स्कोरबोर्ड पर 203 रनों का लक्ष्य दिख रहा हो, आस्किंग रन रेट लगातार बढ़ रहा हो तो कोई भी कप्तान क्या करेगा. आपका जवाब होगा कि आक्रामक बल्लेबाजी करेगा. आपका जवाब बिल्कुल गलत नहीं है. लेकिन धोनी ने समय समय पर इस जवाब को गलत साबित किया है.

धोनी की रणनीति है मैच को आखिरी ओवर तक पहुंचाना. वो आखिरी के चार-पांच ओवरों में बेकाबू होकर बल्लेबाजी करने की बजाए पहले लक्ष्य के करीब पहुंचने की कोशिश करते हैं. उनकी नजर इस बात पर रहती है कि अगर आखिरी ओवर में 15-20 ओवर रन भी बनाने की जरूरत पड़ी तो उसकी कोशिश की जा सकती है.

चूंकि धोनी अपने करियर में कई बार ऐसे लक्ष्य आखिरी ओवरों में हासिल कर भी चुके हैं इसलिए उनका ‘पैनिक बटन’ आखिरी ओवर में दबता है. कोलकाता नाइट राइडर्स के खिलाफ मंगलवार के मैच में भी उन्होंने इसी रणनीति के तहत बल्लेबाजी की. मंगलवार को भी आखिरी ओवर में 17 रन का लक्ष्य कहीं से आसान नहीं था, लेकिन चेन्नई के पास विकल्प थे. क्रीज पर आर अश्विन और ड्वेन ब्रावो थे. उनके अलावा हरभजन सिंह डगआउट में मौजूद थे जो जरूरत पड़ने पर ‘अनकनवेंशनल’ शॉट्स लगाकर चौंकाते रहे हैं. नतीजा सभी के सामने है. चेन्नई ने 1 गेंद रहते ही कोलकाता नाइट राइडर्स को 5 विकेट से हरा दिया. ये सीजन में चेन्नई की दूसरी जीत है.

क्या है धोनी का नया रोल  
203 रनों का लक्ष्य निश्चित तौर पर मुश्किल था. शेन वॉटसन और अंबाती रायडू ने चेन्नई को शानदार शुरूआत दी. वॉटसन ने 19 गेंद पर 42 रन बनाए. रायडू भी 26 गेंद पर 39 रन जोड़कर आउट हुए. अब तक मैच लगभग लगभग बराबरी पर चल रहा था. रायडू के जाते ही धोनी मैदान में आए. उन्होंने खुद को बल्लेबाजी क्रम में प्रमोट किया. उस वक्त चेन्नई को 118 रन चाहिए थे. 11 ओवर 3 गेंद का खेल बाकी था. क्रीज पर रैना थे, धोनी जानते थे कि अगर वो क्रीज पर रहेंगे तो रैना से अपनी रणनीति और टीम की जरूरत के हिसाब से बल्लेबाजी करवा सकेंगे. अफसोस उनका वो प्लान नहीं चला क्योंकि रैना के पैर में तकलीफ हुई. जिसके बाद वो रन लेने की बजाए बड़े शॉट्स खेलने की स्थिति में ही रह गए थे. ऐसी स्थिति में ज्यादा देर बल्लेबाजी नहीं की जा सकती. रैना जल्दी ही आउट हो गए.

रैना जब आउट हुए तब चेन्नई को जीत के लिए 102 रन चाहिए था. धोनी ने फिर भी ‘पैनिक-बटन’ नहीं दबाया. वो बिल्कुल आराम से बल्लेबाजी करते दिखे. एक वक्त तो ऐसा था कि धोनी ने 18 गेंद पर सिर्फ 10 रन जोड़े थे. चेन्नई के फैंस का पसीना बढ़ रहा था. इस पसीने को धोनी ने कुलदीप यादव के ओवर में एक छक्का और एक चौका लगाकर कम किया. धोनी जब आउट हुए तो टीम को 48 रन चाहिए थे और उसके पास 21 गेंद थी. दूसरे छोर से बिलिंग्स शानदार बल्लेबाजी कर रहे थे. जो बाद में जीत के हीरो भी बने. उन्होंने 23 गेंद पर 56 रनों की शानदार पारी खेली.

फिनिशर की बजाए गेम-मेकर की भूमिका में हैं धोनी
धोनी के आलोचक 28 गेंद पर 25 रनों की उनकी पारी की जीत में भूमिका को नकार सकते हैं, लेकिन धोनी जानते हैं कि उनका रोल अब क्या है. वो अब पहले की तरह आक्रामक बल्लेबाजी करने की बजाए अपने संयम और सूझबूझ से मैच को बनाने की कोशिश में रहते हैं. धोनी के पास उनके अलावा ऐसे ‘हिटर्स’ मौजूद हैं जो आखिरी ओवरों में कमाल कर सकते हैं. इसलिए उनकी पहली कोशिश मैच को आखिरी ओवर तक पहुंचाने और आखिरी ओवर में जीत की सूरत बनाए रखने की होती है.

यूं तो कोई भी खेल अगर-मगर, किंतु-परंतु से नहीं खेला जाता है लेकिन जरा सोचिए धोनी की टीम अगर पैनिक-बटन 16 या 17वें ओवर में ही दबा चुकी होती तो शायद ही उसके पास आखिरी ओवर तक ऐसे बल्लेबाज बचते जो 6 गेंद पर 17 रन बना सकते थे. वैसे भी इस सीजन में ज्यादातर 30 साल से ज्यादा के खिलाड़ियों को लेकर मैदान में उतरे धोनी अगर टूर्नामेंट में आगे का रास्ता तय करेंगे तो सिर्फ और सिर्फ अनुभव के दम पर. फिलहाल तो उनका अनुभव काम आ रहा है.