़ेंगी. यह पहला मौका है जब मुस्लिम लीग ने किसी महिला को अपना उमीदवार बनाया है. पार्टी ने भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे अपने दो मौजूदा विधायकों वी के इब्राहिम कुंजू और एम सी कमरुद्दीन को इस बार टिकट नहीं दिया है.
SDPI के बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद केरल विधानसभा के इस बार होने वाले चुनाव में मुसलमानों की हिमायत का दावा करने वाली एक और पार्टी सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई) भी जोरदार ढंग से चुनाव लड़ रही है. हालांकि पिछले विधानसभा चुनावों में इस पार्टी को एक प्रतिशत से भी कम महज 0.69 फीसदी वोट मिले थे और पार्टी एक सीट भी नहीं जीत पाई थी. मगर सन 2020 में हुए स्थानीय निकाय चुनाव और पंचायत चुनावो में इस पार्टी ने अपना वोट शेयर 2015 के मुकाबले दोगुना कर लिया और बहुत से कॉर्पोरेशन और पंचायतों में काफी सीटें जीतीं. इस बार पार्टी मल्लापुरम का लोकसभा उपचुनाव भी लड़ रही है और उसने पार्टी प्रवक्ता तस्नीम रहमानी को अपना उमीदवार बनाया है.
ओपिनियन पोल में LDF की जीत कुछ एजेंसियों द्वारा चुनाव पूर्व किए गए 'ओपिनियन पोल' में बताया गया है की इस बार केरल में मौजूदा सत्ताधारी गठबंधन लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) के ही दोबारा सत्ता में वापसी की संभावना है. अगर ऐसा हुआ तो कई दशकों बाद राज्य में यह अनोखा प्रयोग होगा.
नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस किताब समीक्षा से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.
ये भी पढ़ें