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वादों की रेवड़ियां बांटकर वोट मांगने में कौन निकलेगा आगे?

देश के किसी भी राज्य में शायद ही कोई ऐसा चुनाव हुआ होगा, जब राजनीतिक दलों ने मतदाताओं को रिझाने के लिए लुभावने वादों की रेवड़ियां न बांटी हों. अगले तीन महीने में उत्तर प्रदेश व पंजाब समेत पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, लेकिन मोटे तौर पर इन दोनों ही राज्यों में पार्टियों के बीच हर दिन कोई नई घोषणा करने की होड़ लगी हुई है, बगैर ये समझे कि वे इसे पूरा कैसे करेंगे और अगर किसी एक को पूरा कर भी दिया, तो उससे सरकारी खजाने पर पड़ने वाले बोझ की भरपाई आखिर कहां से होगी.

लेकिन कोई भी दल ये सोचने की सिरदर्दी मोल नहीं लेना चाहता क्योंकि उसका एकमात्र मकसद वोटरों को हसीन सपने दिखाकर अपने जाल में फंसाना होता है. धरातल पर देखें, तो पता चलेगा कि इन दोनों ही प्रदेशों में पांच साल पहले चुनाव के वक़्त सत्ता में आने वाली पार्टी ने जो वादे किए थे, उनमें से कई तो आज तक पूरे ही नहीं हुए होंगे. लेकिन पांच साल बाद फिर उन्हीं वादों को नया नाम देकर पार्टियां अपने चुनावी घोषणा-पत्र में शामिल करके वोटरों को अपने जाल में फांसने की कोशिश करेंगी.

पंजाब में तीसरी ताकत बनकर उभरी आम आदमी पार्टी को लगता है कि बीजेपी-अकाली दल के बीच पनपी नाराजगी और कैप्टन अमरिंदर सिंह के नई पार्टी बना लेने के बाद कमजोर होती कांग्रेस पर इस बार वही सबसे ज्यादा भारी पड़ने वाली है और सत्ता उसके हाथ में ही आने वाली है. लिहाज़ा, आप के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल वहां घोषणाओं के सबसे बड़े बाजीगर बने हुए हैं. पंजाब के लोगों को मुफ्त बिजली देने और मोहल्ला क्लिनिक की सौगात देने का वादा करने के बाद अब उन्होंने महिलाओं के वोट पाने के ख़ातिर बड़ा सियासी दांव खेला है. उन्होंने कहा है कि पंजाब में हमारी सरकार बनी तो हर महिला को एक हजार रुपये प्रति माह देंगे.

पंजाब में कुल दो करोड़ से कुछ अधिक वोटर हैं, जिनमें से तकरीबन आधी संख्या महिलाओं की है, लिहाजा राजनीतिक विश्लेषक केजरीवाल की इस घोषणा को एक बड़ा मास्टर स्ट्रोक बता रहे हैं. हालांकि पिछले दिनों सी वोटर-एबीपी न्यूज़ द्वारा कराए गए, सर्वे के नतीजों में भी केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को सबसे ज्यादा सीटें लाने वाली पार्टी बताया गया है. उसके बाद से ही आप नेताओं की बांछें खिली हुई हैं और वही अकेली ऐसी पार्टी है जिसने सबसे पहले अपने उम्मीदवारों की पहली लिस्ट जारी करके उन्हें प्रचार में भी झोंक दिया है. महिलाओं के वोट हासिल करने के लिए केजरीवाल की इस घोषणा के मुताबिक ''अगर एक परिवार में सास, बहू और बेटी है तो तीनों के अकाउंट में हजार-हजार रुपये आएंगे. जिन माताओं को वृद्धावस्था पेंशन मिल रही है, उन्हें पेंशन के अलावा अलग से हजार रुपये दिए जायेंगे. यह दुनिया के इतिहास का सबसे बड़ा सशक्तिकरण कार्यक्रम है. पंजाब चुनाव में महिलाएं तय करेंगी कि वोट किसे देना है.''

हालांकि केजरीवाल जानते हैं कि उनका मुख्य मुकाबला कांग्रेस से है, इसलिए वे अकाली दल या बीजेपी के मुकाबले कांग्रेस को ही अपने निशाने पर ले रहे हैं. पंजाब के मोगा की रैली में भी आज उन्होंने मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी पर निशाना साधते हुए कहा, ''आजकल पंजाब में नकली केजरीवाल घूम रहा है. मैं जो भी पंजाब में वादा करके जाता हूं, वो वही बोल देता है. करता नहीं है, लेकिन बोल देता है. मैं आकर बिजली फ्री की बात कहकर गया, तो उसने भी फ्री बिजली का ऐलान कर दिया. मैं पूछना चाहता हूं कि पंजाब में किसी के भी पास जीरो बिजली बिल आया है. ये सिर्फ मैं कर सकता हूं. उस नकली केजरीवाल से पंजाब के लोगों बचकर रहना होगा. मैंने मोहल्ला क्लिनिक की बात की तो नकली केजरीवाल ने भी ऐलान कर दिया."

वैसे पंजाब की राजनीति की नब्ज समझने वाले मानते हैं कि केजरीवाल की महिलाओं वाली इस घोषणा का ग्रामीण क्षेत्रों के गरीब व दलित वर्ग के बीच खासा असर देखने को मिल सकता है, क्योंकि अन्य दलों के नेताओं की तुलना में केजरीवाल की इमेज फिलहाल बेहतर है और दिल्ली के उदाहरण को देखते हुए लोग उन पर इतना भरोसा करते हैं कि वे जो कहते हैं, उसे पूरा करके भी दिखाते हैं. लेकिन केजरीवाल ने ये घोषणा करते वक़्त ये नहीं बताया कि इससे सरकारी खजाने पर हर महीने कितने सौ करोड़ रुपयों का बोझ पड़ेगा और उसकी भरपाई आखिर वे कहां से करेंगे. हालांकि पंजाब एक समृद्ध राज्य है, लेकिन समृद्धि का अर्थ खजाना लुटाना नहीं होता, बल्कि किफायती तरीके से उसका इस्तेमाल करना होता है, ताकि मदद उन्हें ही मिले जो वाकई जरूरतमंद हैं.

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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