अब स्पष्ट हो गया है कि अगर चुनाव पूर्व हुए बीजेपी-शिवसेना गठबंधन में कोई दरार नहीं आई, तो महाराष्ट्र में नई सरकार बीजेपी-शिवसेना की ही बनेगी. कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन, खास तौर पर एनसीपी ने इस बार काफी बेहतर प्रदर्शन किया है, लेकिन उसकी हालत उन विद्यार्थियों जैसी है, जो बहुत कम या बहुत ज्यादा अंकों के अंतर से फेल हो गए हों. फेल का मतलब फेल ही होता है और संख्या बल के आधार पर सरकार बनने वाली लोकतांत्रिक प्रणाली में विधायकों की संख्या पिछली बार से अधिक हो जाने का कोई अर्थ नहीं होता. दीवार पर साफ लिखा है, 288 सीटों वाली महाराष्ट्र विधानसभा में बीजेपी-शिवसेना गठबंधन खराब प्रदर्शन के बावजूद सरकार गठित करने के लिए आवश्यक 145 की संख्या पार कर गया है और कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन बेहतर प्रदर्शन के बाद भी काफी पीछे रह गया.


अब थोड़ा-बहुत पेंच मुख्यमंत्री पद और प्रमुख मंत्री पदों को लेकर फंसेगा. शिवसेना के वरिष्ठ नेता संजय राउत ने परिणाम घोषित होने के तुरंत बाद पुराना राग अलापते हुए कहा है कि मुख्यमंत्री शिवसेना का हो तो बेहतर. इस पद के प्रबल दावेदार शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के सुपुत्र आदित्य भी वर्ली सीट से जीत गए हैं. लेकिन जब 2014 में अलग-अलग लड़ने के बाद हुई सौदेबाजी में शिवसेना को मुख्यमंत्री पद नहीं मिला था, तो इस बार यह पद हासिल कर लेना शिवसेना के लिए आकाशकुसुम ही सिद्ध होने जा रहा है.


तब बीजेपी ने शिवसेना से लगभग दोगुनी सीटें जीती थीं. अपने-अपने दम पर चुनाव लड़ने के चलते उस समय शिवसेना के पास एनसीपी के साथ हाथ मिला लेने का विकल्प भी खुला हुआ था. लेकिन महीनों चली मान-मनौव्वल व सौदेबाजी के बाद शिवसेना सरकार में शामिल हो गई थी और पूरे पांच साल विपक्ष से भी ज्यादा तीखे तेवरों के साथ देवेंद्र फडणवीस के साथ रिश्ते निभाती रही. चूंकि 2019 में दोनों पार्टियों ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा है, इसलिए नैतिकता का भी तकाजा है कि दोनों साथ मिलकर सरकार बनाएं.



उधर एनसीपी के मुखिया शरद पवार ने ऐलान कर दिया है वह शिवसेना के साथ नहीं जाएंगे और कांग्रेस और दूसरे सहयोगियों से मिलकर आगे की रणनीति तय करेंगे. देखने वाली बात यह है कि शिवसेना और एनसीपी ने लगभग बराबर सीटें जीती हैं.


हालांकि राजनीति में नैतिकता और गठबंधन धर्म निभाने जैसी बातें किताबी ही रह गई हैं, लेकिन संख्या बल शिवसेना को ज्यादा फैलने-पसरने की गुंजाइश ही नहीं छोड़ रहा है. पिछले चुनाव के मुकाबले बीजेपी के साथ-साथ उसकी ताकत भी घटी है. चुनाव परिणामों से जो बातें खुल कर सामने आई हैं, उनमें प्रमुख है- फडणवीस सरकार के मंत्रियों को लेकर मतदाताओं की नाराजगी. गोपीनाथ मुंडे की बेटी और प्रमोद महाजन की भांजी पंकजा मुंडे को परली सीट पर भारी शिकस्त झेलनी पड़ी है.


