समाजवादी मुखिया मुलायम सिंह के हस्तक्षेप और उनके छोटे भाई व पार्टी महासचिव रामगोपाल यादव के मैराथन प्रयासों के बाद उत्तर प्रदेश में सत्ताधारी यादव कुनबे में जारी जंग में यह अल्पविराम का समय है! हालांकि जंग में सामने वाले को चित करने का महत्व समझने वाले यादव वीर इस अल्पविराम को अपने दांव को और सटीक बनाने में करेंगे, इससे कोई इनकार नहीं कर रहा. इस बाबत नई पेशबंदी भी शुरू हो गई है. इस हाईवोल्टेज ड्रामे में प्रदेश का शासन-प्रशासन बिलकुल पीछे छूट गया है और सारे सूरमा सियासी शक्तिप्रदर्शन में पूरी ताक़त झोंके हुए हैं.

दरअसल यादव परिवार में यह लड़ाई "क़द और पद" की है, और इस लड़ाई में परिवार के छोटे लेकिन सबसे मुखर माने जाने वाले शिवपाल यादव इसलिए केंद्र में है क्योंकि परिवार के सत्ता बंटवारे में उनकी स्थिति सबसे कमज़ोर हो गई थी, लेकिन इस नए घटनाक्रम के बाद वे अब फिर फ़ायदे में नज़र आने लगे हैं. अखिलेश मंत्रिमंडल से उनके पर भले ही क़तर दिए गए हों, लेकिन ऐन चुनाव से पहले प्रदेश संगठन की कमान हाथ में आने के बाद वे भतीजे अखिलेश पर भारी पड़ते दिख रहे हैं. संगठन हाथ में आते तीखे तेवरों के साथ मीडिया से मुख़ातिब हुए शिवपाल ने भविष्य की योजनाओं का भी संकेत दे दिया. इन्होंने कहा कि अभी मुझे बहुमत लाना है, कौन सीएम बनेगा अभी यह महत्वपूर्ण नहीं है. वे यहीं नहीं रुके, राज्य में अपने कार्यकर्ताओं को स्पष्ट संदेश दिया कि - हम दोनो चला सकते हैं, सरकार और संगठन का मेरे पास लंबा अनुभव है.- ज़ाहिर है कि इसका पहला हिस्सा अपने समर्थकों के लिए है और अनुभव की बात अखिलेश के लिए एक चुनौती.

दरअसल, शिवपाल की आवाज़ को नेता जी ने यह कहकर ज़ुबान दे दी कि शिवपाल पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भी बने रहेंगे और मंत्रिमंडल में भी अपना ज़िम्मा निभाएंगे. यह बात अलग है कि अखिलेश अभी कोपभवन में हैं और मुलायम उन्हें मनाने या समझाने के लिए लखनऊ गए हैं. ज़ाहिर है कि अभी अखिलेश के पत्ते खुलने बाकी हैं. ऐसे में यह अल्पविराम कितने दिन चलेगा यह कहना मुश्किल है. यादव कुनबे में पेशबंदियां खुलकर सामने आने लगी है. शिवपाल के बढ़े हुए क़द से से चिंतित रामगोपाल ने अखिलेश की तरफ से मोर्चा संभाले हुए हैं. इस कड़ी में उन्होंने नेता जी यानी मुलायम सिंह के फ़ैसले पर भी सवाल उठा दिया और कहा कि अखिलेश को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाना ग़लत. इसका जवाब भी शिवपाल ने देने में देर नहीं लगाई और कहा कि नेता जी का फ़ैसला सर्वोपरि, उस पर कोई सवाल नहीं उठा सकता.

उत्तर प्रदेश में नेताजी के बाद मुख्यमंत्री बनने का सपना देख रहे शिवपाल को जब अपने ही भतीजे मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का जूनियर होना पड़ा तभी से वे नाराज़गी के भाव में रहने लगे, उसपर उनके निर्णयों में अखिलेश की दखलंदाजी ने उन्हें और बेचैन कर दिया. हालांकि स्थितियां प्रतिकूल देख वे अपमान का घूंट पीते रहे. राज्य में अपनी स्तिथि से दुखी शिवपाल ने पुरानी जनता पार्टी को पुनर्जीवित करने के सपनों के साथ बनने वाले "महागठबंधन" के ज़रिए राज्य से बाहर निकालने की कोशिश की तो दिल्ली में समाजवादी राजनीति की बागडोर थामें उनके बड़े भाई व पार्टी महासचिव रामगोपाल यादव ने उनके अरमानों को पलीता लगा दिया.

ऐसे में जब मुलायम सिंह के दिल में रहने वाले (ख़ुद मुलायम ने यह कहा था) अमर सिंह ने दोबारा दल में एंट्री की. इसको शिवपाल ने अवसर के रूप में लिया और राजनीति में जोड़ तोड़ में माहिर अमर सिंह के ज़रिए राजनीतिक गणित पास करने का प्रयास करने लगे. अमर सिंह के कहने पर शिवपाल पूरी तरह उत्तर प्रदेश में संगठन में पैठ बनाने में जुटे, तो बड़ों की छाया के बाहर आने व राज्य में वापसी के प्रयासों में जुटे सीएम अखिलेश के क़रीबियों ने उन्हें सतर्क किया. नतीजा चाचा भतीजे में फ़ैसले लेने और उन्हें पलटवाने की जंग शुरू हो गई. इस लड़ाई में जब मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष दोनो पदों पर क़ाबिज़ अखिलेश भारी पड़े तो शिवपाल ने इस्तीफ़े की धमकी दी, ऐसे में चुनाव के सामने खड़ी पार्टी को संकट से उबरने के लिए नेताजी ने कमान सम्भाली. हालांकि शिवपाल को प्यार और अखिलेश की खिंचाईं का उनका दांव पहले दौर में काम करता नहीं दिखा, लेकिन ऐसा लगता है की यादव कुनबे में फ़िलहाल शांति (भले ही यह तूफ़ान से पहले की हो) हो गई है. हालांकि ऐन चुनाव से पहले राज्य संगठन का सबसे बड़ा पद पाकर शिवपाल फ़ायदे में हैं, वही चुनावों से ऐन पहले संगठन की बागडोर छिनजाने की चिंता अखिलेश के माथे पर स्पष्ट देखी जा सकती है. शिवपाल ने यह कहकर की चुनाव जीतना महत्वपूर्ण है मुख्यमंत्री कोई हो सकता है, अपने इरादे स्पष्ट कर दिए है .