इस सवाल पर आप चाहें तो हंस सकते हैं, लेकिन कभी गंभीरता से इसका जवाब खोजने की कोशिश कीजिएगा. कैप्टन कूल, सुपरकूल और ऐसे कुछ और जुमले धोनी को लेकर दिए गए हैं, लेकिन धोनी ये सब कैसे करते हैं?
क्या है वो मंत्र जिसके दम पर वो अपना तनाव ‘रिलीज’ करते रहते हैं. जीत के लिए प्रति ओवर बनाए जाने वाले रनों की संख्या बढ़ती जाती है वो घबराते नहीं हैं.
विरोधी टीम का कप्तान मैच पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए तरह तरह के दांवपेंच की तैयारी करता रहता है, धोनी चुपचाप बल्ला थामे सिर्फ फील्ड प्लेसमेंट देखते रहते हैं. एक शानदार बॉस की तरह वो खुद के रन बनाते हैं और सामने वाले बल्लेबाज को बताते भी रहते हैं कि उसे क्या करना है. ऐसा एक बार नहीं हुआ है. पिछले एक दशक में धोनी ने ये काम कई बार किया है. फिनिशर के तौर पर उनके जोड़ीदार बदलते रहे हैं. लेकिन वो नहीं बदले. वो अब भी मैच फिनिशर की भूमिका को सही तरीके से निभा रहे हैं. कई बार तो ऐसा लगता है कि क्या धोनी ने अपने दिमाग में कोई कूलर लगा रखा है, जो किसी भी स्थिति में उनके दिमाग को गरम नहीं होने देता. हमेशा उन्हें ठंढा रखता है.
आखिरी गेंद तक मुकाबले में बने रहने की रणनीति
धोनी की ये रणनीति पुरानी है. बुधवार को जब धोनी क्रीज पर आए तब उनकी टीम को प्रति ओवर 12 की औसत से रन चाहिए था. टीम का स्कोर था 74 रन पर 4 विकेट. जीत के लिए उसे 11 ओवर में 132 रनों की जरूरत थी. विकेट के एक छोर पर अंबाती रायडू थे. यहां से लेकर अगले 7 ओवर में धोनी ने हमेशा की तरह खुद को सिर्फ लक्ष्य के करीब ले जाने की कोशिश की. 18वें ओवर की पांचवी गेंद पर जब रायडू रनआउट हुए तो 13 गेंद पर 31 रनों का लक्ष्य सामने था. रायडू ने शानदार बल्लेबाजी की थी. 53 गेंद पर 82 रन बनाकर वो इतना कर गए थे कि मैच किसी भी तरफ जा सकता था.
अब क्रीज पर ड्वेन ब्रावो थे जिन्होंने एक रन लेकर अगले ओवर के लिए स्ट्राइक धोनी को दे दी. अब 12 गेंद पर 30 रन चाहिए था. इसके बाद 19वें ओवर में धोनी और ब्रावो ने 14 रन बाए. दिलचस्प बात ये है कि इस ओवर में मोहम्मद सिराज ने लगातार तीन वाइड गेंद फेंकी. इसे भी धोनी की ‘रीडिंग’ ही कहा जाएगा कि उन्होंने इन तीन में से किसी भी गेंद के साथ छेड़छाड़ नहीं की. उन्होंने गेंद की लाइन को देखा और चुपचाप मुफ्त में मिल रहे एक रन और एक एक्सट्रा गेंद के लिए उसे जाने दिया.
आखिरी ओवर में जीत के लिए 16 रन चाहिए थे. जो हासिल किए जा सकते थे और हासिल कर भी लिए गए. चेन्नई ने 2 गेंद रहते ही लक्ष्य हासिल कर लिया. 20 ओवर के मैच को एक ओवर का मैच बनाने की धोनी की रणनीति एक बार फिर काम आ गई. किसी चुनौती भरे लक्ष्य को हासिल करने के लिए आक्रामकता की जो ‘ओवरडोज’ चाहिए होती है उसे धोनी आखिरी ओवर के लिए बचा कर रखते हैं. क्रीज पर उतरते ही आक्रामक होने में आखिरी ओवर तक पहुंचने का मौका कई बार हाथ से छिन जाता है.
मैराथन रनर की तरह सोचते हैं धोनी
यूं तो धोनी को अब कुछ भी साबित करने की जरूरत नहीं है. लेकिन जिन आलोचकों ने उनके वनडे या टी-20 करियर पर सवाल किए थे उन्हें ये जानना चाहिए कि इस सीजन के 6 मैचों में धोनी 209 रन बना चुके हैं. इसमें नॉट आउट 79 रन उनका सर्वश्रेष्ठ स्कोर है. 165 से ज्यादा की स्ट्राइक रेट बताती है कि उन्होंने टी-20 के फॉर्मेट के हिसाब से धाकड़ बल्लेबाजी की है. एक बार फिर जान लीजिए धोनी मैराथन दौड़ने वाले रनर हैं, वो अपनी असली ताकत आखिरी ‘लैप’ के लिए बचा कर रखते हैं. उन्हें बीच के ‘लैप’ में एनर्जी खोकर सुस्त पड़ जाने की आदत नहीं है क्योंकि वो जानते और मानते हैं कि अंत भला तो सब भला.
BLOG: 20 ओवर के मैच को 1 ओवर का मैच क्यों बनाते हैं महेंद्र सिंह धोनी
शिवेन्द्र कुमार सिंह, वरिष्ठ खेल पत्रकार
Updated at:
26 Apr 2018 01:13 PM (IST)
इस सवाल पर आप चाहें तो हंस सकते हैं, लेकिन कभी गंभीरता से इसका जवाब खोजने की कोशिश कीजिएगा. कैप्टन कूल, सुपरकूल और ऐसे कुछ और जुमले धोनी को लेकर दिए गए हैं, लेकिन धोनी ये सब कैसे करते हैं?
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