किसी शायर ने क्या खूब बयान किया है- “कुछ खुशियां कुछ आंसू दे कर टाल गया, जीवन का इक और सुनहरा साल गया.” ग्रेगेरियन कैलेण्डर का नया साल सबको शुभ एवं मंगलमय हो, मुबारक हो, हैप्पी न्यू इयर!
दुनियादारी के हिसाब से हर साल की भांति पुराना साल जा रहा है और नया साल आ रहा है. लेकिन दार्शनिक तौर पर बात की जाए तो कोई साल कहीं आता-जाता नहीं है; मनुष्य की की त्वचा थोड़ी-सी बदल जाती है, सोच-विचार और आर्थिक-सामाजिक स्थिति में परिवर्तन आ जाता है, गंगा-यमुना में अकूत पानी बह जाता है! लेकिन तारीख दर तारीख मनुष्य के अपने-अपने उत्थान-पतन का संघर्ष जारी रहता है. यही जीवन है, यही जगत है. फिर भी नए साल की आमद को लोग एक जश्न के तौर पर मनाते हैं. यही मौका भी होता है और दस्तूर भी. लगता है इब्न-ए-इंसां साहब अपना यह शेर इन जश्न मनाने वालों को ही समर्पित कर गए हैं- “इक साल गया इक साल नया है आने को, पर वक्त का अब भी होश नहीं दीवाने को.”
लोग बदस्तूर न्यू इयर रिजोल्यूशन तय करते हैं और बदस्तूर ही फेल होते हैं. कोई ठानता है कि बहुत हुआ, साल की पहली तारीख से नशे की किसी चीज को हाथ नहीं लगाना है, कोई प्रण करता है कि चाहे कुछ भी हो जाए, तोंद की माप घटाने के लिए रोजाना सुबह कुछ पैदल चलना ही चलना है, कोई प्रतिज्ञा करता है कि चाहे सूरज पूरब की जगह पश्चिम से निकलने लगे, वह सबसे रिश्ते सुधार लेगा और किसी के कड़वे से कड़वे बचनों का भी पलटकर जवाब नहीं देगा, किसी का रिज्यूलूशन करोड़ों कमाने से संबंधित होता है तो कोई परीक्षा में टॉप करने का शिड्यूल फाइनल करता है, कोई पदोन्नति या बेहतर नौकरी का संकल्प करता है. यानी जितने सिर, उतने दृढ़ निश्चय! लेकिन साल समाप्त होते-होते ऐसे सूरमा विरले ही निकलते हैं, जिनकी प्रतिज्ञाएं फलीभूत हो पाती हैं. अधिकतर लोग दो-चार दिन रिज्यूलोशन पर अमल करते हैं और आगे खुद को ही दगा देते हुए पुराने ढर्रे पर लौट आते हैं.
ऐसा क्यों होता है? इसका उत्तर आपके अवचेतन मन में मौजूद है. आप जो भी दृढ़ निश्चय करते हैं, उसे मात्र ‘यह करना चाहिए’ की दृष्टि से करते हैं. लेकिन इस दृष्टि पर अमल करने से आपके मस्तिष्क में पहले से बना तंत्रिका-पथ टूट नहीं पाता और वह पहले वाले ढर्रे पर चलता रहता है और आपके तमाम रिज्योलूशन विफल हो जाते हैं. लेकिन यदि आप सहज ज्ञान से कोई स्वाभाविक लक्ष्य निर्धारित करेंगे तो पूर्व तंत्रिका-पथ टूट जाएगा और नया निर्मित होगा. आप अपने अवचेतन मन में जिस प्रकार के लक्ष्य के लिए सॉफ्टवेयर प्रोग्राम स्थापित करेंगे, वही नतीजे हासिल होंगे. इसलिए रिज्योलूशन ‘यह करना चाहिए’ की दृष्टि से नहीं; ‘ऐसा मैं हो गया हूं’ की दृष्टि से निर्धारित करना चाहिए. ऐसा करने पर लक्ष्य प्राप्ति के लिए अलग से सोचना या कठिन श्रम नहीं करना पड़ेगा क्योंकि नया तंत्रिका-पथ आपको खुद ब खुद उस दिशा में ले जाएगा. आपको मात्र सहज भाव से कोई भी लक्ष्य निर्धारित करने की कला आनी चाहिए.
