आईपीएल में छक्के पे छक्का तो वनडे में धोनी का बल्ला क्यों नहीं उठता
लॉर्ड्स में धोनी को दर्शकों की नाराजगी झेलनी पड़ी थी. स्टेडियम में मौजूद फैंस ने उन्हें ‘हूट’ किया. क्रिकेट फैंस की नाराजगी इस बात को लेकर थी कि 59 गेंद पर 37 रन बनाए थे. वो भी तब जबकि भारतीय टीम को जीत के लिए 323 रनों के लक्ष्य का पीछा करना था.
लॉर्ड्स में धोनी को दर्शकों की नाराजगी झेलनी पड़ी थी. स्टेडियम में मौजूद फैंस ने उन्हें ‘हूट’ किया. क्रिकेट फैंस की नाराजगी इस बात को लेकर थी कि 59 गेंद पर 37 रन बनाए थे. वो भी तब जबकि भारतीय टीम को जीत के लिए 323 रनों के लक्ष्य का पीछा करना था. जाहिर है उनकी सुस्त बल्लेबाजी पर फैंस ने ‘रिएक्ट’ किया. फैंस की नाराजगी इस बात को लेकर थी कि ऐसा लग रहा था कि धोनी मैच जीतने की कोशिश करने की बजाए अपने दस हजार वनडे रन पूरे करने की कोशिश में हैं.
बाद में विराट कोहली ने उन्हें ‘डिफेंड’ भी किया. धोनी के पक्ष में ये तर्क दिया जा सकता है कि वो जब बल्लेबाजी करने आए थे तब तक मैच भारत के हाथ से निकल चुका था. ऐसे में उन्होंने बड़ी हार की बजाए मैच को आखिरी तक ले जाने की रणनीति से अपने विकेट को बचाए रखा. चलिए इस दलील को मान लेते हैं. सवाल ये है कि मंगलवार के मैच में धोनी को क्या हो गया था? ये ठीक है कि तीसरे मैच में भी टॉप और मिडिल ऑर्डर के जल्दी जाने की वजह से धोनी पर दबाव था लेकिन दबाव तो अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट का हिस्सा है. दबाव का मतलब ये थोड़े ना है कि आप वनडे क्रिकेट में टेस्ट क्रिकेट खेलने लगेंगे. धोनी ने तीसरे टेस्ट मैच में भी 66 गेंद पर 42 रन बनाए. धोनी जब बल्लेबाजी करने आए तब भारतीय पारी के 25 ओवर से ज्यादा बचे थे.
कप्तान विराट कोहली विकेट के दूसरे छोर पर थे. धोनी ने हमेशा की तरह अति रक्षात्मक बल्लेबाजी शुरू की. हमेशा की तरह से आशय पिछले कुछ सालों से है जब वो शुरूआती 15-20 रन तक बल्ले का ढंग से मुंह ही नहीं खोलते. सिर्फ गेंद को बल्ले से ‘पुश’ करके एक-दो रन लेते रहते हैं. ये रणनीति बुरी नहीं है लेकिन इसकी परिणिति यानी नतीजा अच्छा होना चाहिए. जो इन दिनों हो नहीं रहा है.
कई दिग्गजों ने उठाए सवाल
धोनी को अगर आप विकेटकीपर बल्लेबाज के तौर पर टीम में रखते हैं तो विवाद शायद ना हो. लेकिन अगर वो बल्लेबाज विकेटकीपर हैं तो विवाद होना स्वाभाविक है. सवाल ये भी है कि अगर वो विकेटकीपर बल्लेबाज हैं तो फिर उनकी बजाए नए खिलाड़ियों को क्यों ना टीम में जगह दी जाए जो कुछ समय में अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट का अनुभव भी हासिल कर लेंगे. धोनी की उपयोगिता तब है जब वो बल्ले से भी कमाल करें. इसीलिए धोनी के इस अंदाज पर इंग्लैंड की टीम के कुछ पूर्व दिग्गज खिलाड़ियों ने भी ऊंगली उठाई. एक खिलाड़ी ने कहाकि धोनी के मौजूदा स्ट्राइक रेट से टीम जीत नहीं सकती दूसरे ने कहाकि धोनी के खेलने का अंदाज बहुत ‘प्रेडिक्टेबल’ हो चुका है.
1 जनवरी 2018 से लेकर अभी तक खेले गए वनडे मैचों की बात करें तो स्ट्राइक रेट और औसत का फर्क साफ दिखाई भी देता है. धोनी ने 2018 में 9 मैच खेले हैं. इसमें उन्होंने 148 रन बनाए हैं. उनकी स्ट्राइक रेट 70 के करीब है. औसत 37 रनों का है. जो उनके करियर औसत 51.2 और स्ट्राइक रेट 88.13 से काफी कम है. पिछले एक साल में एक भी बार धोनी को मैन ऑफ द मैच का खिताब नहीं मिला है. जाहिर है कि पिछले एक साल में मिली किसी भी जीत के वो हीरो नहीं रहे. आखिरी बार उन्हें 30 जून 2017 को वेस्टइंडीज के खिलाफ मैच में मैन ऑफ द मैच का खिताब मिला था.
आईपीएल में कैसे चल जाता है बल्ला
ये वही महेंद्र सिंह धोनी हैं जो आईपीएल में अब भी बड़े बड़े शॉट्स लगाते हैं. इस सीजन में उन्होंने 150 से ज्यादा की स्ट्राइक रेट से रन बनाए हैं. 30 छक्के मारे हैं. जो आईपीएल के इतिहास में उनके बल्ले से निकले सबसे ज्यादा छक्के हैं. इसके अलावा 2018 में सबसे ज्यादा छक्के मारने वाले खिलाड़ियों की फेहरिस्त में वो सातवीं पायदान पर थे. वैसे भी आईपीएल के पूरे इतिहास में उन्होंने 100 से कम के स्ट्राइक रेट से कभी बल्लेबाजी नहीं की.
इस सीजन में 150.6 का उनका स्ट्राइक रेट उनके आईपीएल करियर का ‘थर्ड बेस्ट’ परफॉर्मेंस है. ये सच है कि टी-20 और वनडे का फॉर्मेट अलग है लेकिन इतना भी अलग नहीं कि वहां से आधी स्ट्राइक के साथ बल्लेबाजी की जाए. जाहिर है ऐसी बल्लेबाजी करेंगे तो आलोचना के लिए धोनी को तैयार रहना होगा. खास तौर पर जब उनमें जीत की भूख ही नहीं दिख रही हो. उससे भी खास तौर पर तब जब उन्हें बेहतरीन फिनिशर में गिना जाता रहा हो.