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भारत के प्रधानमंत्री के बहाने देश को बनते और बदलते देखना

आज़ादी के पचहत्तर साल पूरे होने पर “भारत के प्रधानमंत्री” को पढ़ना एक तरीक़े से आज़ादी से लेकर आज तक के उस सफ़र को तय करने जैसा है, जो ऊबड़ और ऊंचा नीचा तो रहा मगर इस पूरे सफ़र में कभी सफ़र के सारथी पर देश की जनता ने भरोसा नहीं खोया. देशको गुलामी के बियाबान से आज़ादी की रोशनी के सहारे इन जननायकों और देश के प्रथम सेवकों को उनकी ताक़त और कमज़ोरियों के साथ बेहतर विश्लेषण के साथ याद करने का काम लेखक रशीद किदवई ने रोचक तरीक़े से किया है. आमतौर पर ऐसी किताबें नीरस और बोरियत से भरी रहती हैं मगर रशीद ने अपने लंबी राजनीतिक पत्रकारिता के पूरे अनुभव को अनेक अनसुने क़िस्सों के साथ इस किताब को ऊंचाई दी है. 

देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से लेकर नरेंद्र मोदी तक की खूबियों और कमियों से सजी है ये किताब. ये रशीद ही बताते हैं कि नेहरू और गांधी के रिश्तों में कितनी तल्ख़ी आ गई थी और नेहरू ने जब पटेल को अपने मंत्रिमंडल में शामिल किया तो कितनी विनम्रतापूर्वक पत्र लिखकर आग्रह किया और उसका कितना आत्मीय जवाब सरदार पटेल ने पलट कर दिया. 

इसी किताब से आप जान पाएंगे कि देश में दो बार कार्यकारी प्रधानमंत्री रहे गुलज़ारी लाल नंदा क्यों भूला दिये गये और पद से हटने के बाद वो कैसे कनॉट प्लेस से सरकारी बस पकड़ कर अपनी बेटी के घर जाते थे. इसी किताब में आपको कई क़िस्से मिलेंगे जिनसे आप जानेंगे कि नेहरू के बाद प्रधानमंत्री बनाये गये लाल बहादुर शास्त्री असल में कितने बहादुर थे. जो अमेरिका सरकार के प्रतिबंधों के बाद भी पाकिस्तान से डटकर लड़े और जीते. जय जवान जय किसान का नारा देने वाले शास्त्री की रूस के ताशकंद में रहस्यमयी मौत के सारे पहलू भी रशीद ने किताबों से खंगाले हैं. शास्त्री पहले केंद्रीय मंत्री थे जिन्होंने रेल दुर्घटना में प्रधानमंत्री नेहरू के मना करने पर भी मंत्री पद से इस्तीफ़ा दिया. 

शास्त्री के बाद प्रधानमंत्री बनीं इंदिरा गांधी के चार कार्यकाल की महत्वपूर्ण घटनाओं का रुचिकर ब्योरा किताब में है. कैसे कमजोर इंदिरा मजबूत प्रधानमंत्री बनीं. कैसे उन्होंने पार्टी में अपने विरोधियों को किनारे किया और कैसे बिना शोर मचाए पाकिस्तान के दो टुकड़े कर बांग्लादेश बना दिया. इंदिरा से जुड़े कई छोटे छोटे अनसुने क़िस्से इस किताब में हैं. अलग पार्टी बनाने के बाद चुनाव आयोग सेअपनी पार्टी को मिलने वाले चुनाव चिन्ह को लेकर बूटा सिंह की गलतफहमी का क़िस्सा हंसाता है तो अपनी मौत से पहले जो उन्होंने राहुल से कहा था वो आंखे भिगोता है. 

मोरारजी देसाई, चरण सिंह, विश्वनाथ प्रताप सिंह, चंद्रशेखर, एचड़ी देवेगौड़ा, आइ के गुजराल, राजीव गांधी, से लेकर पी वी नरसिंहराव, अटल बिहारी वाजपेयी, मनमोहन सिंह और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक के कार्यकाल को रोचक तथ्यों के साथ इस किताब में लिखा गया है. राजीव गांधी की शानदार चुनावी जीत, राव की कार्यकुशलता, मनमोहन सिंह की ईमानदारी और अटल बिहारी वाजपेयी की बेजोड़ शख़्सियत के कई क़िस्से भारत के प्रधानमंत्री में हैं. 

वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल से विवादित फ़ैसलों को लेखक ने ईमानदारी से सामने रखा है तो मोदी का जनता से जुड़ाव क्यों है इसको भी बेहतर तरीके से सामने रखा है. 

कुल मिलाकर ये ऐसी किताब है जिसे पढ़कर आप जानेंगे कि देश पिछले कुछ सालों में सिर्फ़ कुछ नेताओं की बदौलत ही नहीं बना, है बल्कि आज देश जहां भी पहुंचा है उसके पीछे अलग अलग पार्टी के अनेक कुशल, देशभक्त और विद्वान नेताओं की मेहनत का हाथ और श्रम है. साथ ही प्रधानमंत्री का पद किस को मिलेगा ये पहले से तय नहीं होता कई बार ज्योति बसु, सोनिया गांधी जैसे कुछ नेता इस पदके क़रीब आकार भी अपनी मर्ज़ी से दूर हो जाते हैं. कुल मिलाकर एक बेहतर और यादगार किताब रशीद किदवई की. 

किताब का नाम- रशीद किदवई,

प्रकाशक- सार्थक राजकमल प्रकाशन 

क़ीमत - 299 रुपये

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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