आज से ठीक सात दिन पहले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कोरोना संक्रमित होते हैं और वो इलाज के लिये भोपाल में कोविड के उपचार के लिये तय अस्पताल चिरायु में भर्ती हो जाते हैं. एक दिन तक सत्ता पक्ष और विपक्ष के साथियों के शिवराज जी के स्वास्थ्य के लिये चिंता और शीघ्र स्वस्थ होने के संदेश ट्विटर पर आते रहते हैं. मगर जैसा कि शिवराज जी का काम करने का ढंग है. हार नहीं मानूंगा, तो वे अगले दिन से अस्पताल से ही काम शुरू कर देते हैं.
मोदी जी की मन की बात सुनते दिखते हैं फिर कैबिनेट के साथियों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेसिंग की मदद से कैबिनेट भी कर डालते हैं. अस्पताल से लगातार आ रहे शिवराज जी के वीडियो और फोटो को कांग्रेसी मुद्दा बनाते हैं, जिसमें सबसे आगे रहते हैं हमारे विधायक और पूर्व मंत्री जिनको कमलनाथ ट्वेंटी फोर इन टू सेवन मंत्री कहते थे. यानी पीसी शर्मा. शर्मा जी अपने ट्विटर हैंडल से शिवराज जी पर निशाना लगाते हैं और कहते हैं कि प्रदेश का मुखिया फाइव स्टार सुविधाओं वाली निजी अस्पताल में कैमरों के साथ लिविंग रूम जैसे आराम के साथ भर्ती हो गया है और जनता कोरोना के चलते बुरे हाल में है.
मगर ये क्या शुक्रवार की रात डेढ़ बजे पीसी शर्मा ट्वीट करते हैं, अपील मेरी कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आई है, मैं अस्पताल में भर्ती हो रहा हूं. और शर्मा जी रातों रात उसी चिरायु में भर्ती हो गये जिस चिरायु में भर्ती होने पर वो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की टांग खिंचाई कर रहे थे. इस अस्पताल में इन दिनों मुख्यमंत्री के अलावा प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष वीडी शर्मा और सहकारिता मंत्री अरविंद भदौरिया भी अपना इलाज करा रहे हैं.
आज से कुछ दिनों पहले तक भोपाल के बीजेपी दफ्तर में हर वक्त चहल पहल हुआ करती थी. उपचुनाव होने वाले विधानसभा क्षेत्रों में होने वाली वर्चुअल रैलियों के लिये यहां से ही प्रसारण हुआ करता था. अचानक मन परिवर्तन होने से कांग्रेस से टूट कर आ रहे, विधायकों की बीजेपी में मिलाई या कहें कि सदस्यता दिलाओ अभियान यहीं होता था. जिसमें प्रदेश के मुख्यमंत्री अपनी सारी व्यस्तता छोड़कर शामिल होते थे. यहीं पर कांग्रेस से बीजेपी में आए पूर्व मंत्री अपने समर्थकों को बीजेपी की सदस्यता दिलवाते थे. यानी कोई दिन ऐसा नहीं होता था जब बीजेपी का ये दफ्तर भीड़ भाड़ से आबाद ना रहता हो. वो भी इस कोरोना काल में तमाम दो गज की दूरी और मास्क है जरूरी के नारों के बाद भी.
मगर पहले अरविंद भदौरिया, फिर शिवराज सिंह, फिर वीडी शर्मा और सुहास भगत के कोरोना की चपेट में आने के बाद ही भोपाल के दीनदयाल परिसर में बने बीजेपी दफ्तर को तकरीबन बंद ही कर दिया गया है. सारी रौनक गायब हो गयी है और अब तो सरकार ने चौदह अगस्त तक सारे राजनीतिक कार्यक्रम करने पर रोक लगा दी है. यही हाल भोपाल में शिवाजी नगर के कांग्रेस दफ्तर का भी हुआ है. उजाड़, वीरानी छाई है. कहां कुछ दिनों पहले तक यहां उपचुनाव के टिकटार्थी अपने साथियों के साथ चक्कर लगाया करते थे. मजे की बात ये है कि जब तक बड़े नेताओं को कोरोना नहीं हुआ तब तक सब चल रहा था, मगर जब हमारे बड़े नेताओं को कोरोना हुआ तो हमको मालूम चला कि कोरोना तेजी से पांव फैला रहा है. ये निश्चित ही चिंता का विषय है.
हालांकि कोरोना पर दूसरे तरीके से सोचें तो बहुत ज्यादा चिंता करने की जरूरत नहीं है. ये वो बीमारी है जो तेजी से फैलती भर है. इसीलिये इसे संक्रामक कहा जाता है मगर जो बीमारी तेजी से फैलती है, उसकी मारक क्षमता उतनी कम होती है. यदि हम कोरोना को ही देखें तो इसकी संक्रामक दर दो से तीन फीसदी है यानी एक कोरोना पीड़ित मरीज दो या तीन को ही बीमारी फैला सकता है. और इस बीमारी की मृत्यु दर या फेटालिटी रेट भी कम है. जबकि दूसरे वाइरस जैसे एच वन एन वन की मृत्यु दर दस प्रतिशत तो इबोला की पचास फीसदी है।. यानी कोरोना वायरस के चपेट में आने के बाद सौ मरीजों में से दो की ही मौत होती है तो इबोला में सौ में से पचास और एचवन एनवन के दस मरीज मर जाते हैं.
यानी कोरोना वायरस के चपेट में आने के बाद सौ मरीजों में से दो की ही मौत होती है, तो इबोला में सौ में से पचास और एचवन एनवन के दस मरीज मर जाते हैं. भोपाल के डाक्टर स्कंध त्रिवेदी कोरोना को सेल्फ लिमिटिंग डिसीज कहते हैं यानी ऐसी बीमारी जो अपने आपको अपने आप ही सुधार भी लेती है, इसलिये हमारे कोरोना के अधिकतर मरीज बिना दवा के अस्पतालों से ठीक होकर आ रहे हैं.
इस आंकड़ेबाजी का लब्बोलुआब ये है कि हमारे देश में कोरोना से लड़ने में देरी तो हो ही चुकी थी. दिसंबर में चीन ने बता दिया था कि हमारे यहां मारक वायरस आउट ऑफ कंट्रोल हो गया है. हमारे देश में कोरोना का पहला केस केरल के त्रिचुर में तीस जनवरी को सामने आया. यदि हम अपनी विदेशी एयरलाइंस को फरवरी में ही रोक देते तो देश में ये वायरस इस रूप से फैला नहीं होता. देश में कोरोना से पहली मौत भी ग्यारह मार्च को हुई मगर पहले हमने जनता कर्फ्यू का नाटक, फिर लाकडाउन की सख्ती, मार्च के बिल्कुल आखिरी दिनों में भी की. उसके बाद हमारी सरकार इस बीमारी से राजनीतिक तौर पर लड़ने लगी, जिसका खामियाजा और बुरा हुआ.
इस बड़ी आबादी में हम जनता को अस्पताल के भरोसे नहीं बल्कि जागरूक कर बीमारी को रोक सकते हैं. कोरोना पॉजिटिव आना बीमारी नहीं है. पाजिटिव मरीज को अलग थलग कर उसे बीमारी फैलने से रोकते तो ज्यादा कारगर होता मगर हम इनको अस्पतालों में भरने लगे हैं और डर फैलाने लगे. हालांकि हमारे नेताओं ने कोरोना से सतर्कता नहीं बरती इसलिये ये बीमार हुए.
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है)