हालांकि अधिकतर लोगों के लिए व्यक्तिगत सुरक्षा इतनी महत्वपूर्ण होती है कि वे उसके लिए अपने बहुमूल्य सपनों की बलि दे देते हैं. अपनी बेहतरी के लिए किया गया कोई दृढ़ संकल्प करने के बाद भी वे ऊहापोह में रहते हैं और पथभ्रष्ट होकर मंझधार में डूब जाते हैं. मशहूर शायर ऐतबार साजिद ने ऐसे ही लोगों की तासीर पर यह शेर कहा था- “किसी को साल-ए-नौ की क्या मुबारकबाद दी जाए, कैलेण्डर के बदलने से मुकद्दर कब बदलता है.”
इस राह में सफलता की कुंजी है- कदम दर कदम किसी कार्ययोजना को पूरा करते जाना, ताकि हमारा रिज्योलूशन अवचेतन में घनीभूत हो जाए, एकदम ठोस आकार ले ले. यह कार्ययोजना कुछ और नहीं बल्कि वह चीज होती है जो आपके अवचेतन मन को आश्वस्त कर सकती हो कि आपकी इच्छा, आपका सपना, आपकी आकांक्षा, आपकी कामना वाकई आपके पक्के इरादे की शक्ल ले चुकी है. अपनी कार्ययोजना को लागू करने का सीधा मतलब यह भी हो सकता है कि आप व्यक्तिगत असुरक्षा के कारण उत्पन्न होने वाला जोखिम उठाने जा रहे हैं. लेकिन जब आपका अवचेतन मन आपके इरादे से संतुष्ट हो जाता है, तो अपनी असीम क्षमताओं के साथ अपने काम में जुटता है और आप बिल्कुल वही कर पाते हैं जो करने का इरादा रखते हैं. तब कोई शक्ति आपको संकल्प-पथ से डिगा नहीं सकती. लेकिन सावधान! यह प्रक्रिया बुरे लक्ष्य निर्धारित करने पर भी अपना काम कर जाती है और जीवन नकारात्मक व विध्वंशक रूप ले सकता है!
ध्यान रहे कि धरती का एक भी इंसान अचूक नहीं होता; यहां तक कि सबसे अनुभवी व्यवसायी, सफलता के शिखर पर विराजमान पेशेवर लोग या नोबल प्राइज विजेता वैज्ञानिक भी लक्ष्य से चूक जाते हैं. लेकिन वे अपने सपनों पर व्यक्तिगत सुरक्षा को कभी हावी नहीं होने देते और साहस के साथ बार-बार प्रयासरत रहते हैं और चूकने के बाद भी मंजिल पर पहुंच जाते हैं. इसीलिए कहा गया है- “जिन खोजा तिन पाइयां गहरे पानी पैठ, जो बपुरा डूबन डरा रहा किनारे बैठ.”
हमें यह अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए कि अपने जीवन के असली वास्तुकार हमीं हैं. इसलिए हमारी मौजूदा परिस्थितियां चाहे जैसी भी हों, चाहे हमने अब से पहले का जीवन भारी असफलताओं मे भंवर में ही क्यों न गुजारा हो, चाहे हम जीवन के किसी भी पड़ाव पर क्यों न हों, अपने भविष्य की नैया के खेवनहार मात्र हम ही हैं और हम ही अपने रेजोल्यूशन निभाएंगे. यह अप्रोच हरगिज नहीं होनी चाहिए कि “एक बरस और बीत गया, कब तक खाक उड़ानी है.” प्रवचन के लहजे में बात की जाए तो हम चाहेंगे कि नए साल में हमारे राजनीतिक दल और राजनेता भी यह प्रण करें कि वे जनता को ठोंक-पीट कर अपने एजेण्डे के अनुरूप न बनाएं बल्कि स्वार्थ और संकीर्णता की राजनीति त्याग कर जनता के सुख-दुख दूर करने के लिए खुद को बदलें. अगर ऐसा हो गया तो नया साल वाकई मुबारक हो जाएगा. वरना भारतीय मतदाता तो यही जपेगा कि “न शब ओ रोज ही बदले हैं न हाल अच्छा है, किसी बरहमन ने कहा था कि ये साल अच्छा है.”
हमारी दुआ यही है कि “न कोई रंज का लम्हा किसी के पास आए, खुदा करे कि नया साल सब को रास आए.” आमीन!
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