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ब्लॉग: तेजस्वी पर आर-पार, लेकिन नहीं टूटेगी लालू-नीतीश की दोस्ती!
देश में नरेन्द्र मोदी और नीतीश कुमार ऐसे रणनीतिकार हैं जिनकी चाल की भनक समझना मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन है. अमित शाह बीजेपी के अध्यक्ष बने, पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राईक हुआ, देश में नोटबंदी लागू हुआ, यूपी में योगी सीएम बने और राष्ट्रपति का उम्मीदवार भी तय हुआ लेकिन इसकी भनक किसी को नहीं लगी, उसी तरह नीतीश कब क्या चाल चलेंगे इसकी भी भनक किसी को नहीं लगती है. हालांकि, उनके चाल ढाल से संकेत जरूर मिल जाते हैं.
नीतीश ऐसी राजनीतिक चाल चलते हैं जिससे लालू यादव भी सस्पेंस में रहते हैं और बीजेपी को भी लगता है कि देर सबेर वो लालू से दूरी बना लेंगे. ऐसी सस्पेंस वाली स्थिति के लिए नीतीश ही जिम्मेदार हैं. शायद उनकी यही रणनीति भी है. बिहार में लालू यादव के साथ महागठबंधन चला रहे हैं तो वहीं नरेन्द्र मोदी के कई कदम और फैसले के समर्थन में भी वो उतर जाते हैं. मसलन पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक, नोटबंदी और राष्ट्रपति उम्मीदवार पर मोदी और बीजेपी को समर्थन किया. इसी चाल से बीजेपी समेत राजनीतिक पंडितों को लगता है कि वो देर सबेर फिर से बीजेपी से हाथ मिला सकते हैं. जब अगले कदम की बात उठती है तो नीतीश कुमार चाल बदलते हुए बोल बैठते हैं कि मिट्टी में मिल जाएंगे पर बीजेपी के साथ नहीं जाएंगे. ये भी किसी से छुपा नहीं है कि न तो आरजेडी और न ही बीजेपी उनके लिए अछूत है. अब नीतीश क्या करेंगे? फाइल फोटो अब ताजा राजनीतिक माहौल में फिर सवाल उठ रहें हैं कि नीतीश अब क्या करेंगे. रेलवे होटल घोटाले मामले में सीबीआई की छापेमारी के बाद वो क्या करेंगे. क्या नीतीश कुमार लालू यादव के बेटे और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को मंत्रिमंडल से बाहर का दरवाजा दिखाएंगे या बार बार लालू और लालू परिवार पर सीबीआई और ईडी की छापेमारी से किरकिरी के शिकार बने नीतीश कुमार महागठबंधन तोड़ देंगे. रेलवे होटल घोटाले में लालू यादव, राबड़ी यादव और बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के खिलाफ सीबीआई ने एफआईआर दर्ज किया है. इसी के बाद पटना से लेकर दिल्ली तक राजनीतिक खलबली मची है. मिली जानकारी के मुताबिक फिलहाल महागठबंधन टूटने की कोई नौबत नहीं है. जहां तक बात तेजस्वी यादव को मंत्रिमंडल से निकालने की बात है उसपर नीतीश कुमार कुछ भी निर्णय ले सकते हैं लेकिन जो भी निर्णय लेंगे वो लालू यादव से चर्चा करने के बाद ही लेंगे. वैसे नीतीश कुमार के पास बीजेपी को जवाब देने के लिए पर्याप्त सामग्री है. वैसे जेडीयू बीजेपी से पूछ सकती है कि बीजेपी पहले विवादित राजजन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में चार्जशीट हुईं केद्रीय मंत्री उमा भारती और राज्यपाल कल्याण सिंह के खिलाफ कार्रवाई करे तब तेजस्वी यादव के इस्तीफे की मांग करे. हालांकि तेजस्वी यादव पर सिर्फ एफआईआर दर्ज हुआ है, मामला कोर्ट नहीं पहुंचा है. फिर भी नीतीश को अपनी छवि की ज्यादा परवाह हो तो तेजस्वी यादव को मंत्रिमंडल से हटा सकते हैं और लालू यादव को कह सकते हैं कि तेजस्वी यादव की जगह किसी और को मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया जाएगा ऐसी स्थिति में लालू यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव को उपमुख्यमंत्री बनाया जा सकता है. वहीं लालू की सात में से एक बेटी को मंत्रिममंडल में शामिल किया जा सकता है. ऐसी स्थिति में महागठबंधन तोड़ने की नौबत नहीं आएगी. क्यों नीतीश मोदी से हाथ नहीं मिलाना चाहते हैं? नीतीश कुमार लालू के साथ महागठबंधन करने के बावजूद वो लालू के साथ चेक और बैलेंस की रणनीति अपनाते रहते हैं ताकि लालू यादव अपनी हद में रहे. दरअसल नरेन्द्र मोदी जब बीजेपी के प्रधानमंत्री उम्मीदवार बने थे तभी नीतीश कुमार ने बीजेपी के साथ गठबंधन तोड़ लिया था. गठबंधन तोड़ने के पीछे रणनीति ये थी कि नीतीश कुमार की छवि सेक्युलरवादी है. मोदी के नेतृत्व में सरकार में शामिल होने से उनके सेक्युलरवादी छवि को नुकसान हो सकता था वहीं मुस्लिम वोट छिटकने का भी डर था वहीं तीसरी बात ये भी थी कि नीतीश का सपना पीएम बनने का भी था. अगर ऐसी स्थिति बनती है तो जब किसी भी पार्टी या गठबंधन को बहुमत नहीं मिलता है तो हो सकता है त्रिशंकु लोकसभा में नीतीश कुमार भी प्रबल दावेदार हो सकते थे खैर ऐसा नहीं हुआ. अब नीतीश कुमार लालू यादव और मोदी से राजनीति चूहे बिल्ली वाली खेल खेल रहे हैं लेकिन फिर से नरेन्द्र मोदी के साथ हाथ न मिलाने में उनकी मजबूरी भी है. पहली मजबूरी है कि उनकी सेक्युलरवादी छवि पर दाग लग सकता है. दूसरी स्थिति ये है कि बीजेपी से हाथ मिलाने से उनकी औकात कम हो जाएगा क्योंकि नई रूप में उभरी बीजेपी सीट बंटबारे में बराबर की हिस्सेदारी चाहती है जैसा कि महाराष्ट्र में हुआ. ये बात नीतीश के लिए नागवर गुजरेगा. तीसरी बड़ी बात ये है कि गोरक्षा के नाम पर जो हत्याएं हो रही है उस पर बीजेपी के साथ रहने के बाद क्या मुंह दिखाएंगे और क्या बोलेंगे. चौथी बात ये है कि बीजेपी चाहती है कि किसी भी स्थिति में बिहार में लालू और नीतीश की सरकार गिर जाए इसके लिए बीजेपी अलग अलग नीतीश और लालू के साथ चाल चल रही है. ऐसी भी खबर थी कि आरजेडी के कुछ नेता बीजेपी से मिले थे और लालू परिवार को घोटाले से बचाने के लिए नीतीश सरकार को गिराने की भी साजिश हुई. इस खबर से बीजेपी और जेडीयू के बीच चल रही नजदीकियां दूरी में बदल गई है. यही वजह है कि नीतीश कुमार किसी भी हाल में फिलहाल महागठबंधन को तोड़ने के मूड में नहीं दिखाई पड़ रहे हैं जहां तक लालू यादव की बात है कि वो पुत्र प्रेम में ऐसे डूब गये हैं वो किसी भी स्थिति में नीतीश कुमार से पंगा लेकर पुत्र के भविष्य पर हथौड़ा नहीं चलाएंगे यानि महागठबंधन की लड़ाई फिलहाल चलती रहेगी और नीतीश अपनी राह चलते रहेंगे और तेजस्वी यादव पर जब वो मुंह खोलेंगे तब राजनीतिक के चतुर खिलाड़ी नीतीश कुमार के पास माकूल जवाब भी होगा और राजनीति नफा-नुकसान का हिसाब भी.नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आकड़ें लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.
धर्मेन्द्र कुमार सिंह, चुनाव विश्लेषक और ब्रांड मोदी का तिलिस्म के लेखक हैं. इनसे ट्विटर पर जुड़ने के लिए @dharmendra135 पर क्लिक करें.फेसबुक पर जुड़ने के लिए इसपर क्लिक करें. https://www.facebook.com/dharmendra.singh.98434
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