वो वक्त था साल 2007 का, जब कांग्रेस गुजरात में अपनी खोई ताकत को वापस पाने की ज़द्दोज़हद में लगी थी. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी लगातार तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमलावर थीं और इसी हमले में उन्होंने मोदी को ‘मौत का सौदागर’ बता दिया. बस फिर क्या था, हिन्दू वोटों की राजनीति करने वाली बीजेपी ने इस बयान को हिन्दू अस्मिता से जोड़ते हुए चुनावी मुद्दा बना दिया और कांग्रेस राज्य में धराशाई हो गई.


गुरूवार को सोनिया गांधी के बेटे और कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी अपनी किसान यात्रा का दिल्ली में समापन किया. इस दौरान राहुल ने मोदी सरकार पर ‘जवानों के खून की दलाली’ का आरोप मढ़ दिया. राहुल ने देवरिया से 6 सितंबर से शुरू की अपनी यात्रा की शुरुआत से ही मोदी पर हमले की रणनीति बना उस हिसाब से बयान दिया, लेकिन आखिरी दिन शायद वो वही गलती कर गए, जो उनकी माँ ने 2007 में किया था.


अब सवाल ये उठता है कि क्या राहुल ने अपनी माँ सोनिया गांधी की ही तरह एक राजनीतिक गलती करते हुए अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने की तैयारी कर ली है. वैसे कांग्रेस की हालत देख कोई भी उसे उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में मुख्य मुकाबले में नहीं मान रहा, लेकिन ये बयान राहुल की पार्टी को और पीछे धकेलने का एक प्रमुख कारण बने, तो इसमें कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए.


यूपी में अगले साल की शुरुआत में विधानसभा चुनाव होने हैं और कांग्रेस की स्थिति उस मरीज़ की तरह है, जो वेंटिलेटर पर पड़ा हो और जल्द ही दौड़ने की उम्मीद कर रहा हो. इसके लिए कांग्रेस ने उस प्रशांत किशोर को अपना हथियार बनाया है, जिसके माथे पर 2014 की मोदी की जीत और उसके अगले साल नीतीश कुमार की जीत का तिलक लगा हुआ है. पर राहुल के बयान से ऐसा बिल्कुल नहीं लगता कि ये बयान प्रशांत किशोर जैसे किसी रणनीतिकार की रणनीति का हिस्सा हो.


देश में सर्जिकल स्ट्राइक के बाद जिस तरह लोग मोदी के 56 इंच के सीने पर नाज़ करते दिख रहे हों, उस वक्त इस तरह की बयानबाजी कहीं ना कहीं जनता की नब्ज़ पर कमज़ोर पकड़ का उत्कृष्ट नमूना है. कोई भी ज़मीन से जुड़ा नेता शायद ऐसी गलती नहीं करता, लेकिन राजनीती जिन्हें विरासत में मिली हो, वो शायद गलत वक्त पर गलत बयान दे सकते हैं, जैसा राहुल करते दिख रहे हैं.


देश में पाकिस्तान को लेकर जब सभी तरह की धार्मिक और जातिय दीवार गिर जाती है, तो ऐसे में ये बयानबाज़ी निश्चित तौर पर कमज़ोर राजनीतिक पकड़ को दर्शाता है. वैसे ही राहुल गांधी की छवि पॉकेमॉन देखने वाले ‘पप्पू’ की बना दी गई है, उसपर से दो दिन पहले आलू की फैक्ट्री लगाने की बात और आज खून की दलाली राहुल की छवि को और कमज़ोर करेगा, ये कहना कोई अतिश्योक्ति नहीं होगा.


राहुल को इस बयान से पहले केजरीवाल से सीख लेनी चाहिए थी, जिन्होंने प्रधानमंत्री की तारीफ के बाद बड़ी चालाकी से बीजेपी को कटघरे में खड़ा करने के लिए सर्जिकल स्ट्राइक का सबूत मांग लिया. उन्हें भी शायद जनता के मूड का अंदाज़ा नहीं लगा क्योंकि बयान देने के बाद लोगों में उनको लेकर खासा गुस्सा देखने को मिला है. सोशल मीडिया में कोई उन्हें पकिस्तान जाने की सलाह दे रहा है तो कोई पकिस्तान के अगले चुनाव में आम आदमी पार्टी की सरकार बनाने की बात कह मज़ाक बना रहा ही.


राहुल जी, आप उस देश में रहते हैं, जो धर्म, जाति, शहर, मुहल्लों समेत हज़ारों टुकड़ों में बंटा देश है. लेकिन जब बात पकिस्तान की आती है तो सभी धार्मिक दीवारें टूट जाती हैं. यहाँ क्रिकेट में पकिस्तान को हराने पर दीपावली होती है तो हारने पर मुहर्रम. यहाँ लोग कश्मीर को लेकर इतने संजीदा हैं कि ठगी कर गुज़ारा करने वाला इंसान भी सरहद की बात आने पर आक्रोशित हो सीमा पर लड़ने को तैयार दीखता है. ऐसे में वक्त की नजाकत को समझते हुए आपको कम से कम सही वक्त का इंतज़ार करना चाहिए था.


खैर आप बड़े नेता हैं, आपके पीछे बड़े बड़े लोगों का सुझाव है, आपके पास प्रशांत किशोर का दिमाग और उनकी टीम की मेहनत है, आपको राजनीति विरासत में मिली है. इसलिए आपकी राजनीतिक समझ शायद आपके बयान को सही ठहराती हो, लेकिन गलियों में घूमने के बाद मेरी तो समझ यही कहती है कि इस बार अपने गलती की है.