यह दिलचस्प है कि इन मंत्रियों में से ज्यादातर लोगों के पक्ष में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने चुनाव प्रचार किया था. इसके बावजूद इनका हारना बताता है कि मोदी का जादू भी इनके पक्ष में नहीं चल सका. दूसरी बात यह रही कि अधिकतर दलबदलुओं को जनता ने नकार दिया है. बीजेपी-शिवसेना के 220 सीटों से आगे जाने की हवा भी महाराष्ट्र की जनता ने निकाल दी है और गठबंधन को इस लक्ष्य से लगभग 60 सीटें कम मिल रही हैं. बीजेपी को ग्रामीण क्षेत्र, शहरी क्षेत्र, अनुसूचित जाति बहुल सीटों, सुगर बेल्ट और मराठवाड़ा में वोटों का काफी घाटा हुआ है.


लेकिन एक बात तो तय है कि जनविरोधी लहर, राज्य में आर्थिक मंदी, लोकल ट्रेनों और ट्रैफिक जाम की घुटन, घटता निवेश, बेरोजगारी, किसानों की आत्महत्या, बाढ़ से तबाही जैसी ज्वलंत समस्याओं और शरद पवार की एनसीपी के बेहतर प्रदर्शन के बावजूद देवेंद्र फडणवीस ने अगर शिवसेना के साथ मिलकर बहुमत का आंकड़ा पार कर लिया है, तो उनका कद राज्य की राजनीति और पार्टी में बहुत बढ़ जाएगा. इस बार के महाराष्ट्र चुनावों में भाजपा जिस तरह से नरेंद्र मोदी के नाम पर वोट मांग रही थी, उसी सुर में देवेंद्र फडणवीस के नाम पर भी वोट मांगे जा रहे थे.



(फाइल फोटो)

नितिन गडकरी अब भी महाराष्ट्र भाजपा के सबसे वरिष्ठ नेता हैं, लेकिन अब फडणवीस निर्विवाद रूप से उनसे आगे निकल गए हैं. शिवसेना जैसे नकचढ़े सहयोगी के साथ पूरे समय गठबंधन चलाकर और चुनावी गठबंधन करके उन्होंने यह भी दिखाया कि राजनीतिक सूझ-बूझ के मामले में वे परिपक्व हो चुके हैं. किसान कर्जमाफी और मराठा आरक्षण जैसे नाजुक मुद्दों को फडणवीस ने जिस चतुराई से संभाला, उससे भी उनके प्रति सकारात्मक माहौल बना है. संगठन के भीतर मौजूद अपने विरोधियों के सभी वाजिब काम करके उन्होंने संबंध बेहतर कर लिए हैं.


सरसंघचालक मोहन भागवत सार्वजनिक तौर पर फडणवीस की तारीफ करते हैं. स्पष्ट बहुमत के चलते अब एकनाथ खड़से, प्रकाश मेहता और विनोद तावड़े जैसे मुख्यमंत्री पद के दावेदार भी उनकी राह का रोड़ा नहीं बन पाएंगे. इतना जरूर है कि शरद पवार जैसे अनुभवी दिग्गज आखिरी दम तक सरकार बनाने का प्रयास नहीं छोड़ेंगे, लेकिन संख्या बल इसमें उन्हें शायद ही सफल बनाए.


इधर शिवसेना मलाईदार पदों को लेकर आखिरी संभावना तक सौदेबाजी करेगी. शिवसेना ने दावा ठोक दिया है कि राज्य में फिफ्टी-फिफ्टी के फार्मूले पर ही सरकार बनेगी. शिवसेना विधानसभा चुनाव में अपने प्रदर्शन से उत्साहित है और वह सरकार पर दबाव बना कर श्रेष्ठतम हासिल करने की रणनीति पर चल रही है. उद्धव ठाकरे ने आज प्रेस कॉन्फ्रेंस में साफ कर दिया है सरकार का स्वरूप इस हकीकत पर निर्भर करेगा कि अगला मुख्यमंत्री कौन बनता है. हालांकि पिछले पांच सालों में उद्धव ठाकरे को बार-बार झुका कर फडणवीस ने अपनी राजनीतिक सामर्थ्य और कौशल का परिचय दिया है. उम्मीद है कि आगे भी नूरा कुश्ती के बीच नई सरकार को कार्यकाल पूरा करने में कोई दिक्कत नहीं होगी.


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