(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Blog: ‘राजनितिक राम’ का मामला खत्म, अब ‘सामाजिक राम’ और ‘राम-राज्य’ का सवाल
इस फैसले के बाद भाजपा का मूल मुद्दा भी छिन जाएगा. कुल मिलाकर अगले कुछ समय में भारतीय राजनीति में शून्यता पैदा हो सकती है. इस शून्यता से नई सामाजिक-राजनीतिक दर्शन, धारा, आंदोलन और संगठन के उदय संभावना है.
अंग्रेजी राज में करीब डेढ़ सौ साल पहले पैदा किये गये अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ चुका है. पिछले करीब तीन दशकों से देश की राजनीति राम मंदिर के इर्द-गिर्द घूमती रही है. इस मुद्दे ने भारतीय समाज और राजनीति में विभाजन की खाई को बहुत बढ़ा दिया. कांग्रेस के पराभव और संघ-भाजपा के उठान का आधार यही रहा. यह साफ़ है कि इस फैसले से हिंदू पक्ष में ख़ुशी है लेकिन कोई उन्मादी जुलूस की शक्ल में नहीं.
मुस्लिम पक्ष की धीरज वाली प्रतिक्रियाएं आई हैं और कमोबेश सुप्रीम कोर्ट के फैसले को कुबूल किया है. ज्यादातर लोग इस शांति को नया सामाजिक-राजनीतिक संकेत मान रहे है लेकिन कुछ थोड़े से लोग इसे शांति नहीं, सन्नाटा मान रहे है, जो हो सकता है खराब ढंग से टूटे. लेकिन इन सबके साथ यह सच भी है कि साधारण हिंदू हो या साधारण मुसलमान, मंदिर-मस्जिद के विवाद से, खासकर इसके राजनीतिकरण से ऊब गये हैं.
इसमें कोई दो राय नहीं है कि इस फैसले के बाद संघ-भाजपा को तात्कालिक तौर पर फायदा होगा. लेकिन अब जब राम जन्मभूमि पर ही मंदिर बन रहा है तो हिंदू पक्ष की तरफ से यह विवाद खत्म है. चूंकि भाजपा का राजनीतिक आधार हिंदू ही है इसलिए कहा जा सकता है संघ-भाजपा के ‘राजनीतिक राम’ पर निपटारा हो गया है. अब यह राजनीतिक मुद्दा नहीं रह जायेगा और ‘सामाजिक राम’ व ‘राम-राज्य’ का सवाल सामने खड़ा होगा.
संघ-भाजपा की राजनीति को देखते हुए कहा जा सकता है कि अभी इनका ‘सामाजिक राम’ व ‘रामराज्य’ पर कोई खास तैयारी नहीं दिखाई देती है. जबकि संघ-राजनीति के उफान में कांग्रेस पतन की ओर ही बढ़ती जा रही है और क्षेत्रीय छत्रप कमजोर पड़ते जा रहे हैं. इस फैसले के बाद भाजपा का मूल मुद्दा भी छिन जाएगा. कुल मिलाकर अगले कुछ समय में भारतीय राजनीति में शून्यता पैदा हो सकती है. इस शून्यता से नई सामाजिक-राजनीतिक दर्शन, धारा, आंदोलन और संगठन के उदय संभावना है.
अगर इस मामले पर हिंदू-मुस्लिम के बीच कोई बड़ी घटना नहीं हुई, तो सामाजिक स्तर पर पर हिंदू- मुस्लिम सामाजिक रिश्तें की बुनावट बदलेगी. रिश्तों में ‘सहन’ की रणनीति की जगह ‘सम्मान’ के मूल्य को वरीयता मिलेगी. दूसरी ओर आने वाले समय में राजनीतिक तौर पर ‘हिंदू राष्ट्र’ और ‘सेकुलर राष्ट्र’ के खांचे-ढांचे टूटेंगे और ‘भारतीय राष्ट्र’ पर नई राजनीति का स्पेस बड़ा होता जायेगा.
लेखक लखनऊ स्थित सेंटर फॉर ऑब्जेक्टिव रिसर्च एंड डेवलेपमेंट के निदेशक हैं.
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)